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अयोध्या स्थित श्रीरामजन्मभूमि प्रकरण को निष्कर्ष तक पहुंचाने में जिन महानुभावों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही, उनमें अयोध्या के जिलाधीश श्री के.के. (कान्दनगलाथिल करुणाकरण) नायर का नाम बहुत आदर से लिया जाता है। उनका जन्म 11 सितम्बर, 1907 को केरल के अलपुझा जिले के कुट्टनाद गांव में हुआ था। मद्रास वि.वि. तथा अलीगढ़ (उ.प्र) के बारहसेनी कालिज के बाद उन्होंने लंदन वि.वि. में शिक्षा प्राप्त की। केवल 21 वर्ष की अवस्था में उन्होंने अति प्रतिष्ठित आई.सी.एस. की प्रतियोगिता उत्तीर्ण की। उ.प्र. में कई जगह रहने के बाद 1949 में वे फैजाबाद के जिलाधिकारी बनाये गये।
श्री नायर प्रखर रामभक्त थे। उन्हें यह देखकर बड़ा दुख होता था कि श्रीरामजन्मस्थान पर एक वीरान ‘बाबरी मस्जिद’ खड़ी है, जिसमें नमाज भी नहीं पढ़ी जाती। उन्होंने अपने सहायक जिलाधिकारी श्री गुरुदत्त सिंह से विस्तृत सर्वेक्षण कर रिपोर्ट बनाने को कहा। उससे उन्हें पता लगा कि अयोध्या के लोग वहां पर भव्य मंदिर बनाना चाहते हैं। सरकार के अधिकार में होने से जमीन के हस्तांतरण में कोई बाधा भी नहीं है। इसी बीच 22-23 दिसम्बर, 1949 की रात में हिन्दुओं के एक बड़े समूह ने वहां रामलला की मूर्ति स्थापित कर दी। कुछ लोगों का कहना है कि यह सब श्री नायर की शह पर ही हुआ था। जो भी हो; पर रात में ही रामलला के दिव्य प्राकट्य की बात सब ओर फैल गयी। हजारों लोग वहां आकर नाचने-गाने और कीर्तन करने लगे।
उस समय जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे। वे स्वभाव से हिन्दू विरोधी थे। उन्होंने उ.प्र. के मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लभ पंत को कहा कि मूर्तियों को वहां से हटाया जाए; पर श्री नायर ने स्पष्ट कर दिया कि इससे वहां दंगा हो जाएगा। फिर भी जब नेहरुजी ने जिद की, तो उन्होंने कहा कि पहले आप मुझे यहां से हटा दें, फिर चाहे जो करें। इस पर मुख्यमंत्री ने उन्हें प्रशासनिक सेवा से निलम्बित कर दिया; पर पद छोड़ने से पहले उन्होंने ऐसी व्यवस्था कर दी, जिससे वहां लगातार पूजा होती रहे। उन्होंने सब तथ्यों को भी ठीक से लिखवाया, जिससे आगे चलकर इस मुकदमे में सत्य की जीत हुई।
श्री नायर ने निलम्बन के निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी और विजयी हुए। इससे नेहरुजी खून का घूंट पीकर रह गये; पर शीघ्र ही वे समझ गये कि सरकार उन्हें परेशान करती रहेगी। अतः 1952 में प्रशासनिक सेवा से त्यागपत्र देकर वे प्रयागराज उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे; पर राममंदिर प्रकरण से अयोध्या और आसपास के हिन्दू उन्हें अपना सर्वमान्य नेता मानने लगे। सब लोग उन्हें ‘नायर साहब’ कहते थे। सबने उनसे राममंदिर का संघर्ष न्यायालय के साथ ही संसद में भी करने के लिए राजनीति में आने का आग्रह किया।
सबके आग्रह पर श्री नायर सपरिवार हिन्दू हितैषी दल ‘भारतीय जनसंघ’ के सदस्य बन गये। पहले उनकी पत्नी श्रीमती शकुंतला नायर चुनाव लड़कर उ.प्र. विधानसभा की सदस्य बनीं। 1962 में श्री नायर बहराइच से तथा श्रीमती नायर कैसरगंज से लोकसभा सांसद बनीं। नायर साहब के नाम के कारण उनका कारचालक भी उ.प्र. में विधायक बन गया। उनकी पत्नी तीन बार कैसरगंज से सांसद रहीं। आपातकाल में दोनों इंदिरा गांधी के कोप के शिकार होकर जेल में रहे। सात सितम्बर, 1977 को लखनऊ में श्री नैयर का देहांत हुआ।
श्री नैयर केरल के मूल निवासी थे; पर वहां वामपंथी और कांग्रेस सरकारों के कारण उन्हें आदर नहीं मिला। अब विश्व हिन्दू परिषद के प्रयास से वहां ‘के.के.नायर स्मृति न्यास’ गठित कर उनके जन्मग्राम में एक भवन बन रहा है, जहां सेवा कार्यों के साथ ही प्रशासनिक सेवा के इच्छुक युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा। श्रीराम मंदिर के लिए लाखों वीरों ने अपनी प्राणाहुति दी है। यद्यपि श्री के.के.नायर का काम अलग प्रकार का था; पर वह भी अविस्मरणीय है।