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हिंदी का वैश्वीकरण/  हिंदी की विश्व यात्रा– सुनीता पाहूजा

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भारतीय आर्यभाषा परिवार की प्रमुख, प्राचीन और ऐतिहासिक भाषा हिंदी अनेक अवस्थाओं से गुज़रते हुए सदैव विकासशील रही है। विविधतापूर्ण विशाल भारत के विभिन्न हिस्सों में बसे अधिकांश भारतीयों के बीच संपर्क भाषा की भूमिका निभाने वाली हिंदी विश्व के विभिन्न देशों में बसे भारतीयों और प्रवासी भारतीयों को भी परस्पर जोड़ने वाली और उन्हें भारत और भारतीयों से जोड़ने वाली एक सुदृढ़ कड़ी है। भारत में करोड़ों की मातृभाषा, देश की राजभाषा, संपर्क भाषा व राष्ट्रभाषा हिंदी विश्व में प्रवासी भारतीयों की अस्मिता है और विदेशियों का भी इसके प्रति अनुराग है। सदियों से विदेशी भी कभी सायास तो कभी अनायास ही हिंदी के प्रति आकर्षित रहे हैं। हिंदी भाषा का पहला व्याकरण, हिंदी साहित्य का पहला इतिहास, पहला शोध-प्रबंध विदेशियों द्वारा लिखे गए थे। आज विश्व में हिंदी बहुत बड़ी संख्या में लोगों की अभिव्यक्ति की भाषा के साथ-साथ ज्ञानार्जन की भाषा भी बन गई है। अनेक स्तरों पर संघर्ष करते हुए आज हिंदी ने अपना अस्तित्व मज़बूत कर लिया है।
सुदृढ़ बनती आर्थिक शक्ति, सांस्कृतिक निधि और विश्व गुरु भारत आज समूचे विश्व के आकर्षण का केंद्र है। यह जानकर भी गौरवानुभूति होती है कि विश्वभर की भाषाओं का इतिहास रखने वाली संस्था ‘एथ्नोलॉग’ के अनुसार हिंदी दुनियाभर में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा है और विश्वभर में 75 करोड़ से भी अधिक लोग हिंदी बोलते हैं। वैश्विकरण, अंतरराष्ट्रीय व्यापार, तकनीकी विकास और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में वृद्धि के चलते अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में हिंदी भाषा में दक्षता की मांग बढ़ी है। हिंदी का बढ़ता प्रभाव आज अनेक देशों में देखा जा सकता है, यथा, नेपाल, मॉरीशस, फीजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सिंगापुर, थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड इत्यादि।
विदेश में भारतीय भाषाओं और संस्कृति के प्रसार में, भारत सरकार के तत्वावधान में, राजभाषा विभाग, विदेश मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय की भूमिका महत्वपूर्ण है। भारत द्वारा अन्य देशों के साथ सुदृढ़ व घनिष्ठ सांस्कृतिक संबंध बनाए रखने तथा नए उभरते राष्ट्रों के साथ लोगों के बीच संपर्क स्थापित करने के उद्देश्य से अप्रैल 1950 में भारतीय सांस्कृतिक सहयोग परिषद (ICCR) की स्थापना की गई थी जिसका प्रशासनिक और परिचालन नियंत्रण वर्ष 1970-71 से विदेश मंत्रालय को सौंप दिया गया। आईसीसीआर (ICCR)  के अंतर्गत 37 देशों में कार्यरत भारतीय सांस्कृतिक केंद्र विदेश में हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार और आदान-प्रदान के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं।
विदेश में स्थित भारतीय दूतावास व उच्चायोग भी भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक कार्यक्रमों तथा हिंदी शिक्षण की व्यवस्था के साथ-साथ  स्थानीय शैक्षणिक और सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा इस उद्देश्य से चलाए जा रहे कार्यक्रमों के लिए सहायता भी प्रदान करते हैं। भारत सरकार द्वारा विदेशी छात्र-छात्राओं को भारत की शैक्षणिक संस्थाओं और विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए योग्यता के आधार पर छात्रवृत्ति भी दी जाती है।
भारत में तथा विदेश में प्रति वर्ष सितंबर माह में हिंदी दिवस/पखवाड़े के दौरान विभिन्न प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी के प्रचार-प्रसार और विकास के लिए विदेश में  स्थित भारतीय दूतावास, उच्चायोग तथा विभिन्न देशों की स्थानीय हिंदी सेवी व शैक्षिक संस्थाएं 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस विशेष रूप से मनाती हैं। यह वही तारीख़ थी जब विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार और विकास के उद्देश्य से 1974 में नागपुर में प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित किया गया था जिसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इसी सम्मेलन के दौरान की गई संकल्पना के आधार पर ही मॉरीशस में 11 फ़रवरी, 2008 को विश्व हिंदी सचिवालय ने द्विपक्षीय संस्था के तौर पर आधिकारिक रूप से कार्यारम्भ किया। सचिवालय का मुख्य उद्देश्य एक अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी का प्रचार करना तथा हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए एक वैश्विक मंच तैयार करना है। अब तक के 12 सम्मेलनों में से 9 सम्मेलन विदेश में आयोजित किए गए।
हिंदी अपने संख्याबल और भू-विस्तार के साथ-साथ अनेक क्षेत्रों में भी विस्तार पा रही है। जनसंचार और सूचना क्रांति से इसमें अत्यधिक तेज़ी आई है। इंटरनेट और सोशल मीडिया पर हिंदी में सामग्री की उपलब्धता में लगातार वृद्धि और बढ़ते हुए संचार माध्यमों ने हिंदी की वैश्विक पहुंच को आसान बना दिया है। आज हिंदी में करियर बनाने की अपार संभावनाएं दिखने लगी हैं फिर भी अभी हिंदी को और अधिक सक्षम और सशक्त बनाए जाने की आवश्यकता है।
 हाल ही में भारत में आयोजित जी-20 बैठकों में इस बात की पुनः पुष्टि हुई है कि अनेक देश भारत से जुड़े रहना चाहते हैं। आज भाषा-अध्ययन तथा भारतीय संस्कृति और साहित्य को समझने के लिए विश्व के कई प्रमुख विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। आज भी विदेशी विद्यार्थी हिंदी साहित्यकारों को पढ़ना चाहते हैं व उन पर शोध करना चाहते हैं। हिंदी साहित्य लेखन में भी उनकी रुचि बढ़ी है। विदेश में हिंदी की अनेक पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होती हैं। हिंदी फिल्मों, संगीत, रेडियो, टेलीविज़न कार्यक्रमों व धारावाहिकों की लोकप्रियता भी हिंदी के वैश्विक प्रसार को व्यापकता प्रदान करती है।
हिंदी के वैश्विक प्रसार में प्रवासी भारतीय समुदाय का भी महत्वपूर्ण योगदान है। भले ही ये गिरमिटिया देशों में बसे भारतवंशी हों या फिर पिछले तीन-चार दशकों के दौरान स्वेच्छा से धनार्जन के लिए इंग्लैंड, अमरीका, सिंगापुर, न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया इत्यादि देशों में जा बसे भारतीय हों। सभी प्रवासी भारतीय अपनी भाषा व संस्कृति को अपनी अस्मिता का प्रतीक मानते हैं और इनके संरक्षण, पोषण और अगली पीढ़ी में इसके संचरण के प्रति बेहद सजग हैं। प्रवासी भारतीयों द्वारा अनेक विधाओं में किया जा रहा साहित्य सृजन हिंदी के वैश्विक प्रसार में एक प्रेरक शक्ति है। प्रवासी भारतवंशी और विदेशी नागरिक पर्यटन और तीर्थ यात्राओं के लिए अक्सर भारत आते हैं अतः आतिथ्य क्षेत्रों में संचार की भाषा बनने से और आयुर्वेद और योग में भी विश्व की रुचि बढ़ने से इसकी वैश्विक प्रासंगिकता बढ़ रही है।
वर्ष 2022 से संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी ज़रूरी कामकाज और सूचनाओं को इसकी आधिकारिक भाषाओं के अलावा हिंदी में भी जारी किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट पर हिंदी समाचार, हिंदी ब्लॉग आदि भी हैं।
वैश्विक स्तर पर हिंदी के इस बढ़ते प्रभाव से यह परिलक्षित होता है कि हिंदी विश्व के लिए एक भाषा मात्र न होकर एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और आर्थिक शक्ति भी है। स्वतंत्र भारत के 75 वर्षों में हिंदी की यह यात्रा इस बात की परिचायक है कि भारत और हिंदी का विकास अन्योन्याश्रित हैं।
सुनीता पाहूजा
पूर्व द्वितीय सचिव (हिंदी एवं संस्कृति)
राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय से
सहायक निदेशक के पद से सेवानिवृत्त

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