अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा सुरक्षा दिवस पर विशेष
दिवस मनाने से नहीं मातृभाषा का उपयोग करने से होगी मातृभाषा की रक्षा- शशिकांत चौथाईवाले
प्रति वर्ष विश्व में २१ फरवरी यह अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा सुरक्षा दिन के रूप में पालन किया जाता है. विश्व के साथ भारत में भी बहुत उत्साह से विविध कार्यक्रमोंका आयोजन होता है. सभा समितियों में अच्छे वक्ता, साहित्यिक, चिंतक मातृभाषा का महत्व, जीवनमें उसका स्थान..उसके लाभ आदि विषयों पर सारगर्भ प्रबोधन करते हैं. समाजमें मातृभाषा के लिए प्रेम तथा जागरण लेने हेतु सारे उपक्रम आवश्यक और स्वागतार्ह हैं.
भारत के संदर्भ में कुछ बातों का गंभीरता से सभी ने विचार करना जरूरी है. डेढ़ सौ साल तक अंग्रेजों का शासन तथा मैकाले की शिक्षा के प्रभाव से भारत में अनेक लोगों की ऑंखों पर से अंग्रेजी चश्मा आज तक उतरा नहीं. मन में विचार आते है कि साल में मात्र एक दिन पालन करने से भाषा सुरक्षा होगी नहीं, कारण प्रत्यक्ष व्यवहार में सर्वत्र इसका पालन होता दीखता नहीं.
विद्यालय के छात्र को उसकी कक्षा पूछने से वह कक्षा का अर्थ ही समझता नहीं. बताने पर Class Six कहता है. अंग्रेजी माध्यम के विद्यलय के अनेक छात्र अपनी मात्रु भाषा में बोलते हैं किंतु उस में लिखना, पढ़ना जानते नहीं. कारण पूछने पर उत्तर देते हैं’हम अंग्रेजी माध्यम में पढते है’. उनके माता पिता भी गर्व के साथ कहते हैं ‘हमारा लडका अंग्रेजी बोलता है ‘ मैंने बहुतों को कहा कि अंग्रजी वा अन्य भाषा सीखना अच्छा है किंतु अपनी भाषा में लिखना पढ़ना नही आना यह लज्जा का विषय है. अपनी भाषा में लिखा साहित्य कब पढ़ोगे?
परिवारों मे मम्मी, पापा, अंकल ऑंटी आदि शब्दों का व्यवहार दिन प्रति दिन बढ़ रहा है. कभी कभी लगता है कि कुछ साल के बाद ये सारे शब्द अपनी भाषा के शब्दकोष का अंग बन जायेंगे, उसका अर्थ अंग्रेजी में Mother या Father लिखा जाएगाा.
रास्ते के दोनों ओर व्यावसायिक फलक अथवा दुकानों के नाम लिखे रहते हैं. कुछ अति उत्साही भाषाप्रेमी अपना भाषा के सिवाय अन्य भाषा के फलकों पर काली पोत देते है. किंतु अंग्रेजी फलकों को कोई भी छूता नहीं. यह विरोध केवल अपनी भाषा प्रेम के कारण है या दुूसराी भाषा के प्रति तिरस्कार के कारण है?
परिवार में विवाह, उपनयन, अन्न प्राशन. आदि या सार्वजनिक धार्मिक उत्सव (दुर्गापूजा़काली पूजा आदि) के निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में छापना क्या जरूरी है? अपनी मातृभाषा और या राष्ट्रभाषा हिंदी में क्यों नही? जिनको दोनो भाषा नही समझती ऐसे व्यक्ति को आधुनिक साधनों (WhatsAppजैसे) से बोल सकते है.
आजकल विशेष प्रसंगों पर अंग्रेजी में अभिनंदन अथवा शोक समाचार मोबाईल पर भजने की संख्या बढ रही है. अधिकांश समाचार अंग्रेजी में रहते हैं. Happy birth, Happy Dipawali……आदि वाक्य मातृभाषा में लिखनेसे अपनी भाषा का ही सन्मान बढेगा. सभा समिति में उपस्थित लोगें की सूचि बनाने के लिए सभा में एक खाता सभी के पाास भेजा जाता है. ९९ प्रतिशत लोग अपना नाम अंग्रेजी में लिखते है.
विश्व की विविध भाषाएं पढना अभिनंदनीय है. किंतु नित्य के व्यवहहार में अपनी मातृभाषा के स्थान विदेशी भाषा के शब्द व्यवहार कर उसी में बड़प्पन या आधुनिक समझना उचित नहीं. एक बार रशिया में भारत के राष्ट्रदूत केे रूप में एक महिला नेत्री को भेजा था . रशिया में कार्यभार ग्रहण करते समय कुछ कागजों पर उन्होंने अंग्रेजी में अपने स्वाक्षर किये. रशिया के सामान्य कर्मचारी ने सारे कागज लौटाकर उनको भारतीय भाषा में स्वाक्षर करने का अनुरोध किया था. भारत स्वतंत्र होने के दो साल बाद इस्रायल स्वतंत्र हुआ. हजार साल से अधिक काल पारतंत्र्य में वह के लोग उनकी अपनी मातृभाषा भूल गये थे. सारा जग हिब्रु भाषा को मृत भाषा कहता था. देश स्वतंत्र होने पर ५ साल के अंदर हिब्रु वहां की जनप्रिय मातृभाषा हुई.
मातृभाषा की सुरक्षा के लिए भारत में कम से कम निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना जरूरी है.
१) अपना नाम मातृभाषा में लिखें. धीरे धीरे अपने स्वाक्षर (Signature)भी मातृभाषा में करने प्रयास करना चाहिए.
२) निमंत्रण पत्र मातृभाषा अथवा राष्ट्रभाषा में छपाएं.
३). बोलचाल में अधिकतर मातृभाषा में ही बोलें. लडकों को मम्मी,पापा.अंकल. ऑंटी कीजगह मां काका, फुफी आदि शब्द सिखाएं. घरमें मातृभाषा में लिखना तथा पढना सिखाएं.
इस प्रकार. अनेक बातें करणीय हैं.यहां कुछ ही बातोंका उल्लेख किया है.इस के लिए व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर अभियान शुरु किया नहीं तो केवल साल में एक दिन मातृभाषा सुरक्षा दिवस पालन करने से भाषा सुरक्षा नही होगी। शशिकांत चौथाईवाले ( लेखक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक हैं)