श्रीहरिकोटा. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान -3 की सफल सॉफ्ट लैंडिंग के बाद, इसरो सूर्य का अध्ययन करने के लिए तैयार है. चांद के बाद अब सूर्य मिशन के लिए आदित्य -एल 1 अंतरिक्ष यान शनिवार (2 सितंबर) को उड़ान भरेगा. वेधशाला मिशन, जो लगभग 120 दिनों में लैग्रेंज बिंदु 1, या एल 1 तक पहुंच जाएगा. ये पांच साल से अधिक समय तक चलेगा. एल 1 एक सुविधाजनक बिंदु है – पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी और सूर्य से लगभग 148.5 मिलियन किमी दूरी पर, जहां सूर्य और पृथ्वी के बीच गुरुत्वाकर्षण बल पूरी तरह से संतुलित हैं. मिशन में सात पेलोड हैं और इसका पहला, दृश्यमान उत्सर्जन लाइन कोरोनाग्राफ या वीईएलसी, बेंगलुरु में भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (आईआईए) के प्रोफेसर रमेश आर और उनकी टीम द्वारा विकसित और डिजाइन किया गया है.
आदित्य एल1 का बजट सिर्फ 400 करोड़ रुपए है जो चंद्रयान 3 मिशन से 200 करोड़ रुपये कम है. चंद्रयान 3 में 615 करोंड़ रुपये खर्च हुए थे. वहीं दूसरी ओर ये नासा के सूर्य मिशन से 97 फीसदी सस्ता है. PSLV-C57 रॉकेट आदित्य L1 सैटेलाइट को पृथ्वी की निचली कक्षा में लॉन्च करेगा. लॉन्च सुबह 11:50 बजे होगा. सूर्य और पृथ्वी के बीच एक L1 बिंदु है. इसे हेलो ऑर्बिट कहा जाता है. वहां आदित्य एल1 स्थापित किया जाएगा.
यह मिशन सूर्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराएगा. उम्मीद है कि सूर्य के बारे में कई अनजाने रहस्य उजागर होंगे. आपको सूर्य की विभिन्न परतों के बारे में जानकारी मिलेगी. यह इतने वर्षों तक सूर्य का चक्कर लगाता रहेगा. सौर तूफान, सौर कोरोना और अन्य घटनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करेगा. चंद्रयान-3 की तरह, आदित्य पृथ्वी की परिक्रमा करने वाला पहला मिशन होगा. कुछ राउंड करने के बाद 15 लाख किलोमीटर का सफर तय कर यह एल-1 प्वाइंट पर पहुंचेगा. इस बिंदु की परिक्रमा करते हुए आदित्य-एल1 सूर्य की बाहरी परत के बारे में जानकारी प्रदान करेगा.
इसरो ने अपने हर मिशन में नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं. दूसरे देशों की तुलना में भारत ने कम बजट में सोलर मिशन की योजना बनाई है. आदित्य मिशन की लागत 400 करोड़ रुपये है. नासा ने सूर्य मिशन पर 12,300 करोड़ रुपये खर्च किये थे. इसका मतलब है देश इसरो दुनिया में फिर से नया रिकॉर्ड बनाने जा रहा है.
खास बात तो ये है 23 अगस्त को चांद पर जिस चंद्रयान की सॉफ्ट लैंडिंग हुई थी, उसका बजट मात्र 615 करोड़ रुपये था. कई देशों ने कम लागत पर सफलतापूर्वक अभियान चलाने की भारत की क्षमता की सराहना की है. दुनिया के कई देश ऐसा ही महसूस करते हैं. चंद्रयान-3 की सफलता के बाद दुनिया के कई देश इसरो के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं.