असम भाजपा में असंतोष के दबे स्वर अब सामने आने लगे हैं। असंतोष गहराता जा रहा है। कुछ दिन पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता और गुवाहाटी से विधायक सिद्धार्थ भट्टाचार्य ने आरोप लगाया कि भाजपा में पुराने कार्यकर्ताओं को साजिश के तहत बदनाम किया जा रहा है। नौगांव से चार बार सांसद रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेन गोहाई ने आरोप लगाया कि नगांव को बदरुद्दीन अजमल को भेंट कर दिया गया है। पूर्व सांसद रमेन डेका ने भी उपेक्षा किए जाने का आरोप लगाया था। गुवाहाटी से ही दूसरे विधायक अतुल बोरा का असंतोष किसी से छुपा नहीं है। शिलचर के सांसद डॉक्टर राजदीप राय भी शिलचर संसदीय सीट को सुरक्षित किए जाने से खासे नाराज हैं लेकिन शिलचर विधानसभा टिकट की आशा में मौन साधे हुए हैं।
विपक्षी दलों ने भी आरोप लगाया है कि यूडीएफ से भीतरी सांठगांठ करके असम का परिसीमन किया गया है। मीडिया में एक चर्चा चल रही है की असम भाजपा की स्थिति से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चिंतित है और इसको लेकर कोलकाता में एक बैठक भी हुई है।
जब यह सब चल रहा है तो कुछ ना कुछ गड़बड़ तो जरूर है। पार्टी में नाराज लोगों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। भाजपा में ही पुराने भाजपाई घुट रहे हैं। यहां तक की सरकार में मंत्री होने के बाद भी पुराने भाजपाइयों को अपेक्षित सम्मान नहीं मिल रहा है और उन्हें समय-समय पर तिरस्कार झेलना पड़ता है। पुराने भाजपाइयों का आरोप है कि धीरे-धीरे पूर्व कांग्रेसियों ने असम भाजपा को हाईजैक कर लिया है। नॉर्थ ईस्ट के जानकार क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जमवाल को यहां से हटा दिया गया। असम के चप्पे-चप्पे से और भाजपा के कार्यकर्ताओं के घर घर से जुड़े प्रदेश संगठन मंत्री फनिंद्र चंद्र शर्मा को भी चलता कर दिया गया।
मुख्यमंत्री के दाहिने और बाएं, आगे और पीछे उनके पुराने दुलारे लोग ही है। उनके आसपास भाजपा का पुराना निष्ठावान कार्यकर्ता खोजने से भी नहीं मिलता।
पुराने कार्यकर्ताओं का कहना है कि पिछली सरकार में मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनवाल ने कार्यकर्ताओं की बात सुनने के लिए ओएसडी नियुक्त किए थे जो कार्यकर्ताओं से परिचित थे और उनकी बात को गंभीरता से सुनते थे, मुख्यमंत्री तक पहुंचाते थे। उनकी समस्या का समाधान भी करने के लिए प्रयत्न करते थे। अब वह भी नहीं है, मुख्यमंत्री तो क्या मंत्रियों तक भी पहुंचना आसान नहीं रह गया है?
आरोप है कि पार्टी और सरकार में पुराने कार्यकर्ताओं को उपेक्षित कर उन्हें कुंठित किया जा रहा है ताकि वे या तो निष्क्रिय हो जाए या पार्टी छोड़ दें। जिन लोगों ने अपने खून पसीने से असम और पूर्वोत्तर में संगठन और पार्टी को खड़ा किया, आधार दिया आज वे उपेक्षित महसूस क्यों कर रहे हैं? बराक घाटी भाजपा के पुराने और वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि संगठन या सरकार में उन्हें महत्व देना तो दूर, सलाह परामर्श के लिए भी उपयुक्त नहीं समझा जाता। परिसीमन में यही देखने को मिला है।
बहुत ही चालाकी से पार्टी और संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारियों की गणेश परिक्रमा करके आम कार्यकर्ताओं को उपेक्षित किया जा रहा है। सत्ता के नशे में वरिष्ठ पदाधिकारी भी जमीनी हकीकत से दूर होते जा रहे हैं। विभिन्न स्थानों पर हिंदू संगठन के कार्यकर्ताओं के साथ प्रशासन अत्याचार और उत्पीड़न भी कर रहा है लेकिन संगठन के आला अधिकारी मौन होकर देख रहे हैं। काछार, करीमगंज और हैलाकांडी में इस प्रकार की घटनाएं हो चुकी है। सरकार हमेशा नहीं रहेगी, यदि संगठन के निष्ठावान और मिशन वाले कार्यकर्ता संगठन से निराश हो गए तो संगठन का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।
आपातकाल के बाद जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में अचानक संख्या बढ़ गई तब तत्कालीन सरसंघचालक ने कहा था यह सूजन है, सरकार जाते ही वास्तविक स्थिति सामने आएगी। और वही हुआ जो अवसरवादी लोग सत्ता आते ही जुड़ गए थे, सत्ता फिसलते ही बदल गए। जो लोग आज कट्टर राष्ट्रवादी बन रहे हैं, उन्हें फिर से सेकुलर बनते देर नहीं लगेगी। लोकसभा चुनाव सामने हैं, ऐसे में भाजपा और हिंदू संगठन के कार्यकर्ताओं में बढ़ता असंतोष भाजपा के लिए खतरे की घंटी है।