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संघर्ष

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सौभाग्य जगाना है तो अपना,आत्मबल मजबूत करो।
“बिन संघर्ष संसिद्धि नहीं..”,मन में यूक्ति महफूज़ करो।।
सुनो कहानी तितली का, वो कैसी कष्ट उठाती है ।
कठिनाइयों की चार चरण को, पुरा कर के आती है।।
निरंतर देढ़ महिने तक, वो खुद ही श्रम में ढलती है।
अंडा लार्वा प्युपा क्रम का, तीन दशाएं बदलती है।।
अब वो चौथी चरण में अपनी, मेहनत पुरा भरती है।
तितली रानी बदन सजाये, विकसित हो निखरती है।।
देख लो बंजर भूमि जब जब, ढंग से जोता जाता है,
सह सह दु:सह दर्द निरंतर, उर्वर सा बन जाता है।।
शिलाखंड जब उत्कीरण की, दर्द प्रखर सह जाता है।
बात सत्य ये सत्य कथन है, वो ईश्वर कहलाता है।।
दुध ऊबलकर  मथ जाए…,तब-ही मक्खन बन पाता है।
मक्खन तप के आये तब वो, घी बन रौब जमाता है।।
पानी तप के भाप बने…,तब-ही अम्बर तक जाता है।
मेघ की पदवी हासिल कर वो, तब बारिष बन पाता है।।
तुम तो खुद ही वो शक्ति हो, जीसने दौड़ लगायी थी।
मां की कोंख-नली में बाज़ी, लाखों में जीत आयी थी।।
हो करके नियोजित बाधाओं को, वहां तुम ही  ने धोये थे।
आज हो विक्सित मानव तुम,नींव वहां खुद बोये थे।।
हो जावो तुम सत्यनिष्ठ, तुम परिशुद्ध तुम लायक हो।
पुष्टक्रूर तुम कठिन दृढ़ तुम,गौरवश्री आह्वायक हो।।
जग जाओ हुंकार भरो, अब लगन तुम्हें लल्कार रही।
क्यु बैठे चुपचाप पड़े  हो,सिद्धि तुम्हें पुकार रही।।
नस नस में अब भरा उमंग है, दुनिया को दिखलादो तुम।
इतिहासों में दर्ज हो जाना, है कैसे सिखलादो तुम।।
                       चन्द्र कुमार ग्वाला, शिलचर(असम)

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