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संपादक महोदया,
बराक घाटी भा ज पा अब भा ज पा नहीं बल्कि बा ज पा (बंगाली जनता पार्टी) बना दी गई है। बराक घाटी में चाय जनगोष्ठी एवं हिन्दी भाषी लोगों का भी आबादी है, यह बात हमारे राजनेता लोगों को केवल चुनाव के समय ही नजर आती हैं। हिंदीभाषी तथा चाय जनगोष्ठी के लोगों को चुनाव के समय, नेता गण अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु एक उपयोगी बस्तु के रूप में देखते हैं, चुनाव के बाद इन वोटरों, कार्यकर्ताओं का कोई मुल्य नहीं रहता है। इसके लिए कुछ हमारे ही लोग जिम्मेदार हैं, जबकि हिंदीभाषी एवं चाय बगान इलाके में ही बराक भा ज पा को प्रारंभिक समय में हिंदीभाषी और चाय बगान के लोगों ने अपना मत देकर भा ज पा को खड़ा किया, एक ऐसा भी समय था जब भा ज पा का समर्थन करने पर लोग अन्य राजनैतिक दलों से डरते थे, उस समय हिंदीभाषी एवं चाय जनगोष्ठी ही एक मात्र शक्ति थी, आज वही निर्बल और बंचित कर दिए गए हैं। यह बड़े दुःख की विषय है कि घाटी के तीनों जिलों में एक भी हिंदी भाषी या चाय जनगोष्ठी के कार्यकर्ता को उनके कर्मानुसार पद नहीं दिया गया। विभिन्न विधानसभाओं में से चाय जनगोष्ठी और हिंदी भाषी विधायक पद तो छीन ही गया था, अब मंडल या बुथ स्तर पर भी ढुंड़कर हिंदीभाषी नहीं मिल रहा है। वर्तमान भा ज पा का यह विश्वास है कि ये हिंदी भाषी एवं चाय जनगोष्ठी,चाहे कुछ भी हो वोट तो हमें ही देंगे क्योंकि उनके पास दुसरा विकल्प नहीं है और यह कुछ हद तक सही भी है क्योंकि हमारे लोग तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर अपना वोट देकर इन विधायकों, सांसदो को सत्ता पर बिठाते हैं।
अंत में यही कहना चाहूंगा कि अगर ऐसा ही हम उपेक्षित रहे तो हमारे अगली पीढ़ी हमको क्षमा नहीं करेगी, अभी भी समय है हमें एकजुट होकर कोई निर्णय लेने चाहिए।
चंद्रशेखर ग्वाला मासिमपुर, काछार