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नानी बाई की करुण विलाप से भक्तों की आंखें भर आई*। आज भरा जायेगा मायरा

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दुमदुमा  प्रेरणा भारती 10 अगस्त :–दुमदुमा शहर की परशुराम रेणुका मातृ समिति द्वारा आयोजित मारवाङी पंचायत भवन में चल रहे नानी बाई को मायरो के संगीतमय कार्यक्रम के आज छठे दिन खास शेखावाटी शैली में मारवाड़ी लोक कथाओं के लिए मशहूर कथावाचक स्वामी रामस्वरूप जी ने अब तक की कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि नानी बाई का मायरा भरने सांवरा सेठ बने श्रीकृष्ण द्वारिका से प्रस्थान कर पहले जुनागढ़ पहुंचे। वहां नरसी के बारे में पूछा तो नरसी के भाइयों ने समझा कोई तकादा करने वाला आया है। सो उन्होंनें कहा कि नरसी से कुछ लेना है तो अंजार नगर चले जाओ, या हो सकता है वह रास्ते में ही मिल जाए। उधर नानी बाई के घर पर महाभारत छिड़ी हुई थी। नानी की दशा उस हिरणी की भांति हो गई जिसे शिकारियों ने चारों तरफ से घेर रखा हो। बचाव का कोई रास्ता न देख आखिर नानी खाली घड़ा लेकर पानी लाने के बहाने उन बेरहम शिकारियों के चंगुल से भाग छूटी व जा पहुंची पिता की गोद में। जब बाप ने कहा धीरज रखो, स्वयं भगवान कृष्ण तुम्हारा भाई है और राधा रुक्मिणी तुम्हारी भाभियां हैं तो तुम्हे किस बात को रो चिंता है। वे भात भरने आते ही होंगे। इस पर बेटी नानी के सब्र का बांध टूट गया ओर बोली कि उबटन स्नान के बाद भानजी पाटा से उतरने के लिए मामा का इंतजार कर रही है और आपको धीरज की पड़ी है। वह अपने पिता को बुरा भला कहती व आंखों से आंसू बहाती दौड़ पड़ी  नानी बाई तालाब किनारे खङी होकर श्रीकृष्ण से करुण पुकार करने लगी और कहने लगी कि ‘हे गिरधर । मेरा आज इस दुनिया में तुम्हारे सिवा कोई नहीं है। ससुरालियों ने तानों व व्यंग बाणों से तेरी बहन का हृदय छलनी कर दिया है। इधर ‘नानी’ की आंखों से गंगा-यमुना की अविरल धारा बह रही है व नानी विलाप कर रही है कि हे सांवरिया , मैं एक बिन मां की हूं,मेरे मां जाया भाई जी नहीं है, पिता निर्धन व भोले हैं, जो तेरे भरोसे आ गये हैं, तूं मेरा धर्म का भाई है, मेरी भाभियों को साथ लेकर जल्दी आ वरना तेरी बहिन तुझे जीवित नहीं मिलेगी । सरवरिया की तीर खड़ी,कोण सुणलो कीन सुणाऊ, और अपनी माँ को याद करते हुए कहती हैं ‘तु कितनी अच्छी है…..ओ माँ, ओ माँ’। उक्त मार्मिक पद स्वामीजी की पुत्री ने बङे ही भावपूर्ण तरीके से गाया कि वह स्वयं व सारे श्रध्दालु भावविभोर हो गए और सबकी आंखें भर आई व अपने आंसुओ को रोक नहीं पाए। हताश होकर नानी डूबने से पहले एक तोते को देखकर उससे बोली कि हे सुवा(शुक-तोता) कहते है अंत समय में जो काम आए वही सच्चा संबंधी होता हैं । देखो कहीं मेरा सांवरिया बीरा नजर आता है क्या? तोता ऊंची उड़ान भरकर तुरंत नानी के पास आया और बोला कि दूर हल्की हल्की गुलाल उड़ रही है, बैलों के गले की घंटिया सुनाई दे रही है। नानी बाई ने सोचा जरूर मेरा बीरा ही आ रहा है। परंतु ज्योंही रथ नजदीक आया, हल्की सी जो आश जगी थी वह भी लुप्त हो गई क्योंकि नानी तो श्री कृष्ण का इंतजार कर रही थी। यह तो कोई सेठ आ गया है। आशा निराशा में बदल गई तो नानी दौड़ती हुई जाकर सांवरिया बीरा का नाम लेते हुए तालाब में छलांग लगा दी। उधर बहन डूबने लगी, तो द्वारिका नाथ ने भी रथ से कूदकर सरोवर में उतरकर अपनी बहन को बचाया। नानी बिलखती हुई उनसे परिचय पूछती है और जब मायापति नटवर ने भक्त नरसी का नाम लिया तो नानी खुशी के मारे नाचने लगी। भाई व भाभियों से बाहें फैलाकर मिली, आंसुओं से सांवरिया का कुर्ता भींग गया। इस सुखद प्रसंग को नयनाभिराम झांकियों के साथ देख-सुनकर कथा पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं की आंखों से भी अश्रु झलक पङे और पुरा हाल भक्तों की तालियों की गङ-गङाहट से गूंज उठा।  कथा वर्णन को आगे बढ़ाते हुए स्वामी ने कहा कि बीरा के आने की खुशी से ‘नानी’ सातवें आसमान में उड़ने लगी। अपनी सास से कहने लगी ‘सासूजी धीरज धरो, आयो सांवल साथ। बीरो भरसी मायरो थाने देस्यूं नैन दिखाय।’ जबकि ससुराल वालों ने उसे पागल करार दे दिया, कहने लगे-‘अरी करमजली ! तेरे कोई भाई है ही नहीं, आयेगा कहाँ से ? हमारे भाग्य-फूटे जो तुम्हारे जैसी बहू हमारे पल्ले पड़ी। तुम्हारा भिखमंगा बाप सूरदासों की टोली लेकर आया है।’ लेकिन जैसे ‘नानी’ को ये सब बातें बेमानी लगी, वह तो फुदकती हुई तीसरी मंजिल ऐसे चढ़ गयी. मानो पंख लग गये हों ।’ कार्यक्रम मे समयानुसार जीवंत झांकी प्रस्तुत की गई, तत्पश्चात आरती व प्रसाद लेकर सभी भक्तों ने प्रस्थान किया। कल सातवें दिन इस कथा का अंतिम और समापन दिवस होगा ।कल भगवान द्वारिकाधीस श्री कृष्ण नानी बाई का भात यानी मायरा भरेंगे । समिति ने सभी श्रद्धालुओं से आग्रह किया है कि कल कथा का विश्राम होगा अतः अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर अंतिम दिन की कथा का रसपान करें ।

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