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बुद्धू बेटा

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प्रदीप देर शाम को ऑफिस से लौटा तो रसोईघर में खटर पटर की आवाज सुनाई दी। उसने झांका तो देखा कि उसकी मां बर्तन मांज रही थी। मां की उम्र हो चली है वो घुटनों के दर्द से परेशान रहती है। जनवरी का महीना मौसम बहुत ठंडा था वातावरण में धुंध थी इतनी ठंड महसूस हो रही थी कि उसके कान सुन्न हो ग‌ए थे। वह चुपके से आगे बढ़ गया। अपने बैग को उसने कमरे में रखा और हाथ मुंह धोने बाथरूम में चला गया उसने गीजर ऑन किया फिर बेडरूम का जायजा लिया उसकी पत्नी इंदु रजाई में बैठी टीवी देख रही थी। इंदु एक नंबर की नकचढी, सुंदर और बेहद तेज मिजाज की है। उसे देखते ही इंदु चहक उठी अरे! आज तो आपने देर कर दी। उसने प्रश्नवाचक निगाहों से उसे देखा और कपड़े बदलने लगा इंदु ने पीछे से आकर उसके गले में बाहें डाल दी।
“पता है, मैं कितनी देर से आपका इंतजार कर रही थी।”
उसने पूछा क्यों???
ये भी कोई बात है। इन्दु शरमाते हुए बोली।
चलो चाय तो पिलाओ।
बहुत ठंड है।
अरे! कामवाली पंन्द्रह दिन की छुट्टी मांग कर गांव चली गई है। उसके देवर की डेथ हो गई है।
मुझसे तो ये काम-धाम नहीं होगा आपको कुछ इंतजाम करना पड़ेगा।
मां कहां है??? प्रदीप ने गंभीर स्वर में पूछा।
पता नहीं इंदु ने कंधे उचकाए  मुझसे उनकी ज्यादा बातचीत होती कहां है?? मेरे बस का नहीं है उनकी फालतू बातें सुनना।
प्रदीप सोच में डूब गया। चलो ये तो बहू है पर मां का बेटा भी कहां उसका हो गया??? पिताजी को गुजरे बीस साल हो गए हैं। मां हमेशा से चुपचाप सारे दुखों को खुद में समेटे कर खामोशी से जी रही है। दस साल का था पिताजी की मृत्यु हुई थी पर मां ने उसे कभी भी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी थी। पच्चीस बीघे जमीन की खेती अकेले संभाल ली थी इस बात को उसके चाचा और ताऊ जी कभी बर्दाश्त नहीं कर पाए थे कि एक औरत उनकी बराबरी कैसे कर सकती है?? जिसकी जुबान भी कभी उनके सामने नहीं खुलती थी। उन्होंने मां को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
पर मां ने अपने आप को बेहद मजबूती से अपने बेटे के लिए खड़ा कर दिया था।
मां कभी भी उससे इंदु की शिकायत नही करती है। क्योंकि वो इंदु के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित है।
जब वह कुछ पूछता है तो मुस्कुरा देती है।
आज जब वह कामयाब है तब भी वो अपनी मां के लिए कुछ नहीं कर सकता।
इंदु को समझाने का मतलब पत्थर पर सिर मारना है।
वह रसोई घर में आया मां चाय चढ़ा चुकी थीं। उसके लिए पीने का पानी गर्म कर दिया था।
उसने खामोशी से पानी पिया पर आज मां का हाल-चाल नहीं पूछा।
वह वहीं से तेजी से चिल्लाया कि इंदु जल्दी से बाहर आओ।
इंदु झल्लाते हुए बाहर आ कर खड़ी हो गई।
ये बुढ़िया मुझे पूरे मोहल्ले में बदनाम करना चाहती है।
 प्रदीप ने चिल्ला कर कहा।
इंदु आश्चर्य से उसे देखने लगी।
क्या हुआ???
मां के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसके हाथ कांपने लगे।
अभी बाहर पड़ोस वाली काकी मिली थी कह रही थी कि प्रदीप  तुमने तो अपनी मां को नौकरानी बना कर रख दिया है।
अभी आज ही कामवाली गई और देखो पूरे मोहल्ले में चर्चा हो गई कि प्रदीप की मां नौकरानी है।
इसलिए ही तो मैं तुम्हें कहती हूं कि चलो अलग रहेंगे पर तुम मेरी सुनते कहां हो???
मां की आंखों से आंसू गिरने लगे। उसने कोई सफाई नहीं दी चुपचाप भारी कदमों से अपने कमरे में चली गई।
प्रदीप ने इंदु को कहा जा कर जल्दी से खाना बनाओ इस बुढ़िया से कोई काम मत करवाना।
इंदु ने मन मार कर जैसे तैसे सब्जी रोटी बनाई अपना और प्रदीप का खाना कमरे में ले आई।
मां को दिया तुमने खाना।
 बना कर रख दिया है अपने आप ले लेंगी। तुम इतनी चिंता मत करो।
अलग रहने पर विचार करो।
इंदु तुम्हारा दिमाग खराब है क्या??? इतनी जमीन, जायदाद घर सब कुछ है??? सब कुछ मां के नाम पर है तुमने अगर यहां से अलग होने की बात की तो हमारे हाथ से सब कुछ निकल जाएगा।
पर वो तुमसे बेहद प्यार करती हैं। वो ऐसा कुछ नहीं करेंगी।
तुम बेवकूफ हो इंदु सारे रिश्तेदार ताक में रहते हैं इसलिए तुम कम से कम मां के साथ अपने मतलब के लिए तो सही रहने का ढोंग कर सकती हो।
इंदु लालची  है ।इसलिए चुप रह कर सोचने लगी।
तुम खाना खाओ मैं जरा अभी आया। मां को खाना दे कर आता हूं कहीं मोहल्ले में चुगली कर दी तो हम दोनों की बहुत बदनामी होगी।
वह रसोई घर में गया उसने खाना गर्म किया दो रोटी और सब्जी थी प्लेट लगाई और मां के कमरे में चला गया।
मां खाना बहुत कम खाती है। शरीर कमजोर है। आज तो मन भी टूट गया होगा।
मां बत्ती बुझाकर लेट गई थी वो जानता था कि वो सोई नहीं है बल्कि रो रही है। आज उसे बहुत पीड़ा पहुंची है।
उसने लाइट जलाई मां! उठो खाना खा लो।
मुझे भूख नहीं है बेटा तुम लोग खाओ।
मैं सोऊंगी।
उसने प्लेट मेज पर रखी और मां के पैरों में सिर रख कर फूट फूट कर रो पड़ा।
मां हड़बड़ा कर उठ कर बैठ गई।
क्या हुआ तुझे???
मुझे माफ कर दो मां तुम्हें ठंड से बचाने का मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था।
 तुम्हारा बेटा बहुत बुरा है।
काश! इंदु मां बेटे का रिश्ता समझ सकती। शायद तब समझेगी जब वह खुद मां बनेगी।
मां मेरी मजबूरी तुम समझोगी मैं नहीं चाहता कि कि इस उम्र में मेरी मां को कोई अपशब्द कहे पास पड़ोस में बदनाम करे।
चलो उठो खाना खाओ नहीं तो मैं भी नहीं खाऊंगा।
 उसने झटपट से निवाला तोड़ कर मां के मुंह में डाल दिया।
मेरा बुद्धू बेटा मां ने प्यार से उसके बालों पर हाथ फेरते हुए उसका माथा चूम लिया।
वो सोच रहा था कि मां का प्यार उसका साथ दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है। हे ईश्वर इसे मेरे ऊपर हमेशा बनाए रखना।
आभार :- रचना कंडवाल

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