आदरणीय मित्रों ! आज आपके समक्ष भगवती शताक्षी अर्थात- “माँ शाकम्भरी देवी” की सन्तान महावीर क्षत्रिय कुल दीपक- “अग्निवंशी” हिन्दू समाज के रक्षक-“लोनिया” अर्थात “नोनिया” समाज के संदर्भ में यह निबंध प्रस्तुत कर रहा हूँ। जनवरी २०२३ में दिलीप कुमार की प्रेरणा से सम्पन्न हुवे श्रीरूद्र महायज्ञ के अंतर्गत शिव की प्रेरणा से जिस शिव महापुराण का आयोजन घुंघुर की त्रिवेणी में हुवा ! वहाँ इस भव्य और ऐतिहासिक समाज के समीप आने का मुझे सौभाग्य मिला उसके लिये मैं सदैव कृतज्ञ रहूँगा।
राजस्थान-जयपुर के सांभर नामक स्थान में-“सांभर पीठ” देवी का वह स्थान है जहाँ से इन धनुर्वेद के विज्ञाता,प्रसिद्ध रासायनिक विज्ञान के महारथी,महर्षि मार्कण्डेय के मानस पुत्र अर्थात-“चौहान लूणकार” समाज ने अपनी कला-कुशलता से अनादि काल से पृथ्वी की सुरक्षा,भरण,पोषण एवं समृद्धि को अक्षुण्ण रखा।
मित्रों ! अजमेर के प्रसिद्ध नागवंशी चक्रवर्ती सम्राट महाराजा सोमेश्वर को अपने पूर्वजों से प्राप्त अर्थात कुल परम्परागत प्राप्त जिस रसायन विद्या का अनुभव था वह अपने-आप में अद्वितीय और अद्भुत है। “यजुर्वेदीय शाखा सामवेद” का नामकरण भी सांभर झील तट पर प्रकट हुयी ॠचाओं के कारण हुवा जान पडता है ! वैसे भी झुंझनूं इनकी कार्यस्थली रही है। धनुर्वेद जहाँ यजुर्वेद का उप-वेद है वहीं धनुर्वेद पर लिखित निबन्ध संग्रह को-“अग्नि पुराण” के नाम से जाना जाता है।
आज समूचे विश्व की रक्षा क्षेत्र से सम्बंधित इकाईयों को धनुर्वेद के विज्ञाता नोनिया समाज का ऋणी होना चाहिये कि इन्हीं लोगों ने परम्परागत-“गंधक,कलमी शोरा,अम्ल एवं नून अर्थात लवण” के निर्माण एवं उपयोग की विधि-“मानव समाज” को सिखलायी। इसी कारण आपको-“लूणकार” की संज्ञा दी गयी।
भगवान सूर्य एवं चन्द्रमा का संयुक्त वंशज चौहान नून समुदाय अनादि काल से समुद्र जल से नमक की खेती कर उसी के द्वारा उस शोरे का भी निर्माण करता आया है जो गंधक के साथ संयोग कर -“बारूद” बन जाता है ! जो सुवर्ण को तपाकर मैल हटा देता है ! और जिस नमक के बिना-“अन्न” अन्नपूर्णा नहीं बन पाता।
मित्रों ! आपको आश्चर्यचकित होने की आवश्यकता है कि-” नाइट्रिक,हाइड्रोक्लोरिक एवं सलफ्यूरिक अर्थात गंधक के तेजाब का आविष्कार नोनिया समाज ने ही किया था किन्तु दुर्भाग्य से इनका पेटेंट पश्चिमी चोरों ने अपने नाम करा लिया।
ब्रम्हाण्ड की सबसे हल्की वायु-“उदजन” अर्थात हाइड्रोजन के क्षार से लवण निकालने की प्रक्रिया के ज्ञाता इस समाज ने समुद्र जल से लवण का आविष्कार करने के साथ साथ कालान्तर में जल शुद्ध करने के नाना संयंत्रों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया।
मित्रों ! इनके पूर्वजों ने गंधक और शोरे के द्वारा विमानन प्रौद्योगिकी विकसित की अर्थात सृष्टि के प्रथम वायुयान-“पुष्पक” का ईंधन इनके द्वारा ही निर्मित हुवा होगा।
भगवान वेदव्यास ने अग्नि पुराण में कहा है कि-
“दुस्टदस्युचोरादिभ्यः साधुसंरक्षणं धर्मतः।
प्रजापालनं अस्त्रस्य धनुर्वेदस्य प्रयोजनम्॥”
प्राचीन काल से ही अस्त्र अर्थात फेंक कर चलाये जाने वाले आयुधों में आदिवासी जनजाति की ये वीर वैज्ञानिकीय विधा में निपुण जाति ने सर्वप्रथम-“तीर धनुष” का निर्माण किया और इसी को धीरे-धीरे विकसित करते हुवे पाशुपातास्त्र,वरूणास्त्र, नारायणास्त्र,नागास्त्र, शतघ्नि,प्रक्षेपास्त्रों की रचना की। अग्नि पुराण में इनके संदर्भ में कहते हैं कि-
“गुणमुष्टिः लक्ष्याभ्यासस्वरूपाणि अनध्याय काष्ठछेदनम्।
“लूणकार” शिक्षा लक्ष्यस्खलनविद्या हन्तव्याहन्तव्योपदेशः॥”
यजुर्वेद के अनुसार इस चोल वंश अर्थात चालुक्य चौहान लूणकार क्षत्रिय-“गर्ग,देवल,चैन्य,गार्
भविष्य पुराण एवं श्रीमद्भागवत के अनुसार महाराज-“पृथु” के पिता राजा-“वेन” ईक्ष्वाकु कूल भूषण राजा अंग तथा मृत्यु देवी की मानसी पुत्री-“सुनीथा” के गर्भ से उत्पन्न हुवे थे। अर्थात भगवान श्रीराम के भी वंशज आपको माना जाता है। इसी कारण मार्कण्डेय पुराण में आपको-“चाक्षुस मनु” की संज्ञा दी गयी है जिसका पाठ हम सभी -“दुर्गा सप्तशती” के अंतर्गत करते आये हैं।
देश देशान्तर में भारद्वाज गोत्रीय यह जनजाति-“जाट” भी कही जा सकती है। मित्रों ! सौराष्ट्र से पुनर्संगठित राज्य-“गुजरात” जो कि अपने लवण निर्माण हेतु विश्व प्रसिद्ध है वहाँ नून को गुजराती में-“मिठूं” कहते हैं ! अर्थात नोनिया समाज इतना मीठा समाज है जिसके अभाव में छप्पन भोग व्यर्थ हैं। मैं समझता हूँ कि हमारे पूर्वजों और हम सभी ने इनका बनाया-“नमक” खाया है। क्रमशः शेष अगले अंक में-“आनंद शास्त्री शिलचर से मो•नं•6901375971