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क्यों भारतीय छात्रों में बढ़ रही है आत्महत्या की घटनाएं

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जिंदगी की भागमभाग में ज्यादातर लोगों में तनाव, गुस्सा, परेशानी, डर, अवसाद का भाव देखने को मिलता है, जरा सी डांट-फटकार या घर में नोकझोंक होने पर शीघ्र अनुचित निर्णय लेते है। आज के आधुनिक युग में छोटे बच्चे से लेकर बड़े बुजुर्ग, पढ़े- लिखे और अमीर से लेकर गरीब तक सभी वर्ग में आत्महत्या की घटनाएं अत्यधिक बढ़ती जा रही है, हर रोज आत्महत्याओं की खबरें देखने-सुनने को मिलती है। इसी समस्या की ओर जागरूकता दिवस के रूप में “विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस” दुनियाभर में हर साल 10 सितंबर को मनाया जाता है, 2003 से दुनिया भर में विभिन्न गतिविधियों के साथ आत्महत्याओं को रोकने के लिए विश्वव्यापी प्रतिबद्धता और कार्रवाई करने के लिए यह विशेष दिन है। हर 40 सेकेंड में कोई न कोई अपनी जान लेता है। विश्व में हर साल 7-8 लाख लोग आत्महत्या के कारण अपनी जान गवांते है। 77% वैश्विक आत्महत्याएं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती है। आत्महत्या 15-19 वर्ष के बच्चों में मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है। लैंसेट रिपोर्ट के अनुसार, भारत में आत्महत्या की दर 15-29 आयु वर्ग में सबसे अधिक थी। भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है, हर दिन लगभग 28 ऐसी आत्महत्याएं होती हैं। 2022 में आत्महत्या से 9,478 छात्र, 2021 में 9,905 और 2020 में 10,159 छात्रों की मौत हुई। आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है, जीवन तो निरंतर चलने का नाम है जिसमें सुख-दुख आते रहते है। समस्याओं से डर जाना या हार मान लेना तो कमजोरी है और आत्महत्या उसी कमजोरी पर कायरता की निशानी है। पशु-पक्षी भी कभी हार नहीं मानते और कभी आत्महत्या नहीं करते, वो हर हाल में जीना सीख जाते हैं, हम तो फिर इंसान हैं, हमारे पास विवेक बुद्धि है, हम शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम हैं, मदद करने के लिए रिश्ते- नाते, संसाधन, संस्थाएं, प्रशासन, नियम, कानून और अन्य सुविधाएं हैं, हम हार क्यों मानते है। क्या हम दुनिया के सबसे दुखी लोग हैं? नहीं, कदापि नहीं, लोग हमसे ज्यादा समस्याओं से जूझ रहे हैं। जिंदगी के प्रति सिर्फ हमारा नजरिया बदल गया है, जब हम लोगों की समस्याओं को जानेंगे तो पता चलेगा कि हमारी समस्या दूसरों की तुलना में कुछ भी नहीं और समय कभी एक सा नहीं रहता। समस्याओं को बढ़ाने में हमारा सबसे बड़ा हाथ है, दूसरों पर हमारा अति विश्वास, अति-उम्मीद या निर्भरता, हमारे व्यवहार का प्रभाव, बुरी संगत, बुरी आदतें, लालच, जागरूक न होना, नियमों का उल्लंघन करना, संयम व संतोष की कमी, आत्मचिंतन का अभाव, अपनो के साथ समस्या साझा न करना, लोग क्या कहेंगे यह सोचकर डर जाना, समाज में स्टेटस का दिखावा करना, वास्तविकता को झुठलाना, जिम्मेदारी व कर्तव्य से दूर भागना, नकारात्मक विचारों का जाल बुनना, परिस्थितीनुसार सामंजस्य स्थापित न करना, आवेश में अनुचित निर्णय लेन , आत्मग्लानि या दबाव में रहना ऐसी जटिलताएं मनुष्य द्वारा खुद निर्माण की हुई होती है, जिन्हें वह अपने सूझबूझ विवेक बुद्धी से सुलझा सकते है। समस्याओं से डरकर भागना कायरता और बुजदिली कहलाती है, कोई भी समस्या डर से नहीं बल्कि उस समस्या का मुकाबला करने से दूर होती है। ईमानदारी और सच्चाई से जीना है तो लोकलाज कभी न सोचें चाहे कितना ही संघर्ष हों। विश्व की आधी आबादी संघर्ष जारी है और इसे ही कहते है जिंदादिली, क्यों जिंदगी अनमोल है, पूरी दुनिया की दौलत बेचकर भी एक पल की जिंदगी नहीं खरीद सकते। आत्महत्या को रोकना अक्सर संभव होता है और हम सभी इसे रोकने में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। छोटी सी परवाह जीवन बचा सकती है और संघर्षरत व्यक्ति में आशा की भावना पैदा कर सकती है। संघर्ष करने वालों में सकारात्मक प्रोत्साहन, आत्मविश्वास जगाकर उन्हें सशक्त और हौसले से मजबूत करना हैं। चुनौतियाँ, असफलताएँ, पराजय और अंततः प्रगति, वही हैं जो आपके जीवन को सार्थक बनाती हैं। कभी हार न मानने की आदत ही जीत की आदत बन जाती है, इसलिए कुछ भी हो लेकिन हार नहीं मानना है और जितनी भी जिंदगी मिली है जिंदादिली से जियो। 

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