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हाइलाकांदी में रथयात्रा की परंपरा आज भी जीवित, जिले के सभी मंदिरों और अखाड़ों से निकलते हैं भव्य रथ

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हाइलाकांदी में रथयात्रा की परंपरा आज भी जीवित, जिले के सभी मंदिरों और अखाड़ों से निकलते हैं भव्य रथ

प्रीतम दास, हाइलाकांदी, २७ जून: असम का सीमावर्ती जिला हाइलाकांदी धार्मिक और सांस्कृतिक विविधताओं का एक अद्भुत संगम है। यहाँ की रथयात्रा न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि सामाजिक एकता, सांस्कृतिक परंपरा और लोक आस्था का प्रतीक बन चुकी है। वर्षों से चली आ रही इस परंपरा में आज भी वही उत्साह, श्रद्धा और भव्यता देखने को मिलती है।

हाइलाकांदी में रथयात्रा केवल एक या दो स्थानों तक सीमित नहीं है, बल्कि जिले के लगभग सभी प्रमुख मंदिरों और अखाड़ों से रथ निकाले जाते हैं, जो इस पर्व की व्यापकता और जनभागीदारी को दर्शाता है। भगवान श्रीजगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की इस यात्रा को देखने और उसमें भाग लेने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ पड़ते हैं।

मुख्य स्थलों से निकाली जाती हैं रथयात्राएँ:

जिले के विभिन्न इलाकों में स्थित प्रमुख मंदिरों और अखाड़ों से जो रथ निकलते हैं, उनमें प्रमुख है

राधारमण अखाड़ा,हार्टबर्टगंज बाजार अखाड़ा,

शिवबाड़ी मंदिर,मणिपुरी समुदाय द्वारा निकाली जाने वाली रथयात्रा,बाणेश्वर शिव मंदिर

इन रथों की विशेष बात यह है कि हर स्थान पर अलग-अलग सांस्कृतिक झलक देखने को मिलती है। कहीं भजन-कीर्तन और संकीर्तन की ध्वनि गूंजती है, तो कहीं पारंपरिक मणिपुरी वाद्ययंत्रों और नृत्य से माहौल भक्तिमय हो जाता है।

रथयात्रा के अवसर पर पूरा नगर श्रद्धा और भक्ति के रंग में रंग जाता है। महिलाएं, पुरुष, बच्चे और बुज़ुर्ग—हर वर्ग के लोग इसमें बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। रथ खींचना न केवल पुण्य का कार्य माना जाता है, बल्कि यह सामूहिकता और समर्पण की भावना का परिचायक भी है।

सड़क किनारे भक्तों के लिए जलपान, प्रसाद और भंडारे की व्यवस्था की जाती है। स्थानीय संगठनों और युवाओं की टोली सेवा कार्यों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। पूरा माहौल भक्तिमय और उत्सवमय बन जाता है।

हर वर्ष की तरह इस बार भी जिला प्रशासन ने रथयात्रा को शांतिपूर्ण और व्यवस्थित रूप से संपन्न कराने के लिए सुरक्षा, यातायात और स्वास्थ्य संबंधी व्यापक प्रबंध किए हैं। पुलिस, होमगार्ड, स्वास्थ्यकर्मी और स्वयंसेवी संगठन पूरे आयोजन में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

हाइलाकांदी की रथयात्रा अब केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं रही, बल्कि यह जिले की सांस्कृतिक पहचान बन चुकी है। यह पर्व यह संदेश देता है कि परंपरा और आधुनिकता एक साथ चल सकती हैं, और धर्म समाज को जोड़ने का एक सशक्त माध्यम हो सकता है।

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