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नई दिल्ली, 16 जून:प्रेस क्लब ऑफ इंडिया मे मनाया गया हिन्दी पत्रकारिता दिवस । हिंदी पत्रकारिता की चुनौतियों पर हुआ गहन मंथन:हिंदी पत्रकारिता के सामने एक ओर अंग्रेजी के वर्चस्व की चुनौती है तो दूसरी तरफ पूंजी और राजनीतिक सत्ता के तले दबाए जा रहे लोकतंत्र की भी चुनौती है। इन दोंनों से निपटने के लिए हिंदी को ज्यादा जिम्मेदारी और मजबूती से खड़े होना पड़ेगा। तभी उसका भविष्य बचा रह सकेगा। यह बात प्रेस क्लब आफ इंडिया में हिंदी पत्रकारिता की 196 वीं जयंती के मौके पर आयोजित `हिंदी पत्रकारिताः चुनौतियां और भविष्य’ विषय एक संगोष्ठी में उभर कर आई।
बैठक मे मांग की गई की मीडिया संस्थाओं की स्वायतता व प्रेस की आजादी को बचाए रखने के लिए प्रेस कमीशन का तत्काल गठन हो। पत्रकारों की मान्यता के मामले मे बढ़ते सरकारी हस्तक्षेप पर चिंता जताई गई।
प्रोफेसर अभय कुमार दुबे ने कहा कि प्रसार संख्या और दर्शक संख्या की बड़ी संख्या के बावजूद अंग्रेजी के सामने अपने ही देश में आज भी हिंदी को वह हैसियत नहीं मिली है जो मिलनी चाहिए। दूसरी बात यह है कि पत्रकारिता ने अपने को सरकारी प्रचार का माध्यम बना लिया है। वह बिना पूछे ही यह रटे जा रही है कि भारत में अगले 25 साल तक अमृत काल चलने वाला है। लेकिन उसने कहीं भी यह बताने की कोशिश नहीं कि यह अमृत काल क्या है। देशबंधु के संपादक और प्रेस कौंसिल के सदस्य जयशंकर गुप्त ने कहा कि पत्रकारों ने सवाल पूछना बंद कर दिया है और दलाली की भूमिका अपना ली है। छह महीने से प्रेस कौंसिल आफ इंडिया का अध्यक्ष नियुक्त नहीं किया गया लेकिन इस बारे में सरकार से कोई पूछ नहीं सकता क्योंकि प्रधानमंत्री 8 साल से प्रेस कांफ्रेंस ही नहीं कर सके हैं।
वरिष्ठ पत्रकार प्रोफेसर रामशरण जोशी ने कहा कि पचास साल पहले भी इसी प्रेस क्लब में यह बहस हो रही थी कि सरकार के लिए प्रतिबद्ध प्रेस होनी चाहिए या नहीं। तब तमाम बड़े संपादकों ने यहां इसका प्रतिरोध किया था। आज बिना बहस और प्रतिरोध के ही प्रेस(मीडिया) प्रतिबद्ध हो गया है। यह सब पूंजी का खेल है। सरकार ने प्रेस आयोग की सिफारिशों को चुनिंदा तरीके से लागू किया और अब तो वह इस बारे में ध्यान ही नहीं देती क्योंकि उसकी कमान तो कारपोरेट के हाथ में है।
इलेक्ट्रानिक मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार शरद दत्त ने कहा कि हिंदी पर अंग्रेजी थोपने की परंपरा पुरानी है। आकाशवाणी और दूरदर्शन में अंग्रेजी की खबरें ही हिंदी वालों को थमा दी जाती रही हैं। वे उन्हीं की घिसी पिटी अभिव्यक्ति और शब्दावली में जनता तक समाचार पहुंचाते रहे हैं। हिंदी समाज सतर्क तरीके से ही इसे तोड़ सकता है। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार अरुण कुमार त्रिपाठी ने कहा कि जुगल किशोर शुक्ल का “ उदंत मार्तंड” अखबार 30 मई 1926 को निकला था और इसीलिए हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। उनका अखबार डेढ़ बरस में बंद हो गया लेकिन कुछ समय बाद शुक्ल जी ने फिर एक अखबार निकाला। देशद्रोह का पहला मुकदमा भी हिंदी दैनिक अखबार समाचार सुधावर्षण पर किया गया था और उसे संपादक श्याम सुंदर सेन ने जीता था।
हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर अपने आरंभिक सम्बोधन मे प्रेस क्लब आफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा ने पत्रकारों को अपना काम करने से रोकने मे तरह तरह के हथकंडे इस्तेमाल किए जा रहे हैं, जिससे से प्रेस की आजादी पर भयावह संकट मंडरा रहा है। क्लब के सेक्रेटरी जनरल विनय कुमार ने कहा कि हिन्दी उर्दू और बाकी भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता को और मजबूत बनाने के लिए विभिन्न तरह के कार्यकर्मों की नई परंपरा शुरूआत की और इस सिलसिले को जारी जारी रखेंगे। गोष्ठी का संचालन वरिष्ठ पत्रकार व कला समीक्षक रवींद्र त्रिपाठी ने किया। राजधानी दिल्ली में शाम को अचानक आए भंयकर तूफान और ओला वृष्टि के बावजूद गोष्ठी का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया।





















