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11, काशीपुर रोड, कोलकाता-2, के काव्य कक्ष में रविवार की संध्या को ‘शब्दाक्षर’ पश्चिम बंगाल इकाई द्वारा हिंदी दिवस समारोह सोल्लास मनाया गया। सरस्वती वंदना के उपरांत कार्यक्रम अध्यक्ष व राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष शब्दाक्षर दया शंकर मिश्रा ने हिंदी की महत्ता पर सारगर्वित वक्तव्य प्रस्तुत किया। तत्पश्चात समारोह में उपस्थित राष्ट्रीय अध्यक्ष शब्दाक्षर रवि प्रताप सिंह ने शब्दाक्षर द्वारा 25 राज्यों में हिंदी के प्रचार प्रसार हेतु कार्यरत प्रदेश एवं जिला समितियों द्वारा किए जा रहे उल्लेखनीय कार्यों की राज्यवार समीक्षा प्रस्तुत की। वक्तव्य सत्र पश्चात काव्य सत्र प्रारंभ हुआ जिसका कुशल संचालन प्रदेश संगठन मंत्री ‘शब्दाक्षर’ कवि नंदू बिहारी ने किया।
प्रथम रचनाकार के रूप में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शब्दाक्षर शायर कृष्ण कुमार दुबे ने ग़ज़ल का मतला कुछ इस तरह प्रस्तुत किया-
“कमी तुझमें जो है, सुधारे चला चल।
मुसीबत से खुद को, उबारे चला चल।।”
इसी क्रम में कवि हीरालाल साव की पंक्तियां थी –
“सत्ता के अहंकार में, मत इतना मगरुर बनो।
कभी कभी तो दीन दुखी की पीड़ा को भी दूर करों।।”
मुख्यतः भोजपुरी के रचनाकार जीवन सिंह ने सावन के महीने को चित्रित करते हुए कुछ इस तरह से पंक्तियां पढ़ी –
“सावन के महीना, घेरले बदरिया।
बरसेला पनिया, बीच अंगनवां।।”
दक्षिण पूर्व रेलवे की पूर्व वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी कवयित्री सुधा मिश्रा द्विवेदी ने हिंदी के प्रति अपनी चिंता और पीड़ा को कुछ इस तरह से व्यक्त किया –
“हिंदी की अस्मिता बचा लो, अंग्रेजी ना अंतस में पालो।
हिन्दी को हिंदी रहने दो, हिंग्लिश में इसको ना ढालो।”
कवि गौरी शंकर दास की अभिव्यक्ति कुछ इस तरह रही-
“खत लिखने का वह जमाना अब कहाँ रहा,
छुप छुप के प्यार करने का जमाना अब कहाँ रहा।।
बढ़ती उम्र ने बहुत कुछ बदल कर रख दिया,
बागों में मिलने का वो जमाना अब कहाँ रहा।।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित मित्र संस्था हिंदी साहित्य परिषद के संस्थापक अध्यक्ष संजय शुक्ला का यह गीत सराहा गया जिसका एक बंद बतौर बानगी प्रस्तुत है-
“संजय के अरमान हैं गहरें, बहक उठीं सागर की लहरें।
मेरी ठंडी राख पर तुम क्या, अंतिम दीप जलाओगी।
तुम गीत खुशी के गाओगी?
राष्ट्रीय संगठन मंत्री शब्दाक्षर विश्वजीत शर्मा ‘सागर’ ने आज के सामायिक चर्चित विषय भारत और इंडिया के फर्क को अपने शब्दों में तमाम मुद्दों को विश्लेषित करते हुए जो कुछ कहा उसके लिए बतौर नमूना ये दो पंक्तियां पर्याप्त है-
“भारत” में फुफेरी और मौसेरी बहन हैं।
“इंडिया” में तो सबके सब कजिन है।
शायर रवि प्रताप सिंह ने रचनाकारों को आह्वान करने वाली एक प्रभावी ग़ज़ल पढ़ी, जिसका एक शेर कुछ इस तरह से था –
“नखशिख वर्णन करके कितने भर डालें कोरे पन्नें,
जो सीमा पर शीश चढ़ाते, लिक्खो उन मतवालों पर।”
संचालक नंदू बिहारी ने अपनी बारी आने पर हिन्दी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा बनाने का आह्वान करते हुए कहा-
“हिंदी कब अपने अधिकारों को पायेगी,
क्या यूहीं बस झूठी बधाई बांटी जाएगी।
सफर राजभाषा का हिंदी तय कर बैठी है कबसे,
किंतु कभी हिंदी क्या राष्ट्रभाषा बन पाएगी?”
कार्यकम अध्यक्ष कवि दया शंकर मिश्रा ने हिन्दी के प्रति नैराश्य को दूर करते हुए आश्वस्त करने वाली रचना सुनाई, जिसकी सिर्फ दो पंक्तियां उनके भावों को व्यक्त करने के लिए काफी है –
“ये माना अंग्रजी पूरी दुनिया को चलाती है,
पर हिन्दी भी तो पूरे जग में हमारी पहचान कराती है।”
राजभाषा केंद्रित इस आयोजन में बड़ी संख्या में प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित रहे, जिनमें से कुछ उल्लेखनीय नाम इस प्रकार हैं- राष्ट्रीय सलाहकार ‘शब्दाक्षर’ तारकदत्त सिंह, एस. एन. उपाध्याय, गिरिजा शरण सिंह, शशिकांत तिवारी, संतोष सिंह, राजेश सिंह व क्षत्रिय चेतना मंच के सचिव संजय कुमार सिंह आदि। कार्यक्रम संयोजक तारक दत्त सिंह के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हिन्दी दिवस समर्पित इस साहित्यिक अनुष्ठान का समापन हुआ।