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इतिहास में कई तारीखों को उनके सुखद या दुखद परिणाम के कारण याद किया जाता है। 20 जून, 1940 को सुभाष चंद्र बोस डा. हेडगेवार से मिलने नागपुर आये; पर उनकी अत्यधिक बीमारी के कारण भेंट नहीं हो सकी; और अगले दिन डा. हेडगेवार का निधन हो गया।
20 जून की सुबह नागपुर के संघचालक बाबासाहब घटाटे के घर एक कार आयी। उसमें श्री रामभाऊ रुईकर के साथ थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस। वे डा. हेडगेवार से मिलना चाहते थे। वहां उपस्थित स्वयंसेवकों ने बताया कि पिछले कई दिन से उनका बुखार 103-104 से नीचे नहीं उतरा है। उन्हें नींद भी नहीं आती। अभी झपकी लगी है। यदि कोई जरूरी काम हो, तो जगाएं। नेताजी ने कहा, ‘‘काम तो बहुत जरूरी है; पर उनकी बीमारी की बात सुनकर फिलहाल तो उन्हें देखने ही आया था। मैं फिर कभी आऊंगा।’’ यह कहकर उन्होंने डा. हेडगेवार की ओर देखा, प्रणाम किया और चले गये।
उनके जाते ही डा. हेडगेवार की आंख खुल गयी। जब उन्हें सुभाष बाबू के आने का पता लगा, तो भेंट न होने का उन्हें बहुत दुख हुआ। वे कल शाम से ही इसकी प्रतीक्षा में थे। एक दिन पूर्व डा. हेडगेवार के एक पुराने मित्र आये थे। वे कोलकाता में उनके क्रांतिकारी जीवन के साथी थे। उन्होंने ही सुभाष बाबू के आने की बात कही थी; पर अब कुछ नहीं हो सकता था। उन्होंने भी सुभाष बाबू का नाम लेकर हाथ जोड़े और मन ही मन उन्हें प्रणाम किया।
असल में सुभाष बाबू को डा. हेडगेवार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में पूरी जानकारी थी। वे आजादी की अपनी योजना में उनका सहयोग लेना चाहते थे। इसीलिए वे डा. हेडगेवार से मिलना चाहते थे। इससे पहले भी वे एक बार ऐसा प्रयत्न कर चुके थे। जुलाई, 1939 में डा. हेडगेवार नासिक के पास देवलाली में थे। तब सुभाष बाबू मुंबई में थे। उन्होंने भेंट का समय निश्चित करने के लिए अपने परिचित डा. वसंतराव रामराव संझगिरि को डा. हेडगेवार के पास देवलाली भेजा। डा. संझगिरि ने संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता बालाजी हुद्दार को साथ लेकर डा. हेडगेवार से भेंट की।
पर उस समय भी डा. हेडगेवार तेज बुखार एवं निमोनिया से ग्रस्त थे। दोनों लोग लगभग आधा घंटा वहां बैठे तथा सुभाष बाबू की इच्छा एवं योजना उन्हें बताई; पर डा. हेडगेवार अधिक बात करने की स्थिति में नहीं थे। उन्होंने डा. संझगिरि से कहा कि आप फिर कभी नागपुर आयें। तब आपसे विस्तार से बात हो सकेगी। कुछ दिन बाद डा. हेडगेवार नागपुर लौट आये।
18 जुलाई, 1939 को बालाजी हुद्दार और डा. संझगिरि का लिखा एक पत्र डा. हेडगेवार को मिला। उसमें लिखा था, ‘‘हम जिस काम के लिए आपसे मिलने आये थे, उसका महत्व आप समझते ही हैं। आपने आग्रहपूर्वक नागपुर आने का निमंत्रण दिया, इसके लिए हम आभारी हैं; पर कुछ अड़चन के कारण अभी यह संभव नहीं है। क्या आप 20 जुलाई को बंबई आ सकेंगे। हमारी प्रबल इच्छा है कि उस दिन आप हमें यहां मिलें। हमें विश्वास है कि आप निराश नहीं करेंगे। संबंधित व्यक्ति 20 जुलाई की रात को यहां से चले जाएंगे। अतः केवल एक दिन के लिए ही आइये। इससे हम सबके हित की कोई योजना बना सकेंगे।’’





















