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राम नाम लिखे बेलपत्र चढ़ाने से खुश होते महादेव

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राम नाम लिखे बेलपत्र के चढ़ाने से महादेव खुश होते हैं. किसी पूजन सामग्री के कम पड़ जाने के बावजूद शिव की सच्चे मन से की जाने वाली मानस पूजा भी भाती है. शास्त्रों के अनुसार देवी पार्वती घोर तप के बाद शिव की अद्र्धागिनी बनीं. सबसे पहले महादेव को राम नाम लिखकर बेलपत्र उन्होंने ही चढ़ाया था. सनातन धर्म के अनुसार इससे ही खुश होकर भोलेनाथ ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया था. क्योकि, राम शिव के आराध्य थे. माता ने उन्हें खुश करने के लिए ही बेलपत्र पर राम नाम लिख शिव को अर्पित किया.  सावन माह वैसे भी शिव को प्रिय होता है. इसमें जो भी भक्त चंदन से राम का नाम लिखकर बेलपत्र भोले बाबा को अर्पित करते हैं, उनका हर मनोरथ पूरा होता है. वहीं धन-धान्य की प्राप्ति भी होती है. मानस मन से की गई पूजा भगवन को अतिप्रिय होती है. अगर बेलपत्र नहीं हो तो अक्षत से भी शिव को पूजा जा सकता है.
स्कंद पुराण में लिखा है कि अगर किसी कारणवश बेलपत्र नहीं मिल पाए तो पूर्व से चढ़ाए बेलपत्र को धोकर भी शिव को अर्पित कर सकते हैं
हिन्दू धर्म के कई पूजनीय एवं पवित्र वृक्षों में से एक बेल-वृक्ष के पत्ते हैं. साधारण बोल – चाल में इसे बेलपत्र या बेलपत्ता बोला जाता है. इसकी पवित्रता की तुलना तुलसीदल से की जा सकती है. वस्तुतः जो स्थान तुलसीदल का विष्णु पूजा के सम्बन्ध में हैं वही स्थान बिल्वपत्र का शिव आराधना में है. बेल को अंग्रेजी में गोल्डन एप्पल और बंगाल क्वीन्स के नाम से भी जाना जाता है. वैज्ञानिक नाम ‘एगले मार्मेलोस’ है. बिल्व -पत्र (Bilva-Patra) संस्कृत नाम है.
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इसकी उत्पत्ति देवी लक्ष्मी के हृदय से हुई है. यह तथ्य बिल्वाष्टकम के छठे श्लोक से स्पष्ट है:-

लक्ष्म्याः स्तनत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम्
बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि बिल्वपत्रं शिवार्पणं .

(अर्थात: देवी लक्ष्मी के हृदय से उत्पन्न होनेवाले तथा महादेव को प्रिय बिल्ववृक्ष को मैं शिव को समर्पित करता हूँ, बिल्वपत्र शिव को अर्पण करता हूँ.)
बेलपत्ता एक “कंपाउंड पत्ता” है जिसमे एक पत्ते में तीन पत्तियाँ सम्मिलित होती हैं. यह तीन पत्तियों वाला बेलपत्र शिव को अतिप्रिय है. कभी कभी अनायास ही तीन से अधिक पत्तियों वाला बेलपत्र मिल जाता है जो भक्तों में उत्सुकता का कारण होता है. मैंने ऐसे बेलपत्र बाबा बैद्यनाथधाम परिसर में ऊँचे दामों में बेचते देखा है. भक्त इन्हें सौभाग्य का प्रतीक मान अपने पास रखते हैं किन्तु तीन से अधिक पत्तियों वाला बेलपत्र शिव को अर्पित नहीं किया जाता क्योंकि उन्हें त्रिदल बिल्वपत्र ही प्रिय हैं.यह तथ्य बिल्वाष्टकम के प्रथम श्लोक से भी स्पष्ट है जो इस प्रकार है:-

त्रिदलं  त्रिगुणाकारं   त्रिनेत्रं  च  त्रयायुधम्
त्रिजन्म पापसंहारम् बिल्वपत्रं शिवार्पणं .1.

(अर्थात:- तीन पत्तियोंवाले, तीन गुणों से पूर्ण (सत, रज और तम), शिव के तीन नेत्रों और तीन आयुधों का प्रतिनिधित्व करने वाले बिल्वपत्र जो तीन जन्मों के पापों का संहार करते है ऐसे बिल्वपत्र  को मैं भगवान शिव को समर्पित करता हूँ.)

नर्म और कोमल बेलपत्र
यह श्लोक भगवान शिव को बेलपत्ते समर्पित करते समय भी बोला जाता है. भगवान् शिव को कैसे बेलपत्र समर्पित करें ? बेलपत्र बिना कटा – फटा, बिना छेद वाला, बिना दागवाला, अटूट और नरम होना चाहिए. बेलपत्र के मुख्य डंठल के नीचे वाला मोटा वाला हिस्सा हटा देना चाहिए.  जब बेलपत्र शिवलिङ्ग पर अर्पित किया जाता है तो इसका चिकना वाला हिस्सा शिवलिङ्ग को छूना चाहिए. अर्थात उलटकर बेलपत्र चढ़ाया जाता है.
बेलपत्र की महिमा और महत्ता आठ श्लोकों वाले बिल्वाष्टक में बताई गयी है. इसे इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है -Importance of Bilva-Patra in Shiv-Pujan.

शिव को अर्पण हेतु राम लिखा बेलपत्र
बेलपत्र को शिव को अर्पित करने से पहले इसकी तीनों पत्तियों पर अनामिका अंगुली से सफ़ेद चन्दन का पेस्ट लगाया जाता है. बेलपत्र मात्र भगवान् शिव पर ही नहीं बल्कि शिव -परिवार और उनके अवतारों पर भी अर्पित किया जाता है जैसे – गणेश, गौरी, कार्तिकेय, नंदी, हनुमान, काली, दुर्गा, आदि. हनुमान को शिव का अवतार अर्थात रुद्रावतार कहा जाता है अतः बेलपत्र इन्हें भी चढ़ाया जाता है. भगवान राम शिव को बहुत प्रिय हैं. रामायण में रामेश्वरम समुद्रतट पर राम ने शिव की कमल पुष्पों से पूजा की थी इसका वर्णन है. कैसे एक कमल घटने पर राम ने अपनी एक आँख शिव को अर्पित करने का मन बनाया था. शिवभक्त बेलपत्र की पत्तियों पर चन्दन या कुंकुम से राम नाम लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं.
कुछ शिव भक्त बिल्वपत्र को शिव के तीन नेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाला भी मानते हैं. नीचे की दो पत्तियां दो सामान्य आँखें और ऊपरवाली पत्ती कपाल पर शिव का तीसरा नेत्र.
जिस प्रकार विष्णु मंदिर में पंडित जी भक्तों को चरणामृत के साथ तुलसीदल (Holy water with Tulsi leaves) देते हैं उसी प्रकार भुबनेश्वर में शिव मंदिरों में चरणामृत के साथ बेलपत्र के टुकड़े देते हैं.
महादेव को चढ़ाये जानेवाले बेलपत्र की संख्या एक से लेकर सवा लाख तक हो सकती है. यह बिल्वपत्र की उपलब्धता और भक्त की खर्च करने की इच्छा पर निर्भर करता है. सावन और आषाढ़ के महीने में बाबा बासुकिनाथधाम में मैंने सवा लाख बेलपत्र अर्पित करते देखा है.
यद्यपि यह प्रथा है कि देवताओं को अर्पित वस्तुएं दुबारा उनपर नहीं अर्पित किया जाता है किन्तु बेलपत्र ऐसी वस्तु है जो यदि उपलब्ध न हो तो दुबारा धोकर चढ़ाया जा सकता है. भगवान् शिव तो काल्पनिक वस्तुओं के अर्पण से भी प्रसन्न होते हैं. यह शिव की मानसिक पूजा के लिए रचित “शिवमानस पूजन स्तोत्रम” से स्पष्ट है. इसकी शुरुआती पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:-

रत्नै: कल्पितमासनं हिम-जलै: स्नानं च दिव्याम्बरं
नाना-रत्न-विभूषितं   मृगमदामोदांकितं   चन्दनं .
जाती-चम्पक-बिल्व-पत्र-रचितं  पुष्पं च धूपं तथा,

दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत-कल्पितं गृह्यताम् ||

चाँदी का बेलपत्र
शिव मंदिर कभी कभी ऐसे दुर्गम स्थानों पर भी होते हैं जहाँ बेलपत्र मिलना असंभव होता है जैसे केदारनाथ ज्योतिर्लिंग जो हिमालय में ऊँचाई पर स्थित है. वहाँ चाँदी से बना बिल्वपत्र एवं त्रिशूल महादेव पर चढ़ाया जाता है, अर्पण के बाद इन्हें भक्तों को प्रसाद के रूप में वापस कर दिया जाता है. ये वस्तुएँ वहाँ मिल जाती हैं किन्तु यदि कोई इन्हें घर से ही ले जाना चाहे तो ये Amazon पर इस लिंक पर उपलब्ध हैं.
सिर्फ बेलपत्र ही नहीं बल्कि बेल का फल और फूल भी महादेव को अर्पित किया जाता है. बेल के फूल तो पूरे वर्ष में कुछ ही दिनों के लिए अप्रैल के अंतिम सप्ताह और मई के प्रथम सप्ताह के बीच खिलते हैं किन्तु जब ये खिलते हैं तो आस -पास का पूरा वातावरण ही एक दिव्य सुगंध से परिपूर्ण हो जाता है. पूरे वृक्ष पर मधुमक्खियों का झुण्ड फैला होता है. अतः इनका उपलब्ध होना आसान नहीं होता. बेल फल पूरे वर्ष भर उपलब्ध होते हैं और भक्तों द्वारा विशेष अवसरों यथा “शिवरात्रि और सावन के सोमवार” पर शिव को अर्पित किये जाते हैं. सावन के महीने में तो बेलपत्र एवं बेलफल की मांग बहुत बढ़ जाती है क्योंकि यह शिव पूजन का विशेष माह है.

चाँदी  का त्रिशूल
भगवती काली को बकरे की बलि देते समय संकल्प किया जाता है. इसमें बकरे की सींगों पर सिन्दूर लगाया जाता है तथा हाथ में अक्षत, जल और बेलपत्र लेकर संकल्प का मन्त्र बोला जाता है फिर यह बेलपत्र बकरे को खिला दिया जाता है.
बेलपत्र और बेलफल का ही नहीं, बेल की जड़ों का भी उपयोग होता है. ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने के लिए बेल की जड़ को पूजा और मन्त्रों से अभिमंत्रित कर ताबीज़ की तरह पहना जाता है. इसे पहनने से उच्च रक्तचाप, गुस्सा और पुराने रोगों में राहत मिलती है.
बेल का फल महादेव को अर्पण करने के अलावा एक अच्छा औषधि भी है. गर्मियों में ये पकते हैं. गूदे मीठे होते होते हैं जबकि बीज गोंद जैसे द्रव में लिपटे होते हैं. कुछ लोग पके फलों के गूदे सीधे खाना पसंद करते हैं. गूदे बीज के साथ ही खाये जाते हैं किन्तु बीज चबाये नहीं जाते बल्कि निगले जाते हैं. कहा जाता है कि बेल के बीज गर्मियों में शरीर से पानी की कमी नहीं होने देते. सामान्यतया फलों के खाने के बाद कुछ देर तक पानी नहीं पिया जाता पर बेल का फल ही एक ऐसा फल है जिसे खाने के बाद पानी पिया है. पके बेल के गूदे से मीठा शरबत बनाया जाता है जिसे काफी पसंद किया जाता है. उत्तरी भारत में गर्मियों में उबले कच्चे आम के शरबत और बेल के शरबत के ठेले सड़क के किनारे देखे जा सकते हैं. कच्चे फल को भी आग पर पका कर औषधि के रूप में खाया जाता है.

बिल्व -वृक्ष (बेल का पेड़)
भक्त अपने घर के आस पास भूमि उपलब्ध होने पर बेल के वृक्ष को लगते हैं. इससे उन्हें पूजा हेतु बेलपत्र एवं बेलफल मिल जाता है और गर्मियों में पके बेलफल खाने के लिए मिल जाते हैं. बेल वृक्ष शिव का ही रूप होते हैं अतः प्रातः बिस्तर से उठने के बाद जब सर्वप्रथम भगवन सूर्य को नमस्कार करते हैं तब बेल वृक्ष को भी देखकर नमस्कार किया जाता है. उस समय निम्नलिखित मन्त्र बोले जाते हैं:-

दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम्
अघोरपापसंहारं  बिल्वपत्रं  शिवार्पणं ..

अर्थात:– बेल के वृक्ष को देखने और छूने से शिव के प्रति किया गया अपराध नष्ट होता है, भगवन शिव को मैं बेलपत्र समर्पित करता हूँ.
बेल वृक्ष के नीचे भगवान् शिव की पूजा अत्यंत ही फलदायी होती है. नित्य बेल वृक्ष को जल अथवा गंगा जल से सींचने से सभी तीर्थों के भ्रमण का पुण्य मिलता है. जड़ के पास से जल को छूकर तिलक की तरह लगाने से सभी पाप नष्ट होते हैं.

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