सम्माननीय मित्रों ! अपनी बाल्यावस्था में पढी कविता के ये अंश मुझे बार-बार सचेत करते रहते हैं कि-
“जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं,
वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।”
मैं हमेशा ये सोचता आया हूँ कि-“भाव और भावना” में अंतर होता है ? और क्यों होता है ? हम लकीर के फकीर भला क्यो,कब,कैसे,किनसे और कहाँ बन जाते हैं ? हम अपने उस लक्ष्य से क्यों बहक जाते हैं जो सौगंध हमने कभी नीले आकाश के नीचे भगवा ध्वज के समक्ष अपने ह्रदय पर हांथ रखकर खायीं थी ! हजारों हजार बार खायी थी कि-
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे,त्वया हिन्दू भूमे सुखम् वर्धितोऽहम ।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे,पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ॥
हमने संघ की शाखाओं में ये सीखा है कि ये हिन्दूओं की भूमि है !
ये महान मङ्गलमय देवताओं की पुण्य भूमि है ! मातृभूमि है ये हमारी और हम अपनी माँ के सुखों को बढाने के लिये जबतक ये काया गिर नहीं जाती तबतक प्रयास करते रहेंगे।
हम अपने ही देश के एक भाग में-“कुली”कहकर क्यूँ पुकारे जाते हैं ? चलो ! मान लेता हूँ कि मैं-‘”कुली ” हूँ ! तो इसका ये अर्ध भी तो होता है कि हमें मजदूर कहने वाले लोग -“शोषण कर्ता” हैं ?
अर्थात मजदूरी करना और कराना दोनो ही अगर पाप है ! तो हम-आप क्या करेंगे ?
मित्रों ! हिन्दी और हिन्दु के लिये ये कडवा सच कहने को आज लाचार हूँ कि-“सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी। सच है दुनिया वालों की हम है अनाड़ी॥”कुछ लोगों ने कहा है कि अंग्रेजी पैसे देती है ! रोजगार देती है ! शिक्षित बनाती है ! अर्थात चार वेद,छे शास्त्र,एक सौ आठ उपनिषद,ब्रम्हसूत्र,अठारह पुराण, धम्मपद्द,आगम,निगम,गुरूग्रन्थ साहिब लिखने वाले महान ऋषि मुनि मूर्ख थे ! और अंग्रेज़ियत के गुलाम बुद्धिमान हैं ! और वो भी देवताओं की भूमि हिन्दुस्थान में महान हैं ?
संसार की ऐसी कोई भी विद्या नहीं है ! ऐसी क्रिया और कार्य नहीं है जिसका विस्तार से हमारे शास्त्रों में वर्णन न हो।
“भरत भू महान है , मातृभूमि पितृभूमि धर्म भू महान
भरत भू महान है महान है महान।
यहाँ हैं रुद्र ज्योतिर्लिंग जिसकी दिव्यता के दीप हैं ।
अनेक शक्ति पीठ जिस की शक्ति के प्रतीक हैं।
बद्रि जगन द्वारिका रामेश जिसके धाम॥
भरत भू महान है महान है महान।
मित्रों ! आज भारत ही क्या विश्व के किसी भी भू-भाग में रहनेवाले भारतीय की मराठी,कन्नड,उडिया,तमिल,भोजपुरी
बंगाली,बिहारी और असमिया अगर मिलते हैं तो आपस में हिन्दी में बात करते हैं ! उनमें अपनत्व का सागर हिलोरें लेता है ! किन्तु भारत में हिन्दी हिन्दू और हिन्दुस्थान में इतनी दूरी क्यों ? कछार से कुछ लोग ऐसे भी अनभिज्ञ हैं जो कभी जब गोहाटी जाते हैं तो कहते हैं कि-“हम असम जा रहे है” वो जब गया,प्रयाग,काशी, मथुरा जाते हैं तो कहते हैं कि हम-“हिन्दुस्थान जा रहे हैं” और उन-उन क्षेत्रों से बराक आने वाले लोगों को कहते हैं कि-“ये हिन्दुस्थान से आये हैं “?
मित्रों ! ये इनकी गलती नहीं है ! ये हमारे यहाँ के पूर्व राजनैतिक दलों,बांग्ला देश अर्थात पूर्वी पाकिस्तान से आये लोगों के पूर्वजों की भूल है ! उन्होंने अपनेआप को रूढियों की बेडियों के कारण दिग्भ्रमित रखा ! उन्होंने राम,कृष्ण,शिव,दुर्गा,सरस्वती,
“जहाँ विशाल जान्हवी सरस्वती व गोमती,
कौशिकी कावेरी सरयू तापती ऐरावती,
ब्रम्ह सिन्धु नर्मदा गोदावरी महान
भरत भू महान है महान है महान।”
न जाने क्यों हमलोग ये समझ नहीं पाते कि-“गाजा” की तरह कश्मीर से बराक तक,महाराष्ट्र से तमिलनाडु तक भी भारतीय-हमास-हूती और हिजबुल्लाह”के समर्थकों ने सुरंगें बना रखी हों ? मित्रों हमें एकता-अखंडता के सूत्र में बंध कर रहना होगा ! अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब-“भारत माता”की आत्मा पर उनके वर्णशंकर सौतेली सन्तानें कुठाराघात करेंगी-…आनंद शास्त्री सिलचर, सचल दूरभाष यंत्र सम्पर्कांक 6901375971″





















