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कश्मीर के पर्वतों से जो नदिया बहकर, कन्याकुमारी के तट पर जब लहरों के रूप में टकराती हो, उसी समय जल के टकराने के आवाजों में जैसे, हिंदी की बोली, स्वर एवं सुर गूंजती हो। तट पर पड़े बालू के एक एक कण जैसे इस मधुर जल से स्नान करती हो। समुंदर का तट अगर भारत हो और तट में प्रस्तुत बालू के कन इस देश के नागरिक, तो फिर समुंदर की लहरे है हमारी “हिंदी भाषा”, जिसकी शुद्धता, हमे नहला देती है। भारत जो एक बगीचा है, विभिन्न तरह के फूलों का, जहा सूरज की किरणे, पत्तो में पड़े ओस की बूंदों से चमचमाती हो। जहा एक भ्रमर किसी लाल फूल की तलाश में, किसी दूसरे पीले फूल से मुग्ध होकर बैठा हो। उसी बगीचे की सुंदरता को जोड़ने वाली जमीन है “हिंदी भाषा”। अगर कही, कई तरह के पकवान बन रहे हो, जो मुंह में जाते ही दिल तक सुकून पहुंचा देते हो। जहा कोई रसगुल्ले और बर्फी के बीच, बारी गंभीर चिंता में हो, इन पकवानों को एक साथ बनाने का मौका, यानि त्योहार है “हिंदी भाषा”।
जब तक श्री कृष्ण की बसुरी का धुन वृंदावन में गूंजेगा, जब तक कबीर की दोहों में, मंत्र मुग्ध होना कायम रहेगा, तब तक हिंदी भाषा हर भारतीय के जुबान पे अमर रहेगा।
अग्रता देव कक्षा 9 ब
केंद्रीय विद्यालय अगरतला