भारत में तेजी से बढ़ते गैर-संक्रामक रोगों को रोकने के लिए तत्काल आधार पर राज्य-केंद्रित नीतियों और हस्तक्षेपों की जरूरत है। जिस गति से मधुमेह के मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है, वह चिंताजनक होने के साथ प्रत्येक स्वास्थ्य प्रणाली के लिए चुनौतीपूर्ण भी है।
अमित बैजनाथ गर्ग, वरिष्ठ पत्रकार
साल 2050 तक दुनियाभर में डायबिटीज से पीड़ित लोगों की संख्या दोगुनी हो जाएगी यानी कि कम से कम 1.3 अरब लोग डायबिटीज के शिकार होंगे। साल 2021 तक डायबिटीज मरीजों की संख्या 529 मिलियन थी, जिसके आने वाले 27 सालों में दोगुना होने का अनुमान है। द लैंसेट के नए अनुमान के अनुसार, आने वाले 30 सालों में दुनिया के किसी भी देश में डायबिटीज बीमारी की दर में कमी की उम्मीद नहीं है। जहां तक भारत का सवाल है तो यहां पर 101 मिलियन यानी कि 10 करोड़ लोगों को डायबिटीज है। वहीं 136 मिलियन लोग प्री-डायबिटिक हैं। इस अनुमान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुनिया में 2045 तक डायबिटीज से पीड़ित तीन चौथाई से अधिक एडल्ट कम आय वाले देशों में होंगे, जिनमें से 10 में से 1 से भी कम को देखभाल और इलाज की सुविधा मिलेगी।
रिपोर्ट बताती है कि भारत में 11.4 प्रतिशत लोग मधुमेह और 35.5 प्रतिशत लोग उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं। वहीं 15.3 प्रतिशत लोग प्री-डायबिटिक की स्थिति में हैं। देश के कुछ राज्य डायबिटीज के मामले में बहुत तेजी से आगे निकल रहे हैं। इनमें गोवा की 26.4 प्रतिशत आबादी, पुड्डुचेरी की 26.3 प्रतिशत आबादी और केरल की 25.5 प्रतिशत आबादी डायबिटीज की शिकार है। बाकी राज्यों जैसे यूपी, एमपी और बिहार में आने वाले सालों में एक बड़ी आबादी इसकी शिकार हो सकती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत की 15 प्रतिशत आबादी प्री-डायबिटीक है। इतना ही नहीं, 35.5 प्रतिशत आबादी हाइपरटेंशन और हाई कोलेस्ट्रॉल की शिकार है। लगभग 29 प्रतिशत लोग मोटापे से परेशान हैं। आंकड़े बताते हैं कि आने वाले सालों में भारत की एक बड़ी आबादी एक साथ कई बीमारियों की शिकार होगी।
डाटा के विश्लेषण के अनुसार, दुनिया में डायबिटीज की मौजूदा प्रसार दर 6.1 प्रतिशत है, जो इसे मृत्यु एवं निशक्तता के 10 प्रमुख कारणों में से एक बनाती है। क्षेत्रीय स्तर पर यह दर उत्तर अमेरिका और पश्चिम एशिया में सबसे अधिक 9.3 प्रतिशत है, जो 2050 तक बढ़कर 16.8 होने की संभावना है। वहीं लातिन अमेरिका और कैरेबियाई देशों में यह दर 11.3 प्रतिशत है। मधुमेह के लक्षण विशेष रूप से 65 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों में पाए गए हैं और उक्त जनसांख्यिकीय के लिए 20 प्रतिशत से अधिक की वैश्विक प्रसार दर दर्ज की गई। क्षेत्रीय आधार पर उत्तर अफ्रीका और पश्चिम एशिया में इस आयु-वर्ग में सर्वाधिक दर 39.4 प्रतिशत थी, जबकि मध्य यूरोप, पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया में यह सबसे कम 19.8 प्रतिशत थी।
इधर, मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में 28.6 प्रतिशत लोग सामान्य मोटापे से ग्रस्त हैं, वहीं 39.5 प्रतिशत लोग पेट (तोंद) के मोटापे से ग्रस्त हैं। अध्ययन में पाया गया कि 2017 में भारत में करीब 7.5 प्रतिशत लोगों को मधुमेह की समस्या थी। इसका मतलब हुआ कि तब से अब तक यह संख्या 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ गई है। राज्यों की बात करें तो मधुमेह के सर्वाधिक मामले गोवा (26.4 प्रतिशत) में हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में सबसे कम (4.8 प्रतिशत) मामले हैं। उच्च रक्तचाप के सबसे अधिक रोगी पंजाब में (51.8 प्रतिशत) हैं। वहीं संयुक्त राष्ट्र ने भी भविष्यवाणी की है कि 2050 तक विश्व की जनसंख्या लगभग 9.8 बिलियन हो जाएगी। इससे पता चलता है कि तब तक सात में से एक व्यक्ति डायबिटीज के साथ जी रहा होगा।
विशेषज्ञ कहते हैं कि डायबिटीज धीरे-धीरे लोगों को निगल रही है। ये बीमारी शुरू तो होती है शुगर के खराब मेटाबॉलिज्म से, लेकिन ये धीमे-धीमे हमारे ब्लड वेसेल्स, दिल, पेट, लिवर, किडनी, आंख और ब्रेन तक को अपना शिकार बना लेती है। उनका कहना है कि गैर-संचारी रोगों में तेजी से वृद्धि के लिए सर्वाधिक रूप से आहार, शारीरिक गतिविधियों और तनाव के स्तर जैसी जीवन-शैली को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि देश में मधुमेह और शारीरिक चयापचय से संबंधित अन्य गैर-संक्रामक रोगों के मामले पहले के अनुमान से अधिक हैं। उन्होंने कहा कि जहां देश के अधिक विकसित राज्यों में मधुमेह को लेकर स्थिरता आ रही है, वहीं अन्य कई राज्यों में यह अब भी पैर पसार रहा है।
अनुसंधानकर्ताओं ने माना कि भारत में तेजी से बढ़ते गैर-संक्रामक रोगों को रोकने के लिए तत्काल आधार पर राज्य-केंद्रित नीतियों और हस्तक्षेपों की जरूरत है। जिस गति से मधुमेह के मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है, वह चिंताजनक होने के साथ देश सहित पूरी दुनिया में प्रत्येक स्वास्थ्य प्रणाली के लिए चुनौतीपूर्ण भी है। लगभग सभी वैश्विक मामलों में 96 प्रतिशत मामले टाइप-2 मधुमेह के हैं। उनका दावा है कि राज्य सरकारों की रुचि इन आंकड़ों में होगी, क्योंकि इससे वे एनसीडी को सफलतापूर्वक रोकने तथा उनकी जटिलताओं को संभालने के लिए साक्ष्य आधारित हस्तक्षेप विकसित कर सकेंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि डायबिटीज को रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर प्रयास करने होंगे, तभी सार्थक परिणाम निकलेंगे।
अमित बैजनाथ गर्ग
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