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15 फरवरी/जन्म-दिवस सहज और सरल गोपाल व्यास

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राजनीति में कोई स्थान पाते ही व्यक्ति का व्यवहार बदल जाता है; पर कुछ लोग इसमें अपवाद भी होते हैं। 15 फरवरी, 1932 को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जन्मे श्री गोपाल व्यास भी ऐसे ही थे। उन्होंने जबलपुर से अभियन्ता की पढ़ाई की तथा फिर भिलाई स्टील कारखाने में लम्बे समय तक नौकरी की। वे बालपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गये थे।
विभिन्न जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए वे प्रांत कार्यवाह बने। नौकरी से अवकाश का पूरा समय संघ कार्य के लिए प्रवास में लगाते थे। 1984 में नौकरी छोड़कर उन्होंने प्रचारक के नाते संघ कार्य करने का निश्चय किया। उनके अनुभव को देखते हुए उन्हें महाकौशल प्रांत प्रचारक की जिम्मेदारी दी गयी। उन्होंने जबलपुर से रायपुर तक पदयात्रा की। लगभग 350 कि.मी की इस यात्रा से अनेक नये गांवों में संपर्क हुआ। बहुत से नये लोग मिले, जिससे फिर वहां संघ की शाखाओं का विस्तार हुआ।
1975 के आपातकाल में वे पूरे समय रायपुर जेल में बंद रहे। इस दौरान उन्होंने वकालत की पढ़ाई कर डाली। जेल से आकर वे फिर संघ के काम में लग गये। प्रचारक जीवन से विरत होकर उन्होंने अपने घर पर ही स्टेशनरी और परचून की दुकान खोल ली, जिससे वे ईमानदारी और सम्मान से जीवनयापन कर सकें। 2002 से 2006 तक वे विश्व हिन्दू परिषद के संयुक्त महामंत्री भी रहे। इस दौरान उन्होंने केन्या, दक्षिण अफ्रीका, अमरीका, कनाडा, इंग्लैंड, नार्वे, नेपाल, हालैंड, थाइलैंड, श्रीलंका, सिंगापुर, मलेशिया, त्रिनीदाद, माॅरीशस आदि देशों की यात्रा कर विश्व हिन्दू परिषद के काम का विस्तार किया।
2006 में उन्हें छत्तीसगढ़ से राज्यसभा में भेजा गया। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। इस पर भी सांसद के नाते प्राप्त भत्ते वे दूसरों पर खर्च कर देते थे। प्रचारक रहते हुए उनके बेटे का असमय निधन हो गया। इस वज्रपात को सहन करते हुए वे संगठन के काम में लगे रहे। सांसद रहते हुए वे दिल्ली में कार की बजाय आॅटो से चलना पसंद करते थे।
राज्यसभा सांसद बनने पर छत्तीसगढ़ भवन में उन्हें एक कक्ष आवंटित हुआ; पर वह खाली नहीं था। अतः सरकार ने उन्हें जनपथ होटल में ठहरा दिया। वहां एक सप्ताह का किराया डेढ़ लाख रु. था। व्यास जी उसे छोड़कर विश्व हिन्दू परिषद कार्यालय आ गये तथा आचार्य गिरिराज किशोर के साथ नेपाल के प्रवास पर चले गये। उन्होंने राज्यसभा महासचिव को पोस्टकार्ड लिखकर वह डेढ़ लाख रु. नक्सली हमले में मारे गये पुलिसकर्मियों को देने का आग्रह किया।
राज्यसभा में वे नियमित रूप से उपस्थित होते थे। अपने विषय की अच्छी तैयारी कर वे हिन्दी, संस्कृत तथा अंग्रेजी में बोलते थे। राज्यसभा में उन्हें एक आदर्श सदस्य माना जाता था। जब केन्द्र सरकार ने यौन शिक्षा को बच्चों के स्कूली पाठ्यक्रम में लाना चाहा, तो उन्होंने तर्कपूर्ण विधि से इसका विरोध किया। सत्ताधारी कांग्रेस के कई सांसद भी इसके विरुद्ध थे। व्यास जी के कारण वे भी खुलकर सामने आये और वह निर्णय वापस हो गया।
भारत और भारतीयता के प्रबल पक्षधर होने के नाते वे राज्यसभा में एक विधेयक लाये, जिसमें भारत के लिए इंडिया शब्द प्रयोग न करने की बात कही गयी थी। जनहित के प्रति प्रतिबद्धता के कारण उनकी सांसद निधि सदा समय से पहले ही खर्च हो जाती थी। सहज और सरल व्यास जी सादगी की प्रतिमूर्ति थे। वे सदा धोती, कुर्ता, जैकेट, मफलर तथा टोपी पहनते थे। आठ नवंबर, 2024 को रायपुर में 93 वर्ष की भरपूर आयु में उनका देहांत हुआ। उनकी इच्छानुसार उनकी देह मैडिकल के छात्रों के अध्ययन, अभ्यास और शोध के लिए रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान को दान कर दी गयी।

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