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कहीं हमारी कहीं तुम्हारी,
विरोधियों ने कमी बता दी।
हक़ीक़तों का बयान आना,
शुरू हुआ तो ज़ुबाँ दबा दी ।।
दलील देने लगा खलीफा,
कि पंख तेरे नये नये हैं,
भरी ज़रा सी उड़ान भर तो,
ज़मीन पर ही हवा खिला दी ।।
भला बता दो किसे मिला है,
सुकून दौरे जहाँ में आके,
सदा सताता रहा जमाना,
कभी घुटन तो कभी सजा दी ।।
हजार मुँह हैं हजार बातें,
हजार दुखड़े खड़े दिखे हैं ,
जहाँ जहाँ भी गया वहाँ जो,
मिला उसी ने कथा सुना दी ।।
कहा हटो सब खलास राशन,
अमीर का तब गरूर टूटा,
फक़ीर भूखा चला गया पर ,
सलामती की दिली दुआ दी ।।
न देह होगी न रूह होगी ,
न प्राण प्यारे कहीं मिलेंगे ,
कई पढ़ेंगे हमारी ग़ज़लें,
कई कहेंगे सुनो मियाँजी ।।
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
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