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हास्य व्यंग गोलगप्पे – सुनील महला

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गोलगप्पे का नाम सुनते ही हर किसी के मुंह से पानी आ जाता है, बच्चों से लेकर बूढ़ों तक विशेषकर लड़कियों और महिलाओं के लिए यह शायद सबसे पसंदीदा स्ट्रीट फूड्स में से एक है। अंग्रेजी में वाटर बाल्स, कहीं गुप-चुप, कहीं पुचका तो कहीं फुचका, कहीं पानी के पताशे या बताशे, कहीं फुल्की, कहीं पड़ाका तो कहीं पताशी, तो कहीं पकौड़ी तो कहीं टिक्की कहलाने वाले गोल-गप्पों की बात ही कुछ और है। गोल गप्पे गोल ही होते हैं, गोल गप्पे बनाते समय अगर न फूले तो भी बेकार नहीं जाते, इनकी पापड़ी बन जाती है,जिनका खूब इस्तेमाल होता है।कोई भी मौसम हो,गोल कुरकरी पूड़ी के अंदर आलू,प्याज और काले चने के चटपटे और तीखे मसाले वाले इस स्ट्रीट फूड के सभी दीवाने हैं। इमली का खट्टा-मीठा पानी, अमचूर, पुदीने, लहसुन , हींग तड़का पानी, नींबू, हाजमा हज़म और जलजीरे का पानी लोग चटखारे ले-लेकर पीते हैं। यहां तक कि गरीब से गरीब व्यक्ति से लेकर बड़ी-बड़ी हस्तियां, फिल्म स्टार, सेलिब्रिटी तक गोल गप्पे खिलाने वालों के समक्ष कटोरी (दोना) पकड़ कर खड़े हो जाते हैं। अजी ! गोल गप्पों का लुत्फ़ ही ऐसा होता है जो छोटे से छोटे और बड़े से बड़े लोगों को हाथों में दोने(कटोरी) पकड़ कर रखने को मजबूर कर देता है। अजी ! ऐसे लगता है कि शहर के लोग तो पानी-पूरी(गोल गप्पे) के स्वाद पर ही जैसे जीते हैं। शाम ढ़लते ही गोल-गप्पे के ठेलों और रेहड़ियों पर इतने लोग उलट पड़ते हैं, जितने शायद इस देश में किसी मल्टीप्लेक्स थियेटर और रेलवे टिकट काउंटर पर टिकट कटवाने, पैसों के लेन-देन हेतु बैंक काउंटर और पानी और बिजली के बिल भरने के लिए बिजली और जलदाय विभाग के काउंटरों पर भी नहीं उलटते होंगे। दरअसल, गोल-गप्पे चीज ही ऐसी है कि कोई भी यह गा सकता है कि -‘पल-पल ना माने हमरा जिया , हां हमरा जिया, गोल-गप्पो के लिए तरसे तुमरा-हमरा जिया…!’ खैर, गोल-गप्पों की भी एक अलग अजीब दुनिया है। छोटे-छोटे बच्चे, विशेषकर लड़कियां जिनके मुंह भी छोटे छोटे होते हैं, गोल-गप्पे खिलाने वाले भैया से बड़े-बड़े गोल-गप्पे खिलाने की डिमांड करते हैं, भले ही गोल-गप्पे उनके मुंह में न आएं। सूखे गोल-गप्पे मांगने वालों की अपनी एक अलग से बिसात है।दस रूपए के तीन-पांच गोल-गप्पे खायेंगे लेकिन उनके साथ डिमांड दो फ्री के सूखे गोल-गप्पों को खाने की जरूर करेंगे। हमारे देश में लोग रेहड़ी और ठेले वालों से फ्री में एक दिन में इतने सूखे गोल-गप्पे खा जाते हैं, जिससे पाकिस्तान व विश्व में किसी अन्य छोटे-मोटे देश की ‘खाद्य समस्या’ तक हल हो सकती है। हम तो कहते हैं कि ऐसे ‘भुक्खड़’ लोगों से गोल-गप्पे खिलाने वाले लोगों को टैक्स वसूल करना चाहिए। जिस प्रकार से एटीएम से महीने भर में चार-पांच बार ही फ्री पैसे निकाले जा सकते हैं, ठीक वैसे ही महीने में पांच बार से अधिक बार गोल-गप्पे खाने वालों पर भी फ्री के सूखे गोल-गप्पे मांगने पर तय धनराशि चुकाने का प्रावधान किया जाना चाहिए, इससे पाकिस्तान जैसे व विश्व के किसी छोटे-मोटे गरीब देश को खाद्य समस्या हल करने में अप्रत्यक्ष रूप से सहायता मिल सकेगी। खैर, गोल-गप्पे खाने के मामले में कई लोग तो गोल-गप्पों वालों से कटोरी में नहीं,  अंजलि-भर पानी पिलाने की डिमांड कर बैठते हैं और पानी से ही अपना पेट भर लेते हैं। वैसे गोल-गप्पे खाने का भी अपना एक हुनर है और यह कुछेक लोगों को ही आता है। अब गोल-गप्पे खिलाने वाले भैया गोल-गप्पे खिलाने पर पर्सनल हाइजीन का भी खूब ध्यान रखते हैं और गोल गप्पे खिलाते वक्त हाथों में दस्ताने पहनते हैं, लेकिन गोल गप्पे खाने वाले कहते हैं -दस्ताने उतारो भैय्या, ऐसे स्वाद नहीं आता है। खैर जो है सो है। वैसे कुछ गोल गप्पे वाले भैया तो गोल गप्पों में पानी में फिल्टर्ड ही यूज़ करते हैं लेकिन रामलुभाया जी कहते हैं कि जो मजा अनफिल्टर्ड पानी में है, वह फिल्टर्ड पानी में कहां। अजी ! गोल गप्पों का जादू है ही ऐसा। जी ललचाए रहा न जाए। और तो और करवा चौथ की रात को तो महिलाएं अपना व्रत ही पानी वाले गोल गप्पे खाकर ही खोलती हैं। हम स्वयं भी गोल गप्पे खाने के बड़े शौकीन हैं लेकिन हमें भी कोई दस्ताने पहनकर गोल गप्पे खिलाते हैं तो हम गोल-गप्पे खिलाने वाले भैया को साफ़ साफ़ कह देते हैं कि हमें दस्ताने उतार कर ही गोल गप्पे खिलाना। वो क्या है कि दस्ताने पहनने पर गोल गप्पों में न तो मसाला ठीक से भरा जाता है और न ही जल्दी जल्दी गोल गप्पे खाने को मिल पाते हैं, वो क्या है कि यदि कोई हमें यह कहें कि रसगुल्ले को पालीथीन में बांधकर खाएं तो रसगुल्ले का स्वाद लिया जा सकता है भला। हमें तो नंगे हाथों से ही गोल गप्पे खाने का शौक है, दुनिया भले ही हमें कुछ भी कहें, हमें इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। तो बात कुछ यूं है कि हम नुक्कड़ पर लगी रामलुभाया जी की रेहड़ी पर गोल गप्पे के चटखारे लेने जा रहे हैं, आपको भी यदि चलना है तो बताइएगा ज़रूर। हम आपको फ्री में गोल गप्पे खिलायेंगे। अजी ! ज़रा मुस्कुरा दीजिए। ज्यादा सीरियस मत होइए। बुरा न मानें। हंसिए और हंसाइए। हंसना ही जिंदगी है। गुस्ताख़ी माफ़। जय राम जी की।
( लेखक व्यंग्यकार हैं।)
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।

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