अभिमनोज. लोकसभा चुनाव ज्यों-ज्यों करीब आ रहे हैं, त्यों-त्यों यह उत्सुकता बढ़ती जा रही है कि केंद्र की गद्दी पर इस बार कौन होगा? क्योंकि…. मोदी सरकार के पास दिखाने के लिए कोई उपलब्धियां नहीं हैं और विपक्ष- बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों के साथ आक्रमक होकर आगे बढ़ रहा है, जिसे जनता का भी समर्थन मिल रहा है, तो ऐसे में मोदी टीम को केवल यही रास्ता नजर आ रहा है कि विपक्षी एकता नहीं हो, विपक्ष के वोटों का बिखराव होगा तो कम वोट हासिल करके भी बीजेपी जीत सकती है?
हालांकि…. यह भी कुछ सीटों पर ही संभव है, क्योंकि ज्यादातर सीटों पर तो सीधे मुकाबले जैसी हालत ही है! मतलब…. यदि विपक्षी एकता हुई तो तो मोदी सरकार की वापसी असंभव है, यदि नहीं हुई तब भी कोई बड़ा फायदा नहीं होगा, कुछ कांटे के टक्करवाली सीटों पर बीजेपी उम्मीद रख सकती है?
विपक्षी एकता को लेकर भी कई तरह की खबरें आ रही हैं, कहा जा रहा है कि पटना में 23 जून 2023 को होने वाली विपक्षी एकता की बैठक के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो फॉर्मूला तय किया है, वह भी सबको स्वीकार हो, यह जरूरी नहीं है! खबरों की मानें तो…. सीएम नीतीश ने अगले लोकसभा चुनाव के लिए वन अगेंस्ट वन का फॉर्मूले सेट किया है, अर्थात…. बीजेपी गठबंधन के कैंडिडेट जिस सीट से चुनाव लड़ेंगे, उस सीट से विपक्षी एकता में शामिल पार्टियों में से सिर्फ एक ही उम्मीदवार चुनावी मैदान में होगा, ताकि विपक्ष के वोटों के बिखराव का फायदा बीजेपी को नहीं मिले?
ऐसी कई सीटें हैं जिन पर विपक्ष के एक से ज्यादा दल दावेदार हो सकते हैं, इसलिए विपक्षी एकता में सबसे बड़ी बाधा सीटों का बंटवारा है, फिर भी यदि ऐसी सीटों से विपक्षी दल अपने उम्मीदवार हटा लेते हैं, जहां उनकी भूमिका वोट कटवा की है, तो भी बहुत बड़ा फायदा होगा!
कई राज्यों में कांग्रेस फिर से मजबूत हो रही है, तो यूपी जैसे राज्य में सपा, बसपा, कांग्रेस में सीटों का बंटवारा संभव नहीं है, यही नहीं, खबरों की मानें तो बहुजन समाजवादी पार्टी के तो सुर बदले हुए हैं, बसपा सुप्रीमो मायावती की बसपा एकला चलो की राह पर नजर आ रही है? बहरहाल, सियासी सयानों का मानना है कि बीजेपी और विपक्षी, भले ही अपने-अपने तरीके से सियासी प्रबंधन में लगे हों, लेकिन… जनता ने चाहा तो सबका हिसाब साफ हो जाएगा!