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संदीप अग्रवाल
दत्ता बागान , डिब्रुगढ़ ( असम )
9706113523
प्रत्येक राशि, नक्षत्र, करण व चैत्रादि बारह मासों के सभी के स्वामी है, परन्तु मलमास का कोई स्वामी नही है | इसलिए देव कार्य, शुभ कार्य एवं पितृ कार्य इस मास में वर्जित माने गये है.
इससे दुखी होकर स्वयं मलमास(अधिक मास) बहुत नाराज व उदास रहता था, इसी कारण सभी ओर उसकी निंदा होने लगी. मलमास को सभी ने असहाय, निन्दक, अपूज्य तथा संक्रांति से वर्जित कहकर लज्जित किया | अत: लोक-भत्र्सना से चिन्तातुर होकर वो अपार दु:ख समुद्र में मग्न हो गया | कान्तिहीन, दु:खों से युक्त, निंदा से दु:खी होकर मल मास भगवान विष्णु के पास वैकुण्ठ लोक में पहुंचा.
और मलमास बोला –
हे नाथ, हे कृपानिधे | मेरा नाम मलमास है. मैं सभी से तिरस्कृत होकर यहां आया हूं. सभी ने मुझे शुभ-कर्म वर्जित, अनाथ और सदैव घृणा-दृष्टि से देखा है | संसार में सभी क्षण, लव, मुहूर्त, पक्ष, मास, अहोरात्र आदि अपने-अपने अधिपतियों के अधिकारों से सदैव निर्भय रहकर आनन्द मनाया करते हैं |
मैं ऐसा अभागा हूं जिसका न कोई नाम है,न स्वामी, न धर्म तथा न ही कोई आश्रम है. इसलिए हे स्वामी, मैं अब मरना चाहता हूं.’ ऐसा कहकर वह शान्त हो गया |
तब भगवान विष्णु मलमास को लेकर गोलोक धाम गए. वहां भगवान श्रीकृष्ण मोरपंख का मुकुट व वैजयंती माला धारण कर स्वर्णजडि़त आसन पर बैठे थे | गोपियों से घिरे हुए थे | भगवान विष्णु ने मलमास को श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक करवाया व कहा – कि यह मलमास वेद-शास्त्र के अनुसार पुण्य कर्मों के लिए अयोग्य माना गया है, इसीलिए सभी इसकी निंदा करते हैं.
तब श्री कृष्ण ने कहा – हे हरि | आप इसका हाथ पकड़कर यहां लाए हो, जिसे आपने स्वीकार किया उसे मैंने भी स्वीकार कर लिया है | इसे मैं अपने ही समान करूँगा तथा गुण, कीर्ति, ऐश्वर्य, पराक्रम, भक्तों को वरदान आदि मेरे समान सभी गुण इसमें होंगे | मेरे अन्दर जितने भी सदॄगुण है, उन सभी को मैं मलमास तुम्हे सौंप रहा हूँ मैं इसे अपना नाम ‘पुरुषोत्तम’ देता हूं और यह इसी नाम से विख्यात होगा | यह मेरे समान ही सभी मासों का स्वामी होगा | अब से कोई भी मलमास की निंदा नहीं करेगा | मैं इस मास का स्वामी बन गया हूं | जिस परमधाम गोलोक को पाने के लिए ऋषि तपस्या करते हैं , वही दुर्लभ फल पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान व दान करने वाले को सरलता से प्राप्त हो जाएंगे | इस प्रकार मल मास ” पुरुषोत्तम मास ” के नाम से प्रसिद्ध हुआ | यह मेरे समान ही सभी मासों का स्वामी होगा. अब यह जगत को पूज्य व नमस्कार करने योग्य होगा | यह, इसे पूजने वालों के दु:ख-दरिद्रता का नाश करेगा | यह मेरे समान ही मनुष्यों को मोक्ष प्रदान करेगा. जो कोई इच्छा रहित या इच्छा वाला इसे पूजेगा वह अपने किए कर्मों को भस्म करके नि:संशय मुझको प्राप्त होगा | सब साधनों में श्रेष्ठ तथा सब काम व अर्थ का देने वाला यह पुरुषोत्तम मास स्वाध्याय योग्य होगा. इस मास में किया गया पुण्य कोटि गुणा होगा.जो भी मनुष्य मेरे प्रिय मलमास का तिरस्कार करेंगे और जो धर्म का आचरण नहीं करेंगे, वे सदैव नरक के गामी होंगे. अत: इस मास में स्नान, दान, पूजा आदि का विशेष महत्व होगा | इसलिए हे रमापते, आप ” पुरुषोत्तम मास ” को लेकर बैकुण्ठ को जाओ | इस प्रकार बैकुण्ठ में स्थित होकर वह अत्यन्त आनन्द करने लगा, तथा भगवान के साथ विभिन्न क्रीड़ाओं में मग्न हो गया. इस प्रकार श्रीकृष्ण ने मन से प्रसन्न होकर मलमास को बारह मासों में श्रेष्ठ बना दिया तथा वह सभी का पूजनीय बन गया. अत: श्री कृष्ण से वर पाकर इस भूतल पर वह ” पुरुषोत्तम नाम ” से विख्यात हुआ |
अधिकमास में गौसेवा :-
अधिकमास से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने कठोर तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया और उनसे वरदान मांगा कि, मुझे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर मार ना सके और वर्ष के सभी 12 महीनों में भी मृत्यु प्राप्त ना हो. मेरी मृत्यु ना दिन के समय हो और ना रात को | ना ही किसी अस्त्र से मरु और ना किसी शस्त्र से, ना घर में मारा जाऊं और ना ही घर से बाहर. ब्रह्मा जी ने उसे ऐसा ही वरदान दे दिया।
तब श्री भगवान विष्णु अधिकमास में नरसिंह अवतार (आधा पुरुष और आधा शेर) के रूप में प्रकट हुए और संध्या के समय देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीर कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया।
सनातन धर्म और भारतीय समाज में दान की परंपरा पौराणिक काल से वर्तमान तक रही है। दान विशेष जगह , समय ,मलमास एवं अधिकमास में देने से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है। यह दान अक्षय व सौ गुना फलदायक होता है।
इस बार यह अधिकमास 18 जुलाई से 16 अगस्त 2023 तक रहेगा। श्रावण मास में गौ माता को हरा चारा खिलाने का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है।
हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि व्यक्ति को अधिकमास में अपने सामर्थ्य के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए। यह दान ही हमें परलोक में पुण्य के रूप में प्राप्त होता है।
गौमाता के लिये दिये गये दान को सर्वथा उत्तम और कल्याणकारी बताया गया है। गाय के लिये दान करने वाले व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण, मोक्ष की प्राप्ति व पितृ दोष से छुटकारा मिलता है |




















