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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने ‘ हम जीतेंगे : पॉजिटिविटी अनलिमिटेड ‘ श्रृंखला के तहत देश को संबोधित किया। उन्होंने कहा ये समय एक दूसरे पर उंगली उठाने का नहीं है।हम चट्टान की तरह एकजुट हो कर सकारात्मक तरीके से काम करेंगें।
उनके कल के उद्बोधन को आज के अखबारों ने छापा है। कोरोना प्रबंधन में एक देश के रूप में हमारी चूक को रेखांकित करते हुए उन्होंने जो बीत गया उसे भूल कर आगे की सुध लेते हुए काम करने का आह्वान किया है।उन्होंने सरकार और नागरिकों को अपनी भूलों को परिमार्जन करने की सलाह दी।
अखबारों ने इस सकारात्मक खबर को भी नकारात्मक बनाने में कसर नहीं छोड़ी।एक अखबार ने इस न्यूज़ की हेडलाइन के पहले कैप्शन लगाया “कोरोना पर भागवत ने घेरा।”
एक अन्य अखबार की हेडलाइन थी “पहली लहर के बाद लापरवाह हो गई थी सरकार:भागवत।”
जब कि आरएसएस प्रमुख ने अपने धारा प्रवाह उद्बोधन में तंत्र और लोक दोनों को इकाई के रूप में आह्वान किया कि गलतियों से सीख कर इस राष्ट्रीय आपदा में आगे काम करें।
मीडिया इस मुश्किल दौर में भी किसी भी संवाद को सरकार बनाम लोक बनाने की पुरानी आदत छोड़ नहीं पा रहा।उपरोक्त दोनों रिपोर्टिंग में कोशिश ये है कि आरएसएस और सरकार में मनमुटाव है जैसे झूठ को स्थापित किया जाए।
कई अखबारों ने अपने संपादकीय पृष्ठ पर वरिष्ठ लेखक पुष्परंजन का आलेख ‘ चीन की धूर्तता को समझना जरूरी ‘ है को छापा है।विसंगति ये कि हेडलाइन में चीन की नकारात्मक भूमिका का संदेश देने वाले इस पूरे आलेख में सिर्फ और सिर्फ मोदी सरकार को निकम्मा,नाकारा और फेल बताने की कोशिश की गई है।2019 के चुनावों के बाद मोदी सरकार की श्रृंखलाबद्ध उपलब्धियों और पिछले कोरोना प्रसार में उसकी सारी सफलता को भुला कर वर्तमान चूक में अपराधी की तरह पेश किया गया है।
इस आलेख में बड़ी चालाकी से चीन को दाता और भारत को भिखारी की तरह दिखाने का प्रयास किया गया है।एक जगह तो भारत द्वारा दी गई वैश्विक सहायता के लिए घर में नहीं दाने ,अम्मा चली भुनाने जैसे मुहावरे का प्रयोग किया गया है।
इस आलेख में बाइडेन सरकार को नजीर की तरह पेश किया गया है ।जबकि इस नई अमरीकी सरकार ने अमानवीय ढंग से अपनी वैक्सीन बेचने के जुगाड़ के लिए भारत को वैक्सीन के सैंतीस अवयव देने से इनकार कर दिया था ।हकीकत ये भी है कि मोदी सरकार की कूटनीति के कारण उसे घुटने के बल बैठ कर अपने प्रतिबंधों को हटाने का आदेश 48 घण्टे में देना पड़ा था।
लब्बोलुआब ये है कि देश में व्यक्तिगत घृणा से सने संपादक और बुद्धिजीवी इस मुश्किल दौर में अपने देश की लड़ाई में साथ तो नहीं ही खड़े हैं बल्कि लोक को भड़काने के लिए अपनी मेधा का बेजां उपयोग कर रहे हैं।ऐसे बुद्धिजीवियों से ईश्वर देश की रक्षा करें…।
-संवेद अनु, गौहाटी