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आजादी के आंदोलन में कास गंज जिले के स्वतंत्रता सेनानियों की एक से बढ़कर एक भूमिका रही। इनमें पटियाली तहसील के शाहपुर टहला गांव में 16 सितंबर 1904 को जन्में शहीद महावीर सिंह राठौर का नाम स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सम्मान के साथ लिया जाता है। बालपन से ही कुछ कर गुजरने की इच्छा ने उन्हें महान बलिदानी बना दिया। शहीद भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव के साथ उन्होंने क्रांति की पटकथा में कई अध्याय जोड़े। वे दिल्ली असेंबली में बम फेंकने एवं ब्रिटीश अफसर सांडर्स के हत्याकांड में शामिल रहे। महावीर सिंह किशोर उम्र से ही स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सेदारी करने लगे। किशोर उम्र में बच्चों की टोलियां बनाकर उन्होंने अमन सभा में ब्रिटिश अफसरों के सामने अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में नारे लगाए और महात्मा गांधी के समर्थन में नारेबाजी की। इस वाकये के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें विद्रोही घोषित कर दिया। महावीर सिंह के मन में धधकी आजादी की ज्वाला और तेज होने लगी और वे निरंतर आजादी की धुन में लगे रहे। इंटरमीडिएट की शिक्षा हासिल करने के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए कानपुर के डीएवी कॉलेज में पहुंचे। जहां चंद्रशेखर आजाद के संपर्क में आए और उनकी सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन के सदस्य बन गए। यहीं उनका परिचय भगत सिंह से हुआ और स्वतंत्रता सेनानियों का कारवां बढ़ता चला गया।
1929 में दिल्ली की असेंबली में बम फेंका गया और अंग्रेजी अफसर सांडर्स की हत्या की गई। इन दोनों ही मामलों में भगत सिंह, राजगुरु सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त सहित उन्हें गिरफ्तार किया गया। मुकदमे की सुनवाई लाहौर में हुई। इस मामले में महावीर सिंह को भगत सिंह का सहयोग करने में आजीवन कारावास का दंड सुनाया गया। ब्रिटीश सरकार ने उन्हें पंजाब, तमिलनाडु की जेलों में रखा। इसके बाद उन्हें अंडमान की सेल्यूलर जेल में रखा गया। क्रांतिकारियों के साथ अंडमान की जेल में महावीर सिंह ने भूख हड़ताल की। अंग्रेजों ने भूख हड़ताल छुड़वाने के लिए उनके मुंह में जबरन दूध डालने का प्रयास किया, लेकिन महावीर सिंह निरंतर विरोध करते रहे। जिससे दूध उनके फेफड़ों में चला गया और उनकी मौत हो गई। अंग्रेजों ने उनका शव पत्थरों से बांधकर समुद्र में प्रवाहित कर दिया। इस तरह से 17 मई 1933 में महावीर सिंह 29 वर्ष की अल्पायु में ही वीरगति को प्राप्त हो गए।