14-15 सितंबर 2024, भारत मंडपम, नई दिल्ली से विशेष प्रतिनिधि अभिनंदिता कुमार की रिपोर्ट
माननीय प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा और माननीय गृह एवं सहकारिता मंत्री जी के प्रभावी नेतृत्व में राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय वर्ष 2021 से अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलनों का आयोजन कर रहा है।
हमारा देश भारत समृद्ध, विकसित, समर्थ और अनेक भाषाओं का देश है। सांस्कृतिक और भाषाई विविधता के इस गौरवशाली देश में पूरब से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण के बीच हिंदी, सदियों से संपर्क भाषा के रूप में कायम रही है और संपूर्ण भारत को एकता के सूत्र में बाँधे रही है। यह हमारे देश की राष्ट्रीय एकता और अस्मिता का सबसे प्रभावी व शक्तिशाली माध्यम है। हिंदी एक समृद्ध, भाषिक, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक परंपरा की वाहिनी है। करोड़ों भारतवासियों की भावनाएँ इस भाषा से जुड़ी हुई हैं। हिंदी भारत की अंतरात्मा है और राष्ट्र की वाणी है, अधिकांश देशवासियों की अभिलाषाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम है।
इतिहास पर नजर डालें तो हिंदी ही स्वतंत्रता की लड़ाई में देश की समस्त जनता को जोड़ने का माध्यम बनी थी और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश के संविधान निर्माताओं ने एकमत से हिंदी को राजभाषा स्वीकार किया था।
संघ की राजभाषा के रूप में स्थापित होने के बाद संविधान के अऩुच्छेद 343 में कहा गया है कि “संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा”। आगे अऩुच्छेद 351 में कहा गया है कि “संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे ताकि वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्तानी के और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं के प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो, वहां उसके शब्द भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे”।
बहुत हर्ष का विषय है कि कल अर्थात 14 सितंबर 2024 को हिंदी को राजभाषा बने हुए 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। यह हम सबके लिए उल्लास का अवसर है। अपने संवैधानिक दायित्व की पूर्ति के लिए संकल्पों को दोहराने का अवसर है। संविधान ने हम सब पर राजभाषा हिंदी के विकास का दायित्व सौंपा है।
राजभाषा संबंधी सांविधानिक प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने और संघ के सरकारी काम-काज में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए जून 1975 में राजभाषा विभाग की स्थापना गृह मंत्रालय के एक स्वतंत्र विभाग के रूप में की गई थी।
राजभाषा विभाग सरकारी काम-काज में हिंदी के प्रगामी प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए निरंतर प्रयासरत है और इसी क्रम में प्रत्येक वर्ष हिंदी दिवस का आयोजन करता रहा है। 2019 में हमारे माननीय गृहमंत्री जी ने हिंदी दिवस के आयोजन को विज्ञान भवन से बाहर जाकर बृहत् स्तर पर भारत के विभिन्न शहरों में आयोजित करने की संकल्पना की थी।
माननीय गृह मंत्री जी के कुशल मार्गदर्शन में राजभाषा विभाग इस संकल्पना को साकार करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहा है। इसी संकल्पना की परिणति हमने वर्ष 2021 में वाराणसी में प्रथम अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन के रूप में और उसके बाद 2022 में सूरत और 2023 में पुणे में हिंदी दिवस और दूसरे तथा तीसरे अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन के संयुक्त आयोजनों में देखी। मुझे यह बताने में प्रसन्नता हो रही है कि इन आयोजनों से देश भर के राजभाषा कार्मिकों और अधिकारियों में नव ऊर्जा का संचार हुआ है। सूरत और पुणे में हिंदी कार्मिकों और विशाल जनसमूह की उपस्थिति आश्वस्ति प्रदान करती है कि हिंदी विभिन्न भाषाओं की सहोदरी तो है ही, देश की धड़कन भी है।
अब तीन वर्ष बाद देश की राजधानी में हिंदी दिवस और चतुर्थ अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का आयोजन इस मायने में भी विशेष है कि इस अवसर को हम हीरक जयंती के रूप में मना रहे हैं।
हिंदी के राजभाषा बनने के 75 वर्ष में हमने न सिर्फ कई महत्वपूर्ण पड़ाव पार किए अपितु तकनीक के क्षेत्र में उत्तरोत्तर प्रगति की है।
कल से आरंभ होने वाले दो दिवसीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का उद्घाटन प्रातः 10 बजे मुख्य अतिथि माननीय गृह मंत्री जी करेंगे। आधुनिकता और भारतीय विरासत के संगमस्थल, भारत मंडपम में इस कार्यक्रम का आयोजन कार्यक्रम को अनूठी भव्यता और गरिमा प्रदान करेगा। उद्घाटन सत्र में राजभाषा विभाग द्वारा हीरक जयंती के अवसर विशेष के लिए तैयार किए गए राजभाषा भारती के हीरक जयंती विशेषांक का लोकार्पण किया जाएगा। साथ ही हीरक जयंती को यादगार बनाने के लिए एक स्मारक डाक टिकट और स्मारक सिक्के का भी लोकार्पण किया जाएगा।
इस अवसर पर भारतीय भाषा अनुभाग का भी शुभारंभ किया जाएगा। माननीय प्रधानमंत्री जी लगातार हिंदी और भारतीय भाषाओं के विकास और उनके बीच बेहतर तालमेल पर जोर देते रहे हैं। संविधान के मंतव्य और माननीय प्रधानमंत्री जी के निर्देश को ध्यान में रखते हुए, हिंदी के साथ भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने और उनके मध्य बेहतर समन्वय स्थापित करने के उद्देश्य से, गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग ने भारतीय भाषा अनुभाग की स्थापना किए जाने का प्रस्ताव रखा था। इसे हम शीघ्र ही साकार होते हुए देखेंगे।
इसके साथ ही कुछ और पुस्तकों व पत्रिकाओं का लोकार्पण किया जाएगा। इस अवसर पर माननीय गृह मंत्री जी द्वारा राजभाषा गौरव तथा राजभाषा कीर्ति पुरस्कार भी प्रदान किए जाएंगे।
14 सितंबर को मध्याहन भोजन के बाद, प्रथम विचार सत्र रखा गया है – राजभाषा हीरक जयंती- 75 वर्षों में राजभाषा, जनभाषा और संपर्क भाषा के रूप में हिंदी की प्रगति
दूसरा सत्र होगा भारत की सांस्कृतिक विरासत और हिंदी जिसे संबोधित करेंगे लोकप्रिय हिंदी कवि एवं व्याख्याता डॉ. कुमार विश्वास
15 सितंबर को सम्मलेन के तीसरे सत्र में भाषा शिक्षण में शब्दकोश की भूमिका एवं देवनागरी लिपि का वैशिष्ट्य पर देश के प्रसिद्ध भाषाविद् और और कोशकार अपनी बात रखेंगे।
चौथा सत्र तकनीक के दौर में राजभाषा हिंदी के कार्यान्वयन में “नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति” का योगदान पर होगा।
पाँचवा सत्र होगा – भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023: एक परिचर्चा जिसमें उपस्थित रहेंगे श्री अर्जुन राम मेघवाल, माननीय केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री
और अंतिम सत्र रहेगा हिंदी भाषा के विकास का सशक्त माध्यम भारतीय सिनेमा जिसमें शिरकत करेंगे अभिनेता श्री अनुपम खेर और फिल्म निर्माता एवं निर्देशक श्री चंद्रप्रकाश द्विवेदी।
इस तरह इन दो दिनों में 75 वर्षों में राजभाषा, जनभाषा और संपर्क भाषा के रूप में हिंदी की प्रगति पर गहन विचार-मंथन होगा। अमृतकाल में हम हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के बीच पारस्परिक साझेदारी बढ़ाने की दिशा में अग्रसर होंगे और देशवासियों के बीच तालमेल को बेहतर बनाने की दिशा में कदम बढ़ाएँगे।
राजभाषा हिंदी का अधिक से अधिक विकास इस बात पर निर्भर करता है कि कामकाज में इसका कितना प्रयोग किया जाता है। कोई भी भाषा तभी लोकप्रिय बनती है जब जनमानस पर अपना अधिकार जमा सके। यह अधिकार यदि प्रेम और सद्भावना के जरिए जमाया जाए तो ज्यादा लंबे समय तक कायम रहता है। निरंतर प्रयोग में लाने से कोई भी भाषा अपनी लगने लगती है और भाषा के कठिन शब्द भी सरल लगने लगते हैं। इसलिए मैं सभी से आग्रह करती हूँ कि हिंदी को अधिक से अधिक प्रयोग में लाएँ। जिस देश के नागरिक अपनी भाषा में सोचें और लिखें, विश्व उस देश को सम्मान की दृष्टि से देखता है।
हमारा देश सदा से विश्व में अग्रणी रहा है और पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक स्तर पर हिंदी ने एक अलग पहचान बनाई है। विश्व की बड़ी-बड़ी संस्थाएँ व कम्पनियाँ हिंदी में कामकाज करने के लिए प्रेरित हैं। अगस्त 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश ई-कॉमर्स कंपनियों ने अपने कारोबार को बढ़ावा देने के लिए अपनी वेबसाइट को हिंदी में बनाया है।
देश में सरकार की कल्याणकारी योजनाएं भी तभी प्रभावी मानी जाती हैं जब जनता और सरकार के बीच निरंतर संवाद, संपर्क और पारदर्शिता बनी रहे और सरकार की योजनाओं का लाभ देश के सभी लोगों को मिले। इसमें भाषा का अत्यधिक महत्व है। मुझे यह कहते हुए खुशी है कि राजभाषा हिंदी इस दायित्व को बखूबी निभा रही है। आज जिन मंत्रालयों, कार्यालयों व उपक्रमों को माननीय गृह मंत्री जी के कर कमलों से सम्मानित किया जाएगा उन सभी को मैं हार्दिक बधाई देता हूँ। भारत के गृह मंत्री जी के कर कमलों से यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त करना सभी पुरस्कार विजेताओं के लिए निश्चित रूप से बहुत ही गर्व और सम्मान की बात है तथा अन्य कार्मिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
राष्ट्रसंत, राष्ट्रकवि और राष्ट्रपिता की परंपरा वाले इस देश ने अनगिनत बलिदान दिए है और हमारा यह दायित्व है कि राजभाषा हिंदी को ना सिर्फ़ सरकारी कार्यो तक सीमित रखें अपितु इसकी विकास यात्रा में भी योगदान दें। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि हिंदी के बिना हमारे देश की स्वतंत्रता की कल्पना करना एक दिवास्वप्न होता। हमारी आकांक्षाएं और संकल्प इतने दृढ हों कि हम हिंदी को विश्व-भाषा का स्थान दिला सकें। हमारी भाषा, हमारी ही नहीं अपितु हमारे देश का गौरव होती है और हमारे अंदर ऐसा भाव होना चाहिए कि हम उसके व्यापक प्रचार-प्रसार और उपलब्धि पर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करें। साहित्य और भाषा के रूप में, हमारे पूर्वजो ने हमें एक धरोहर दी हैं और अनगिनत उदाहरण दिए हैं जो हमें प्रतिकूल परिस्थितियों में सामना करने की ऊर्जा प्रदान करते हैं। हमें इस धरोहर को सहेज कर रखना हैं।
आइए ! राजभाषा हिंदी की हीरक जयंती अवसर पर हम यह प्रतिज्ञा लें, कि हिंदी की उन्नति व प्रगति की यात्रा और अन्य भारतीय भाषाओं के साथ उसका समन्वय और सौहार्द्र यूँ ही बना रहेगा। हम सब मिलकर राजभाषा हिंदी के माध्यम से नए आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करेंगे। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे सामूहिक एवं सार्थक प्रयासों से हिंदी न केवल राष्ट्रीय स्तर पर अपितु विश्व पटल पर ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण एवं समृद्ध भाषा के रूप में विश्व भाषा बनेगी।