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भारत माता के मस्तक पर रक्तवर्ण सी बिंदी है
कलकल करती बहती नदियाँ सबकी वाणी हिंदी है
हिंदी व बिंदी की कीमत, सबके समझ नहीं आती
बिन बिंदी वो रहे अधुरी पूर्ण रुप वो ना पाती
बने दस गुना मुल्यवान वो जिसके पास चली जाती
उसी रुप में देश विदेश में हिंदी भाषा की ख्याति
इस छोर से उस दिसा तक सर्वाधिक बोली जाती
कथनी व करनी दोनों में समता भाव को दर्शाती
विदेशी भाषा के चक्कर में संस्कृति सभ्यता क्षीण हुई
राष्टृ भाषा व मातृभाषा दोनों ही दीन हीन हुई
भूल हुई है हमसे भारी चंदन की बिंदी लगायेंगे
मदन सिंघल आज से हम हिंदी भाषा अपनायेंगा
मदन सुमित्रा सिंघल
पत्रकार एवं साहित्यकार
शिलचर असम
मो 9435073653