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सिलचर (असम) की वर्तमान परिस्थिति बाढ़ पर ।

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बाढ़__
छाया अब तो  खौफ बाढ़ का, चारों ओर ।
चिंता में  अब  रात बीतती ,   डर में  भोर ।।
डूब  गए  हैं  गांव  न  जाने,   कितनी  दूर ।
कैसे  हो  भरपाई  सबकी ,   इसकी  पूर ।।
बिखर गया है घर तो अब है, टुकड़े  चार ।
नहीं दिख  रहा दूर-दूर तक, घर का  द्वार ।।
सड़कों पर ही देखो  इनकी, होती  शाम ।
एक सहारा इनका अब तो, रब  का नाम ।।
बहता है सामान सभी का, बनकर  धार ।
फिर से  कैसे  होगा  इनका, अब उद्धार ।।
सूनी  देखी  कई मात की,  उजड़ी  कोख ।
क्रन्दन का  मैं  देख रही हूं,  चित्र  अनोख ।।
भूखे  हैं  अब  हालत  इनकी,   हैं   बेहाल ।
साहस बैठा  इनके  अंदर,   बनकर  ‌ढाल ।।
देखो  प्रकृति  लेकर  आई,   कैसा  काल ।
फिर भी हिम्मत इनमें देखी, हुई  निहाल ।।
           ✍️ मधु पारख, सिलचर

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