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हम तेरे याद में सारा आलम खो बैठे ! खो बैठे ! तुम कहते हो कि ऐसे प्यार को भूल जाओ ! भूल जाओ ? आनंद शास्त्री

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मित्रों ! अंततः शिवसेना के मार्ग पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी भागवताचार्य जी धीरे-धीरे ले जाते दिख रहे हैं ! कभी संघ की शाखाओं में ध्वज प्रणाम कर जो शपथ हमलोगों ने ली थी ! उन्होंने भी ली होगी ! आज उस शपथ की धज्जियां उड़ती देख अंतःस्थल किसी विषैले फोडे की तरह दुखता है ! वे कहते हैं कि उनकी(&) पूजा पद्धति अलग है बस ! हमारा उनका डीएनए एक ही है ! यदि ऐसा है तो कांग्रेस,तृमूकां,आप का डीएनए अलग क्यों है ? खालिस्तानियों का डीएनए अलग क्यों ? फारुक अब्दुल्ला,महबूबा मुफ्ती,अफजल गुरु,तालिबान,लश्कर ऐ तइयबा का डीएनए अलग क्यों है ? ये ज्ञान उन्होंने यदि पहले ही दे दिया होता तो भारत का विभाजन होता क्या ?
हजारों हजार स्वयंसेवकों की लाशों पर चंगेज़ खाँ की तरह अपना-“नागासन” रखकर बैठे आपने डाक्टर हेडगेवारजी, आदरणीय गोलवलकर जी, सुदर्शन जी के आदर्शों पर कालिख पोत दी ?
आपसे एक अनुरोध और है कि आप हम वृद्ध हो चुके स्वयंसेवकों को आज्ञा देकर मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लेने को भी कह दो। जब डीएनए एक है तो धर्म अलग क्यों रहे ?
मित्रों ! जिनकी रगों में गजनी और ईरानी खून दौड रहा है ! औरंगजेब,अल्लाउद्दीन खिलजी,मुहम्मद गोरी,मुहम्मद गजनवी, बाबर,अकबर,शाहजहाँ,कुतूबुद्दीन ऐबक जैसे घृणित आततायियों ने हमारी बच्चियों के साथ बलात्कार कर जिस शैतानी जमात को जबरन पैदा किया ! उनको आप हमारे पूर्वजों का डीएनए भला कैसे कह सकते हैं ? आप किसी विशेषज्ञ से ये सलाह क्यों नहीं लेते कि उनकी रगों में दौडता खून अरब,ईरान और हमारे पूर्वजों का मिश्रित है ! अर्थात वे-“वर्णशंकर” हैं।
मित्रों ! श्रीमद्भगवद्गीता में कहते हैं कि-
“अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः॥”
अर्थात-“अधर्म के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं,और हे वार्ष्णेय! स्त्रियों के दूषित होने पर वर्णसंकर उत्पन्न हो जाते हैं।”
और ये निश्चित है कि आज हमें वर्णशंकर बनने की आज्ञा देकर आपने अपने-आप को पूरे हिन्दू समाज की दृष्टि में बहुत ही नीचे गिरा दिया! आज जिस प्रकार बराक उपत्यका के संघ का विशेष भाषाकरण हो चुका है ! जिस प्रकार संसद में महिला शक्ति वंदना आरक्षण विधानान्तर्गत मराठी आरक्षण की मांग रखी गयी ! शिवसेना द्वारा रखी गयी ! अब संघ को तत्काल मुस्लिम महिलाओं के लिये आरक्षण की मांग रखने का निर्देश दे ही देना चाहिए। हाँ मित्रों ! सांप भी अपनी केचुली उतारते हैं ! इसमें आश्चर्यजनक कुछ नहीं है। मैं समझता हूँ कि संघ ऐसा-“हिन्दुस्थान” बनाना चाहता है जिसमें एक भी हिन्दू न हो ! और हिन्दी तो बिलकुल भी न हो। आज भारत विभाजन के अवसर पर पूर्व और पश्चिम पाकिस्तान में हम हिन्दुओं की प्राणरक्षा हेतु अपना आत्मोत्सर्ग करने वाले संघ के स्वयंसेवकों की आत्मा क्या कहती होगी ? अब आप संघ की शाखाओं में कौन सी प्रार्थना करोगे ? “त्वया हिन्दू भूमे सुखम् वर्धितोऽहम” को बदलने का आदेश नागासन से कब आयेगा ?
मित्रों ! हमने और हमारे जैसे लाखों लाख स्वयंसेवकों को ! हमारे दिलीप कुमार जैसे हजारों हजार स्वयंसेवकों पर कट्टर हिन्दू वादी होने का आरोप लगाकर हमें और हमारी जवानी को निचोड़ कर आज सावरकर जी के आदर्शों पर उसी संघ ने गंदगी उलीच दी जो संघ कभी-“मोपला” पढने पढाने की अनुशंसा शाखा में करता था। मुझे आज भारत के भावी दृष्टा संजय का वचन स्मरण आ रहा है कि-
“पूरुषो बहवो राजन, सततं च प्रियवादिनः।
अप्रियस्यः तु वक्तव्य,वक्ता श्रोताश्च दुर्लभम्॥”
मैं जानता हूँ कि इस लेख के कारण मुझे वैधानिक चेतावनी दी जा सकती है ! किन्तु संघ के हमारे  परम्परागत बुद्धिजीवी कार्यकर्ताओं की आवाज आप अब कुर्सी और लग्जरी गाडिय़ों के काफिले के लिये नहीं दबा सकते !  हम जानते हैं कि हम जैसों की आवाज उन तक नहीं पहुंच सकती ! किन्तु ये निश्चित है कि-
“जो साज से निकली,वो धुन सबने सुनी है।
जो तार पे गुजरी, वो किस दिल को पता है ?”
संघ कार्यालयों में भारत माता,पूज्य गोलवलकर जी,हेडगेवार जी ,महाराणा प्रताप,छत्रपति शिवाजी महाराज,गुरू गोविन्द सिंह जी,वीर सावरकर जी के चित्र देखकर जिस भव्यता,स्वाभिमान, आत्मबल और कर्तव्य  का बोध होता है,वह संस्कृति ही हमारे संस्कारों को बदल कर रख देती है ! ध्वज प्रणाम कर जो सुख मिलता है ! उसके समक्ष सबकुछ व्यर्थ हो जाता है ! किन्तु अब क्या होगा ? क्या संघ कार्यालयों में भगवान श्रीराम के स्थान पर अकबर महान (?)के चित्र लगायेंगे ?
मित्रों ! संघ के आह्वान पर अयोध्या में कारसेवकों ने एक ही हुंकार भरी थी-“बच्चा बच्चा राम का,जन्म भूमि के काम का” हजारों हजार की संख्या में अपनी लाशें बिछाने वाले हमारे स्वयंसेवकों को अब-“गंगा जमुनी तहजीब”संघ की शाखाओं में सिखायी जायेगी ? न जाने कितनी लाठियाँ खायीं हम स्वयंसेवकों ने ! कितनी रातें अज्ञातवास में बितायीं ! भूखे पेट रहकर-“जै श्रीराम”का उद्घोष करने वाले-“हमलोग” अब जिस तथाकथित हिन्दूस्थान का स्वप्न देख रहे हैं निःसंदेह वह अत्यंत ही भयावह होगा ! वो इतना भयानक होगा जिसमें हिन्दी मास में ही हिन्दू हितैषी महान यशस्वी लोगों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में  अनिवार्य हिन्दी विषय को समाप्त कर दिया गया और स्थानीय संघ चुपचाप देख रहा है ?
मैं समझता हूँ कि हमें हर प्रकार से ठगा गया है ! हमें परम्परागत मिला संघानुशाषन हमसे छीनकर अब हमारा सर्वनाश करने की पूरी तैयारी की जा चुकी है ! जिसप्रकार प्रधानमंत्री और राष्ट्रपिता बनने की भूख से कांग्रेस ने भारत-विभाजन का डंस दिया ! बिलकुल उसी प्रकार हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की जल्दी में संघ अब अपने मार्ग को भूल चुका है ! किन्तु–“हम तेरे याद में सारा आलम खो बैठे ! खो बैठे !
तुम कहते हो कि ऐसे प्यार को भूल जाओ ! भूल जाओ ? –“आनंद शास्त्री सिलचर, सचल दूरभाष यंत्र सम्पर्कांक 6901375971″

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