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महाराजा पृथ्वीराज चौहान के वंशज-“नोनिया” अंक-(२)

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मित्रों ! अपने शरीर की वृद्धावस्था के कारण अंतःकरण से उठती अपनी साहित्यिक भावना को लेखनी से उकेरने का प्रयास धीरे-धीरे क्षीण होता जा रहा है, चाह कर भी कभी-कभी लिखना कष्टदायक सा लगता है ! लूणकार समाज के प्रति उनकी ऐतिहासिकता आपके समक्ष रखते गर्व का अनुभव करता हूँ। महाराजा सोमेश्वर द्वारा स्थापित अखण्ड भारतवर्ष की राजधानी- “अजयमेरु”(अजमेर) के प्रसिद्ध शाषक महाराजा श्रीमान पृथ्वीराज चौहान जी के नाम से भला कौन अपरिचित होगा।

चोल अर्थात चालुक्य वंश कुलभूषण चौहान अर्थात लूणकार समाज के पुनित स्तम्भ पृथ्वीराज चौहान जी का जन्म राजा सोमेश्वर की भार्या-“महारानी कर्पूरादेवी” के गर्भ से हुवा था। ग्यारह वर्ष की आयु में हुवे राज्याभिषेक के कारण अनेक षडयंत्रकारी आपके शत्रु हुवे और इसी कडी में गांधार देश से आये दस्यु-“शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी” के जेहादी उस्ताद-“गरीब (के लिये) नियाजी अर्थात खाजा” अर्थात जिसने अजमेर के चौहानों को खा लिया ! ऐसे मोइनुद्दीन चिश्ती ने पृथ्वीराज चौहान की उदारता का लाभ लेकर वहाँ एक ऐसी इबादत गाह(?) बनायी जो कालांतर में हमारे चौहान अर्थात लूणकार समाज के लिये सर्वाधिक घातक सिद्ध होने वाली थी।

मित्रों ! जयचंद के विश्वास घात की कहानी भला किसने नहीं सुनी होगी किन्तु मुहम्मद गोरी को सत्रह बार पराजित करने वाले पृथ्वीराज चौहान को छल पूर्वक हराने के उपरान्त गोरी के हैवानों ने चिश्ती के नेतृत्व में समूचे अजयमेरु को लूटने के साथ साथ सभी मन्दिरों को ध्वस्त कर उनके अवशेष पर-“ढाई दिन का झोपड़ा” नाम से जो मजाक अर्थात मजार बनायी वहाँ और चिश्ती की कब्र पर हमारे कुछ मूर्ख हिन्दू -“चादर” चढाते हैं ?
तीन लाख से भी अधिक चौहानों की हत्या कर सात लाख नोनिया अर्थात चौहानों को जबरन मुस्लिम बनाने वाले चिश्ती को -“ख्वाजा” की संज्ञा दी गयी, और यही वह कालखण्ड था जब समूचे राजस्थान से चौहानों को निकलने के लिए बाध्य होना पडा।

कुतूबुद्दीन ऐबक द्वारा बिहार पर प्रहार करने का मुख्य कारण था वहाँ की-“नोनिया मिट्टी” जिससे शोरा,पोटैशियम नाइट्रेट बनाने की कला नोनिया समाज को ही पता थी ! अंग्रेजों द्वारा यहाँ से कुछेक नोनिया रासायनिक विदों का अपहरण कर लंडन ले जाया गया और यहाँ की मिट्टी का निर्यात कर उनसे-उससे बने गोले-बारूद का उपयोग कर-“वाटरलू” के युद्ध में नेपोलियन बोनापार्ट की पराजय का इतिहास लिखा गया।
मित्रों ! बिहारी नोनिया समाज ने ही वहां की नोनिया मिट्टी से बने -“शोरे” से उस -“सोडे” का आविष्कार किया जिससे आजतक एंटीसेप्टिक मरहम,कपडे धोने,हेयर डाई से लेकर फल,मछली, सब्जी आदि को संरक्षित करने का कार्य किया जाता है। इसी कारण इस्ट इंडिया कम्पनी बिहार की नोनिया मिट्टी को-“सफेद सोना” कहती थी।
सन् १७७० से १८०० पर्यन्त नोनिया समाज ने ईस्ट इंडिया कंपनी के स्थानीय दलालों को गोलियों हेतु अत्यावश्यक शुद्ध शोरा और गन्धक की आपूर्ति बन्द कर दी थी ! गन-पाउडर के अभाव में ईस्ट इंडिया कंपनी की चूलें हिल गयी थीं ऐसे विषम काल में अंग्रेजों ने इस समाज पर अत्याचार की सभी हदों को पार कर दिया था ! इस कालखंड को इतिहास में-“नोनिया विद्रोह” के नाम से गलत ढंग से अंग्रेज लेखकों ने अंकित किया और हमारे तीन बंदरों की सरकार ने ऐसा ही स्वीकार भी कर लिया।

मित्रों ! ये तो बराक उपत्यका है ! यहाँ पे एकमात्र विशेष भाषायी लोगों के अतिरिक्त अन्य किसी भी व्यक्ति-समुदाय का अस्तित्व ही नहीं है ! इनके अनुसार नोनिया समाज में कोई महापुरुष हुवा ? सन् १९३० के नमक सत्याग्रह में दांडी यात्रा के अंतर्गत इसी नोनिया समाज का ७०% से भी अधिक महत्व इसलिए था क्योंकि इन्होंने ही नमक बनाकर तद्कालीन कांग्रेस महासभा को उससे उपलब्ध सम्पूर्ण राशि दे दी ! ये आपको गांधी के बन्दर नहीं बतायेंगे। तद्कालीन इस आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाने के कारण-“अमर शहीद राष्ट्रीय योद्धा श्रीमान बेनी नोनिया जी” ने सन् १९३६ में एक ब्रिटिश अधिकारी के द्वारा हो रहे सार्वजनिक अत्याचार से मर्माहत होकर उसे गोली मार दी थी जिसके कारण बेनी नोनिया जी को वाराणसी के चौकाघाट में फांसी पर चढा दिया गया था। स्वतंत्रता संग्राम में नमक सत्याग्रह के कारण आज के झारखण्ड,बिहार, राजस्थान, पश्चिम बंगाल ही नहीं अपितु बराक उपत्यका में भी लाखों लाख नोनिया स्वतंत्रता सेनानियों के पराक्रम का समूचा देश आभारी है केवल-“बराक उपत्यका” को छोड़कर।

ये अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत का स्वाधीनता संग्राम जिनके योगदान बिना व्यर्थ होता उसी चौहान वंशीय नोनिया समाज का इतिहास के पन्नों से नाम मिटाने का हर सम्भव प्रयास तीन बंदरों ने किया। निबंध के उपसंहार में नोनिया समाज के बलिदान,योगदान, आविष्कार,वीरता जैसे महत्वपूर्ण कार्यों हेतु उनकी ह्रदय से वन्दना करता हूँ और समूचे विश्व को उनके द्वारा दी गयी अभूतपूर्व वैदिकीय रासायनिक उपहार के लिये उनको शत-शत नमन के साथ-“आनंद शास्त्री सिलचर से मो•नं•6901375971 

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