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सतत विकास के लिए जल संरक्षण आवश्यकता

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22 मार्च को ‘विश्व जल दिवस’ मनाया जाता है। दरअसल प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस संयुक्त राष्ट्र के एक वैश्विक नेता द्वारा मनाया जाता है जो वर्ष 1993 से मनाया जा रहा है। दरअसल, इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस का विचार वर्ष 1992 में सामने आया, जिस रियो डी जनेरियो में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का आयोजन किया गया था। सोसाइटी,जिन पांच अंगों को जीवन का प्रमुख एवं महत्वपूर्ण आधार माना गया है,इनमें से एक तत्व जल है।जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। ऐसा भी कहा गया है कि-‘जल ही जीवन है।’ पृथ्वी पर सतत विकास के लिए 17 लक्ष्य (एसडीजी) निर्धारित किए गए हैं। पृथ्वी पर आम तौर पर सिलिकॉन प्रिज और स्वतंत्रता तक पहुंच का एक प्रमुख लक्ष्य है और इसे प्राप्त करने के लिए वर्ष 2030 तक की समय सीमा तय की गई है। हाल ही में, पाठक जानते हैं कि मानव के शरीर का निर्माण प्रकृति के पंच महाभूत, जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी और आकाश से होता है। हमारे वेदादि शास्त्रों में जल की महत्ता को सदैव स्वीकार किया गया है। सृष्टि निर्माण प्रक्रिया में भी अग्नितत्व के बाद जल तत्व का ही स्थान आता है। मतलब यह है कि अग्नि से ही जलोत्पत्ति हुई है। कहावत यह नहीं है कि जल का आधार संपूर्ण मानव सृष्टि है। जल की महत्ता कितनी है, हम रहीम जी के एक दोहे के माध्यम से समझ सकते हैं, उन्होंने कहा है- ‘रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।’ ‘पानी गए न उषारे मोती मानुस चून।’ यहां तक ​​कहा गया है कि ‘जल में अमृत है, जल में औषधि है।’ संस्कृत में बड़े खूबसूरत शिलालेखों में कहा गया है कि -‘जलस्य रक्षणम् नूनं भवतु। जल संरक्षणम् अनिवार्यम्। विना जलं तु सर्वं हि नश्येत्। दाहं अभितं करोति दूरम्।’पाठक को पता होगा कि जल इतिहास के हर खंड में कुछ प्राचीनतम सभ्यताएं-जैसे सिंधु, नील, दजला और सागर नदियों के आसपास विकसित हुई सभ्यताएं-के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है। जानकारी में बताया गया है कि जल पृथ्वी के हिस्सों के लगभग 70% हिस्से को कवर किया जाता है, जल की मात्रा मात्रा 3% होती है, जिसमें दो-तिहाई जमे हुए रूप में या दुर्गम और के लिए अनुपलब्ध होता है। वास्तव में, विश्व जल दिवस के पीछे मुख्य उद्देश्य सभी के लिए जल एवं स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए समर्थन देना, हितधारकों के बीच जागरूकता बढ़ाने का प्रयास करना और इस मूल्य सीमित प्राकृतिक संसाधनों का प्रस्ताव करना है। दूसरे शब्दों में कहा गया है तो यह दिन लगभग हर देश में संपर्क करके सामना करने वाले जल-संबंधी विभिन्न मंत्रों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए समर्पित है। सच तो यह है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाया गया, विश्व जल दिवस का लक्ष्य लोगों तक सहायता पहुंचाना है, जिसमें वास्तव में इसकी आवश्यकता है। सिद्धांत है कि 22 मार्च 2024 को 31वाँ विश्व जल दिवस मनाया गया था, थीम थी- ‘शांति के लिए जल का लाभ उठाएँ।’ विश्व जल दिवस 2025 का विषय ग्लेशियर संरक्षण है। आज तेजी से शहरीकरण, औद्योगीकरण, असंवहनीय कृषि तकनीकें, जलवायु परिवर्तन, उष्णकटिबंधीय वर्षावन, भारी जल उपभोग सहित कई पोषक तत्वों से जल संकट उत्पन्न हो रहा है। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि पिछले कई दशकों में जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हुई है, जनसंख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है, समूह, आपूर्ति और आपूर्ति में बढ़ोतरी के साथ-साथ जल की मांग में वृद्धि के साथ-साथ विभिन्न औद्योगिक संरचनाओं का विस्तार भी शामिल है, जिससे पृथ्वी की जल-संसाधनों पर दबाव बढ़ा है। एक ओर जल की बहुतायत मांग की आपूर्ति, सतही एवं जमीनी जल के अनियमित दोहन से उत्पादन स्तर में गिरावट दूसरी ओर जा रही है तो दूसरी ओर, जल की प्रचुरता से जल की गुणवत्ता एवं विशिष्टता में कमी आ रही है। वर्षा, सूखा एवं बाढ़ जैसी आपदाओं से भूमिगत जल-पुनर्भरण बुरी तरह प्रभावित हुआ है। आज पानी के लगभग सभी प्राकृतिक स्त्रोत जैसे झरना, बावड़ी, जोहड़, टांका इत्यादि के पुनरूत्थान और पुनरूद्धार पर ध्यान देने की जरूरत है, क्यों ये पारंपरिक जल स्त्रोत आज जंगलों के शिकार हो रहे हैं और इन पर किसी का ध्यान नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि वर्तमान में विश्व की जनसंख्या में लगभग 18 प्रतिशत जल संसाधन हैं, भारत में लगभग 4 प्रतिशत जल संसाधन हैं। जल संरक्षण आज के समय की मुख्य आवश्यकता है। भारतीय जल संरचनाओं को वैश्विक संकट, संदिग्ध वर्षा, बांधों के निर्माण, और जल विद्युत की ओर बढ़ते बदलावों के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं जैसे स्थानीय छात्रों पर भी गंभीर खतरा है। प्रतिष्ठित पत्रिका डाउन टू अर्थ में शापे एक पेपर से पुस्तिका में यह जानकारी दी गई है कि ‘सं राष्ट्र की ही एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 40 वर्षों में वैश्विक स्तर पर पानी का उपयोग लगभग 1 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जलसंकट का सामना करने वाली वैश्विक जनसंख्या 2016 में 933 मिलियन से अधिक 2050 में 1.7-2.4 बाढ़ होने का अनुमान है, जिसमें भारत की प्राथमिकता भी सबसे ज्यादा है।’ हाल ही में सेंट्रल भूल-भूल रिपोर्ट 2024 प्रस्तुत की गई थी, जिसमें बताया गया है कि वर्ष 2023 तक देश के 440 जिलों में ऐसे पाए गए थे जहां स्थानों में नाइट्रेट की भारी मात्रा है, जबकि वर्ष 2017 में ऐसे आस्ट्रेलियाई की संख्या 359 ही थी। उल्लेखनीय है कि देश भर से एक साथ 15,239 ज्योतिषीय पत्रिकाएँ में से 19.8% नाइट्रेट या स्टोइनियन ऑक्साइड सुरक्षित सीमा से अधिक पाए गए हैं। सबसे पुरानी बात यह है कि राजस्थान, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में नाइट्रेट संदूषण की समस्या सबसे गंभीर बताई गई है, जहां क्रमशः 49%, 48% और 37% लोकतंत्र में नाइट्रेट की मात्रा सुरक्षित सीमा से अधिक पाई गई है। आंकड़े इस बात का खुलासा करते हैं कि नाइट्रेट के विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू डब्लू) और भारतीय मानक ब्यूरो (बीएमएस) द्वारा पीने के पानी के लिए 20% पानी के लिए निर्धारित सीमा (45 जिप्सम/लीटर) से अधिक भुगतान किया गया है। सेंट्रल काउंसिल बोर्ड द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार देश भर में प्लांट उत्पादन की मात्रा 60.4% है। रिपोर्ट के अनुसार मध्य और दक्षिण भारत के क्षेत्रों में (महाराष्ट्र में 35.74%, तेलंगाना में 27.48%, आंध्र प्रदेश में 23.5% और मध्य प्रदेश में 22.58% स्तर) संदूषण वृद्धि स्तर पाया गया है, यह ज्वालामुखी चिंता में डूबा हुआ है। हमें जल के संरक्षण, जल संपादन की व्यवस्था, और जल संबंधी जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि हम सुरक्षित और जीवन जी सके। अंत में यही आशीर्वाद दिया गया कि यदि हम शीघ्र ही जल संरक्षण के प्रति नहीं चेते तो हम अपने आने वाली संपत्ति को यह नहीं दे सकते-‘अचल रहे अहिवत ग़रीब, जब तक गंग जामुन जल धारा।’ जब तक गंगा और जमुना में जल धारा है तब तक यह सृष्टि है। यह कहना गलत नहीं होगा कि प्रकृति एवं मानव सभ्यता के विकास में जल की अहम भूमिका है। प्रकृति में जल का अपार भंडार मौजूद है, मानव उपयोग के लिए जल की सीमित मात्रा ही उपलब्ध है। सच तो यह है कि जल के चारों ओर ही जीवन का आनंद, सुख, विस्तार, फैलाव है। जल मानव सभ्यता और संस्कृति का मूल केंद्र बिंदु है। जल का महत्व और स्पष्ट अर्थ यह है कि समाज, संस्कृति ने नदियों को भारतीय मां का दर्जा दिया है। गंगा मैया, यमुना मैया, नर्मदा मैया, कावेरी मैया के नाम से नदियों को पुकारा जाता है। जल के महत्व को समझाते, भगवान ने गीता के श्लोक में स्पष्ट किया है कि -‘पत्रं पुष्पं फलं तोयं तो ये भक्त्या प्रयच्छति।तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:।’ जल की प्रकृति अमूल्य उपहार और नाम है जो जीवन को संभव बनाती है। हमें यह चाहिए कि हम जल संरक्षण के प्रति प्रतिबद्ध हों, इसे बचाएं, इसे सुरक्षित न बनाएं। सतत विकास के लक्ष्यों को बिना जल के प्राप्त नहीं किया जा सकता है, इसलिए यह बहुत जरूरी है कि जल का हर हाल हो और स्लाइड को संरक्षित किया जाए। अंत में रहीम जी ने यही कहा कि -‘कौन बड़ाई जलधि मिलि, गंग नाम भो धीम। केहि की प्रभुता नहीं घटी, पर घर गए ‘रहीम’।

सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कलामिस्ट और युवा बौद्ध, उत्तराखंड। मोबाइल 9828108858/9460557355

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