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मलमास में आने वाली पद्मिनी एकादशी तीन साल में एक बार आती है। इस एकादशी को कमला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पद्मिनी एकादशी का महत्व अधिक मास में विशेष माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति सच्चे दिल और पूरी निष्ठा के साथ इस व्रत का पालन करना है उसे भगवान विष्णु के लोक में स्थान मिलता है। शास्त्रों में बताया गया है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति हर प्रकार की तप तपस्या, यज्ञ और व्रत आदि से मिलने वाले फल के समान फल प्राप्त होता है। मान्यताओं के अनुसार, अधिक मास की एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को दोगुना पुण्य प्राप्त होता है।
पद्मिनी एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इसके बाद भगवान विष्णु की आराधना करें। साथ ही कसार का प्रसाद और चरणामृत भी जरूर बनाएं। साथ ही इस दिन अपने घर पर किसी ब्राह्मण को बुलाकर उन्हें भोजन जरुर कराएं और उन्हें दक्षिणा दें। एकादशी व्रत से एक दिन पहले कुछ बातों का ख्याल रखना भी बेहद जरूरी है। एकादशी व्रत से एक दिन पहले मांस मछली, प्याज, मसूर की दाल और शहर जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
पद्मिनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेता युग में एक पराक्रमी राजा की तृवीर्य था। इस राजा की कई रानियां थी परंतु किसी भी रानी से राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। संतानहीन होने के कारण राजा और उनकी रानियां तमाम सुख सुविधाओं के बावजूद दु:खी रहते थे। संतान प्राप्ति की कामना से तब राजा अपनी रानियों के साथ तपस्या करने चल पड़े। हजारों वर्ष तक तपस्या करते हुए राजा की सिर्फ हड्डियां ही शेष रह गयी परंतु उनकी तपस्या सफल न हो सकी।
रानी ने तब देवी अनुसूया से उपाय पूछा. देवी ने उन्हें मल मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। अनुसूया ने रानी को व्रत का विधान भी बताया. रानी ने तब देवी अनुसूया के बताये विधान के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा. व्रत की समाप्ति पर भगवान प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा।
रानी ने भगवान से कहा प्रभु आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे बदले मेरे पति को वरदान दीजिए। भगवान ने तब राजा से वरदान मांगने के लिए कहा। राजा ने भगवान से प्रार्थना की कि आप मुझे ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण सम्पन्न हो जो तीनों लोकों में आदरणीय हो और आपके अतिरिक्त किसी से पराजित न हो।
भगवान तथास्तु कह कर विदा हो गये। कुछ समय पश्चात रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से जाना गया। कालान्तर में यह बालक अत्यंत पराक्रमी राजा हुआ। जिसने रावण को भी बंदी बना लिया था। ऐसा कहते हैं कि सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पुरुषोत्तमी एकादशी के व्रत की कथा सुनाकर इसके माहात्म्य से अवगत करवाया था।
डा. बी. के. मल्लिक
9810075792




















