नोनिया समाज के लोगों ने वर्ष 1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ नमक सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेकर न केवल लाखों की संख्या में अंग्रेजों के दमन का शिकार बने, बल्कि उनके पैतृक पेशा नमक बनाना भी बर्बाद हो गया। नोनिया समाज ने मिट्टी से नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा था और एक ऐसा आंदोलन किया था जिस आंदोलन ने संपूर्ण भारत में पहली बार सफलता का परचम लहराया था।
नमक बेचकर जो आमदनी हुआ वो पैसा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोष में जमा कर दिया। इस तरह देश की आजादी के लिए लड़ रहे कांग्रेस की आर्थिक मदद कर नोनिया समाज ने अपना परम एवं पुनीत कर्तव्य कर अहम भूमिका निभाई। आज भी नोनिया समाज प्रत्येक वर्ष देश के विभिन्न स्थानों पर नमक आंदोलन की वर्षगांठ मनाता है।
आजादी के लड़ाई में कुछ ऐसे नाम थे जो गुमनाम हो गए ऐसे ही एक नाम था बुद्धू नोनिया। जब अंग्रेजों ने नमक पर ‘कर’ लगा दिया तब भारतीय के माथे ब्रजपात हुआ । परतंत्रता के वातावरण में इस प्रकार का आर्थिक तंगी के शिकार हुए भारतवासियों के लिए ‘बुद्धु नोनिया’ उम्मीद की किरण बन कर सामने आये । ‘बुद्धु नोनिया’ देशी नमक बनाकर भारतीयों की मदद कर रहे थे। वे नोनिया समाज के प्रथम वीर योद्धा हुए जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ नमक कानून तोड़ने का साहस किया । वे इतनी सावधानी से नमक बना कर भारतीय की मदद करते कि किसी को उसकी भनक तक नहीं पड़ती।
अंग्रेज सैनिक बौखला गया और बुद्धु नोनिया को पकड़कर खौलते हुए नमक के कड़ाही में जिन्दा डाल दिया । गरम कड़ाही में वे छटपटाते रहे परन्तु उनके मुंह से “भारत माता की जय” की ध्वनि निरंतर निकलती रही।
‘बुद्धु नोनिया’ का जन्म बेगुसराय (बिहार) के ‘करपूरा’ नामक गांव में एक मध्यवर्गीय नोनिया परिवार में हुआ था । त्याग और बलिदान के लिए देश के जनमानस को तैयार करने और गुलामी के पीड़ा के अहसास को जागृत करने के अथक प्रयासों के लिए ‘बुद्धु नोनिया’ जी ने अपने बलिदान के माध्यम से जो उद्बोधन किया है उसे भुलाया नहीं जा सकता ।
आजादी के आंदोलन में भाग लेने वाले ऐसे ही एक महत्वपूर्ण नाम है मुकुटधारी प्रसाद चौहान। चंपारण में अंग्रेजों के जुल्म से त्रस्त किसानों की आवाज बनने के लिए जब महात्मा गांधी 1917 में चंपारण पधारे तो मुकुटधारी उनके सहयोगी बन गये। गांधी जी के चंपारण सत्याग्रह में मुकुटधारी प्रसाद चौहान और राजकुमार शुक्ल ने अहम भूमिका निभाई थी। 1930 के नमक आंदोलन और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन मे भी इनकी सक्रिय भूमिका रही। आंदोलन के दौरान कई बार जेल भी गये।
www.nonia.in से साभार संकलित