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शिलांग 3 फरवरी: देश ही नहीं वैश्विक स्तर पर हिंदी विभाग, विश्वभारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन का अपना अग्रणी स्थान है। यहाॅ हिंदी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति के शिक्षण वातावरण की संपूर्ण रचना आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी के नेतृत्व में निर्मित की गई है। शिक्षण और शोध की गुणवत्ता के साथ-साथ साहित्य के नवाचारों के प्रति यहाॅ के गुरुजनों को विद्यार्थियों का आग्रह आज भी श्लाघनीय है।
इस भवन की स्थापना सी एफ एंड्रयूज, पं. क्षितिमोहन सेन, बनारसीदास चतुर्वेदी के आग्रह पर गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर की अनुमति से इंदिरा गांधी जी की उपस्थिति में पं. जवाहरलाल नेहरु द्वारा 31 जनवरी, 1939 को गई थी। इसका प्रमाण एक चित्र के रूप में भवन के प्रवेशद्वार पर आज भी उपस्थित है। यह भवन यहाॅ के वैश्विक धरोहर का एक हिस्सा है।
दिनाँक 31 जनवरी, 2024 को हिंदी विभाग, पूर्वोत्तर पर्वतीय विश्वविद्यालय, शिलांग इस हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति के तीर्थ प्रांगण में उपस्थित रहा। सर्वप्रथम विश्वभारती शान्तिनिकेतन हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.सुभाष चंद्र रॉय ने सभी का स्वागत किया और कहा कि उत्तर-पूर्व के विद्यार्थियों का यहाँ आना हमारे लिए काफी सुखद और प्रेरणादायी है।इस यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए हिंदी विभाग,नेहू के विभागाध्यक्ष प्रो.हितेंद्र कुमार मिश्र ने बताया कि हिंदी विभाग शैक्षणिक भ्रमण यात्रा पर है, और यह प्रथम पड़ाव है। इस यात्रा को पर्यटन स्थलों के साथ-साथ श्लाघनीय शैक्षणिक संस्थानों से जोड़कर कर भी संयोजित किया है। दोनों विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों के सम्मोहक सांस्कृतिक प्रस्तुतियों, काव्य-नाटक प्रस्तुतियों एवं साझा किए गए अनुभवों ने इस यात्रा को यादगार अकादमिक यात्रा बनाया।इस यात्रा में हिंदी विभाग नेहू के आचार्य प्रो.माधवेन्द्र प्रसाद पांडेय एवं सहायक आचार्य डॉ.फिल्मेका मरबनियांग भी उपस्थित रहे। अंत में धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग ,शान्तिनिकेतन के डॉ.जगदीश भगत ने किया।