यह क्रूर आततायियों द्वारा सनातन संस्कृति के जन-सामान्य की नियति है कि हमारी एकता के अभाव में मुट्ठी भर आक्रांताओं की संगीनों के साये में “चरगोला एक्सोडस” जैसे इतिहास के पन्नों से जानबूझकर फाड दिये गये मार्मिक काण्ड की स्मृति में आज हमारी पीढी मूक श्रद्धांजलि देने को अभिशप्त है।
हाँ ! हमें कुछ उपाधियाँ दी गयी हैं ! जैसे-“भईया,बिहारी और कुली” ! और ये उपाधियाँ हमेशा-“कुलीन” लोग देते आये हैं! और यही तथाकथित कुलीन लोग अपने व्यवसाय के लिये,खेत, चायबागान,भवन-निर्माण,ईंट भट्ठों, और व्यावसायिक गतिविधियों में बोझे ढोने के लिये केवल असम ही नहीं अपितु दुनिया के सभी कोनों में दिवा स्वप्न दिखाकर हमें अपना गुलाम बनाते आये हैं ! इन्हीं लोगों को एक उपाधि दी जा सकती है-“कन्जर्वेटिव”। वास्तविकता है कि ये डरे हुवे लोग-“रुढिवादी” हैं।
इतिहास साक्षी है कि-“असम” के अफ्रीकी जंगलों जैसे भयावह क्षेत्र में-“ब्रिटिश-गवर्मेंट” चाय की खेती के साथ-साथ अपने शासित सीमावर्ती क्षेत्र को सुरक्षित करने के उद्देश्य से १९ वीं
शताब्दी में भी हमारे बहुत सारे पूर्वजों को अच्छी आजीविका और सुन्दर भविष्य का विश्वास दिलाकर यहाँ लायी, मेरा अनुभव कहता है कि विश्वास और भ्रम में अधिक अंतर नहीं होता !
फिर संगीनों की नोक पर हमसे यहाँ के जंगलों को साफ कराकर नाना प्रकार के कार्य करने पर मजबूर कर दिया गया।
और तभी हमारे कुछेक अनुभवी पूर्वजों ने हमें एक ऐतिहासिक नाम दिया–“देशवाली” ! उन अज्ञात महान् पूर्वजों ने हमें कहा कि हम यहाँ असुरक्षित हैं,यहाँ हम कितना भी श्रम कर लें किन्तु हमें कीडे मकोड़ों से अधिक कुछ नहीं समझा जायेगा ! यहाँ मैं आपको “कोरोना” काल में हमारे साथ हुवे दिल्ली और मुम्बई से भयावह पलायन का स्मरण दिलाना चाहता हूँ- जिस दिल्ली को दिल वालों की कहा जाता है,जिस दिल्ली और मुम्बई को हमारे लोगों ने अपने खून-पसीने से सींच कर सजाया ! समृद्ध किया ! वहीं से अनाथ होकर अपना सब-कुछ छोड़ कर छोटे छोटे बच्चों ,बूढे और बीमार लोगो,औरतों के साथ देढ-दो हजार किलोमीटर की यात्रा पैदल कर हम देशवाली अपने देश को चले थे।और क्यूँ चले थे ? इसीलिए तो कि हमने जिनके महल बनाये उन्होंने हमें कोविड काल में भूखा मरता छोड़ दिया था।
यहाँ असम में ! कछार करीम गंज हाइलाकांदी में ! हमारे पूर्वजों से ब्रिटिश सरकार के दरिंदे संगीनों की नोक पर, आधा पेट सडा-गला खाना देकर, बीमार होने पर भी बिना दवाओं के”बेगार” कराते थी, और हमें हमारे पूर्वजों ने बिलखते हुवे दिनांक २१ मई १९२१ को पुकारा-मेरे “देशवालों” चलो ! देश-चलो “मुल्क चलो” ।
और कदाचित् जिस परियोजना के लिये हम देशवाली के उस समूह को यहाँ लाया गया था,उस प्रोजेक्ट का नाम-“चरगोला एक्सोडस”होगा।कदाचित”मोंटगु-चेम्सफोर्ड सुधार” के अंतर्गत अधिनियम-१९१९ के माध्यम से अधिनियमित असम विधान परिषद के विस्तार में “डायरैची- सिद्धांत” के लिये कृषि,स्वास्थ्य, शिक्षा एवं स्थानीय प्रशासन जैसे कुछ विभागों को कांग्रेस के निर्वाचित मंत्रियों सर सैयद मुहम्मद सादुल्ला और राय बहादुर प्रोमोड चंद्र दत्ता को दिया गया था।
तद्कालीन ३ अप्रैल १९२१ से १० अक्टूबर १९२२ पर्यन्त “सर विलियम सिंक्लेयर मैरिस” शिलांग से चल रही यहाँ की सरकार के ब्रिटिश-प्रशाशक थे ! और हम देशवालों के द्वारा”मुल्क चलो”
के आह्वान पर हमारे कुछ पूर्वज शांतिपूर्वक अपने ऊपर जबरन थोपे गये जानवरों के जैसे काम के बोझ को छोड़कर,अस्थायी घरों को छोड़कर अपने गाँव,राज्य और कस्बों की ओर चल पड़े ! बंधुआ मजदूर थे हम ! हमें संगीनों के साये में रोका गया ।
और न रुकने पर जलियांवाला बाग से सैकड़ों गुनी अधिक निर्ममता से हमपर अंधाधुंध गोलियां बरसा दी गयीं ! न जाने कितनी माँ जिनकी गोद में बच्चे थे, जिन्होंने अपने छोटे बच्चों की उंगलिया थाम रखी थीं, बूढे बीमार लोग, न जाने कितने युवक-युवती ! अपने सपनों के देश में लौट जाने का ख्वाब आँखों में ही लिये न जाने किसकी भूख मिटाने को बलिदान(?)
हो गये।आज हम सभी उन अज्ञात पूर्वजों की स्मृति में उन्हें पावन श्रद्धांजलि के साथ-साथ उनका तर्पण करते हैं–“आनंद शास्त्री”





















