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हिंदी सेवी, समाजसेवी धर्मपरायण निर्मल कुमार सेठी को दी समाज ने श्रद्धांजलि

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हिंदी सेवी, समाजसेवी, धर्मपरायण व्यक्ति और भारतीय संस्कृति के प्रखर समर्थक निर्मल कुमार जैन नहीं रहे। सिलचर के समाजसेवी एवं उद्योगपति महावीर प्रसाद जैन के बड़े भाई थे। 84 वर्षीय निर्मल कुमार जैन जी कोरोना से संक्रमित थे और उनका उपचार मोरादाबाद के तीर्थांकर महावीर मेडिकल कॉलेज व रिसर्च सेंटर में चल रहा था।

गत 27 अप्रैल को कोरोना के खिलाफ जारी जंग हार गए। उन्होंने अंतिम सांस ली। अपने पीछे पूरा हरा भरा परिवार छोड़कर चले गए। बड़े भाई के निधन से दुखी महावीर प्रसाद जैन ने बताया कि असम और देश के कई राज्यों में उनके ( निर्मल कुमार जैन ) विभिन्न योगदानों तथा सामाजिक कार्यों के लिए जाना जाएगा। हिंदी की सेवा के साथ – साथ शिक्षा पर उनका बहुत जोर था। धर्मपरायण व्यक्ति थे। उनके मन में कुछ न कुछ देश एवं समाज हित काम करने की इच्छा रहती थी।

मृत्यु से पूर्व भी अनेक सपने संजोए हुए थे। कई योजनाएं उनके मन में थी। लेकिन ईश्वर को कुछ और तय कर रखा था। आज वह हम सबके बीच नहीं रहे। महावीर प्रसाद जैन भावुक हो गए और बड़े भाई के बारे विभिन्न जानकारी साझा की जो अधिकांश लोग नहीं जानते। निर्मल कुमार जैन का जन्म 8 जुलाई 1937 में असम के तिनसुकिया में हुआ था। वर्तमान में वह दिल्ली में रह रहे थे। वर्ष 1960 में उन्होंने तिनसुकिया में कोल्ड स्टोरेज की स्थापना की थी। तिनसुकिया में ही दो हिंदी स्कूल बनवाए हैं।

कछार जिले बिन्नाकांदी में पूर्व विधायक, हिंदी सेवी स्वर्गीय विश्वनाथ उपाध्याय के साथ छोटा मामदार हिंदी हाई स्कूल स्थापना में भी उनका योगदान रहा। स्व. उपाध्याय के साथ उनकी खूब बनती थी। हिंदी के प्रचार – प्रसार पर बहुत कुछ करना चाहते थे। सिलचर शहर में स्थित राष्ट्रभाषा विद्यापीठ की प्रगति के लिए भी स्वर्गीय दत्तात्रेय मिश्र जी का सहयोग के लिए तत्पर रहे।

महावीर प्रसाद जैन ने बताया कि वह हिंदी के प्रचार प्रसार हेतु उत्साहित रहते थे। सिलचर शहर में हॉलीक्रास स्कूल होने के बावजूद उन्होंने ( निर्मल कुमार जैन ) अपने पुत्र को राष्ट्रभाषा विद्यापीठ में दाखिला दिलाया था। यह उनका हिंदी के प्रति लगाव को दर्शाया। सिलचर शहर में वर्ष 1963 से 1972 तक रहे। सिलचर में ललित जैन कॉमर्स कॉलेज की स्थापना में जमीन दान कर उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। फ्लावर मिल की स्थापना में भी उनका योगदान रहा।

दिगंबर जैन महासभा के अध्यक्ष रहे। 40 वर्षों तक इस संस्था के जरिए समाज की सेवा की। वर्ष 1976 में कछार जिले में बाढ़ आई थी। यहां खाने पिने की कमी न हो, उस समय उन्होंने तीन वागन आंटा भेजा। भारतीय संस्कृति के संरक्षण और दुनिया के सामने लाने के लिए भी पुरातत्व विभाग के साथ संपर्क में रहते थे। अनेक बड़े – बड़े सेमिनार कर गहन चर्चा के जरिए एक निष्कर्ष तक पहुंचने का प्रयास करते।

विश्व में कई देशों का भ्रमण किया। इस दौरान वह अपने यात्रा और अनुभव के आधार पर यह कहा भी करते थे कि भारतीय संस्कृति अपितु केवल भारत वर्ष तक सीमित नहीं हैं बल्कि एशियाई देश समेत अनेक देशों में हमारी कला संस्कृति किसी न किसी रूप में दिखाई पड़ती है। पुरातत्व के साथ कई धार्मिक व ऐतिहासिक स्थलों के इतिहास को सामने लाने के लिए प्रयासरत रहते।

बराक घाटी में तीर्थ स्थल भुवन ( भोलेनाथ ) बाबा मंदिर के पास स्थित एक गुफा के इतिहास को सामने लाने के लिए भी उन्होंने एक प्रयास किया था। महावीर प्रसाद जैन आगे बताया कि असम आंदोलन के समय बराक घाटी की प्रमुख छात्र संगठन अक्सा के तत्कालीन अध्यक्ष प्रदीप दत्ता रॉय को दिल्ली में मौजूदा केंद्र सरकार के साथ बातचीत कराने में भी साथ दिया था। वहीं उत्तर प्रदेश के सीतापुर में असम का जो भी जाता उनका अभिवादन अच्छे से करते थे। सीतापुर में भी एक स्कूल की स्थापना की है। बराक घाटी और असम के अनेक लोगो ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।

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