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हिन्दू धर्म के शास्त्रों में तीन प्रकार के ऋण कहे गये है – देव ऋण , ऋषि ऋण एवमं पितृ ऋण | और इनमें से पितृ ऋण के निवारण हेतु ही पितृ पक्ष का वर्णन किया गया है , जिसे सरल शब्दों में श्राद्ध कर्म भी कहा जाता है |
शास्त्रों में वर्णन है कि – श्रद्धयाम इदम श्राद्ध | यानि पितरों ( पुर्वजों ) के नाम से पितरों के लिये श्रद्धापूर्वक जो कर्म किया जाता है , वही श्राद्ध है , जबकि महर्षि वृहस्पति के अनुसार जिस कर्म विशेष में अच्छी प्रकार से पकाए हुए उत्तम व्यंजनों को दूध , घी व शहद के साथ श्रद्धापूर्वक पितरों के नाम से गाय , ब्राह्मण आदि को प्रदान किया जाता है , वही श्राद्ध है |
भारतीय संस्कृति में माता – पिता को देवताओं के समान माना जाता है और शास्त्रों के अनुसार यदि माता पिता प्रसन्न होते है तो सभी देवतादि स्वयं प्रसन्न हो जाते है ! ब्रह्मपुराण में तो यंहा तक कहा गया है कि श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाला मनुष्य अपने पितरों के अलावा ब्रह्म , रुद्र , अश्विनी कुमार , सूर्य , अग्नि , वायु , विश्वेदेव व मनुष्यगण को भी प्रसन्न करता है |
हिन्दू धर्म की मान्यता है कि मृत्यु के बाद मनुष्य का पंचभूतों ( पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु एवमं आकाश ) से बना स्थूल शरीर तो रह जाता है , लेकिन सूक्ष्म शरीर ( आत्मा ) मनुष्य के शुभ – अशुभ ( कर्मो ) के अनुसार ईश्वर द्वारा बनाए गये कुल 14 लोकों में से किसी एक लोक को जाती है |
यदि मनुष्य ने अपने जीवन मे अच्छे कर्म कीए होते है तो उसकी आत्मा स्वर्गलोक , ब्रह्मलोक या विष्णुलोक जैसे उच्च लोकों में जाती है , जबकि यदि मनुष्य ने पाप कर्म ही अधिक किए हो तो उसकी आत्मा पितृलोक में चली जाती है और इस लोक में गमन करने हेतु उन्हें भी शक्ति की आवश्यकता होती है , जिसे वे अपनी संतति द्वारा पितृ पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध के भोजन द्वारा प्राप्त करते है |
भारतीय संस्कृति के अनुसार पितृपक्ष में तर्पण व श्राद्ध करने से आशीर्वाद प्राप्त होता है , जिससे घर मे सुख – शांति व समृद्धि बनी रहती है ! हिन्दू शास्त्रों के अनुसार जिस तिथि को जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है , पितृ पक्ष में उसी तिथि को उस मृतक का श्राद्ध किया जाता है |
उदाहरण के लिये यदि किसी व्यक्ति के पिता की मृत्यु तृतीया को हो तो उस मृतक का श्राद्ध भी तृतीया को ही किया जाता है , जबकि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु की तिथि ज्ञान न हो तो ऐसे किसी भी मृतक का श्राद्ध अमावस्या को किया जाता है |
हालांकि यदि मृतक की मृत्यु तिथि ज्ञात हो , तो उस तिथि के अनुसार ही मृतक का श्राद्ध किया जाता है | जबकि तिथि ज्ञान न होने न होने की स्थिति में अथवा श्राद्ध करने वाले व्यक्ति का मृतक व्यक्ति के साथ संबंध के आधार पर भी श्राद्ध किया जा सकता है | विभिन्न तिथियों के अनुसार किस तिथि को किस सम्बन्धी का श्राद्ध किया जा सकता है , इसकी जानकारी निम्नानुसार है : –
( १ ) आश्विन कृष्ण प्रतिपदा – इस तिथि को नाना – नानी के श्राद्ध के लिये उत्तम माना गया है |
( २ ) आश्विन कृष्ण पंचमी – इस तिथि को परिवार के उन पितरों का श्राद्ध करना चाहिये जिनकी मृत्यु अविवाहित अवस्था मे हो गयी हो |
( ३ ) आश्विन कृष्ण नवमी – इस तिथि को माता व परिवार की अन्य महिलाओं के श्राद्ध के लिये उत्तम माना गया है |
( ४ ) आश्विन कृष्ण एकादशी व द्वादशी – इस तिथि को उन लोगों के श्राद्ध के लिये उत्तम माना गया है , जिन्होंने सन्यास ले लिया हो |
( ५ ) आश्विन कृष्ण चतुर्दशी – इस तिथि को उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो |
( ६ ) आश्विन कृष्ण अमावस्या – इस तिथि को सर्व पितृ अमावस्या भी कहा जाता है और इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है |