फॉलो करें

डिब्रूगढ़ में लुईतपोरिया स्वर्ण शाखा साहित्य सभा द्वारा वेदांत – वाचस्पति राधानाथ फुकन रचनावली विषय पर व्याख्यानमाला आयोजित संस्कृत भाषा के पंडित राधानाथ जी फुकन का जीवन एक आदर्श जीवन था – मनोहर वर्मा

69 Views
डिब्रूगढ़ , 28 सितंबर 2023, संदीप अग्रवाल
असम साहित्य सभा की स्वर्णिम इकाई  लुईतपोरिया स्वर्ण शाखा साहित्य सभा , डिब्रूगढ़ के सौजन्य से प्रारम्भ की गई व्याख्यानमाला की तीसरी कड़ी में श्री विश्वनाथ मारवाड़ी दातव्य औषधालय, डिब्रूगढ़ के सहयोग से  वेदांत वाचस्पति राधानाथ फुकन का व्यक्तित्व एवं कृतित्व विषय पर एक बौद्धिक सत्र का आयोजन हाल ही में ज्योतिनगर स्थित मारवाड़ी आरोग्य भवन अस्पताल के ” आरोग्य  उद्यान ” में किया गया | इसमें मुख्य वक्ता के रूप में डिब्रूगढ़ के जाने माने लेखक मनोहर वर्मा ने उपस्थित रहकर वेदांत वाचस्पति राधानाथ फुकन के जीवन वृत्तांत के बारे में संक्षेप में बताते हुए कहा कि उनका जन्म जोरहाट के कृपानाथ फुकन और माता रुकमिणी देवी के यहां सन 1875 के 15 जून को हुआ था, आज से लगभग 148 साल पहले। वह अंग्रेजी साम्राज्य का युग था । मनोहर वर्मा ने राधानाथ फुकन देव के ही लिखे एक काव्य ” तुम्हीं  दीन – तारण दुष्ट – दमन, भगत चित्त रंजन | ” का भी पाठ उपस्थित सभी के समक्ष किया | उन्होंने आगे राधानाथ फुकन के बचपन और शिक्षा पर भी प्रकाश डालते हुए बताया कि असमवासियों के लिए यह जानना महत्वपूर्ण हो सकता है कि सन् 1869 में सर्वप्रथम बी. ए. पास करनेवाले असमिया व्यक्ति आनंदराम बरुआ थे और सन् 1898 में एम. ए. पास करनेवाले प्रथम असमिया छात्र राधानाथ फुकन थे | उन दिनों किसी असमिया छात्र से एम. ए. पास कर लेने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी , लेकिन राधानाथ फुकन ने वह मिथक तोड़ा | वक्ता वर्मा ने उनके विवाह और कर्ममय जीवन के बारे बताते हुए कहा कि कलकत्ते में उनकी कानून की पढ़ाई पूरी हो जाने पर राधानाथ जी जोरहाट लौटकर यहां वकालत आरंभ की | काम में लगने के कुछ दिनों बाद ही जोरहाट के बालिगांव निवासी ओम नारायण बेजबरुआ की कन्या चंद्रप्रभा देवी के साथ उनका विवाह सम्पन्न कर दिया गया | सरकारी नौकरी से अवकाश प्राप्त करने के लगभग 6 साल बाद सन् 1937 में वाहनि चाय बगीचा खरीदकर उन्होंने अपना निजी व्यवसाय आरंभ किया और विशेष मनोयोग से बगीचे की उन्नति में व्यस्त हो गए | असमिया बंधुओं द्वारा संचालित अन्य बहुत से चाय बागानों की तुलना में वाहनि चाय बागान की आमदनी और संचालन व्यवस्था काफी अच्छी रही |
मनोहर वर्मा ने आगे  फुकन जी के अध्ययन एवम लेखन कार्य , जैसे – संगीत – नाटक , उनके ग्रंथों का संक्षिप्त परिचय , सांख्य – दर्शन , वेदांत – दर्शन आदि विषयों पर भी प्रकाश डाला | स्व. राधानाथ फुकन को मिले सम्मान एवम उपाधियों के बारे में बताते हुए वक्ता वर्मा जी ने बताया कि स्व. राधानाथ फुकन के ज्ञान और विद्वता को किसी भी बड़े से बड़े सम्मान या उपाधि से कम नहीं आंका जा सकता । कोई पैमाना ही नही है जो उनके  ज्ञान को माप सके | परन्तु हम अपनी श्रद्धा ज्ञापन करने के लिए कुछ तो करते ही है | अतः सन् 1957 में संस्कृत संजीवनी सभा , नलबाड़ी द्वारा उन्हें ” वेदान्त वाचस्पति ” की उपाधि प्रदान की गई | वेदांत वाचस्पति का अर्थ होता है देव गुरु वृहस्पति | 23 जून 1964, मंगलवार , आषाढ़ , तिथि चंपक चतुर्दशी को संध्या के 4 बजकर 25 मिनट पर उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो गई |
लुईतपोरिया स्वर्ण शाखा साहित्य सभा द्वारा आयोजित उक्त कार्यक्रम में संस्था के वरिष्ठ सदस्य एवम डिब्रूगढ़ के जाने माने साहित्यकार देवी प्रसाद  बागड़ोदिया , मनीराम अगरवाल सहित  डूंगरमल अग्रवाल , विश्वनाथ गाड़ोदिया , आत्माराम बिरमीवाल, संस्था के उपाध्यक्ष सुरेश अगरवाल , सचिव राहुल दास , प्रदीप मारोदिया , पवन गाड़ोदिया , गुरुनाम सिंह , युवा पत्रकार संदीप अग्रवाल , मुस्कान वर्मा सहित अन्य गण्यमान्य लोग उपस्थित थे | कार्यक्रम की शुरुआत में संस्था की ओर से मुख्य वक्ता मनोहर वर्मा का असमिया संस्कृति के प्रतीक फुलाम गमछे से स्वागत – सम्मान किया गया | कार्यक्रम में उपस्थित साहित्यकार देवी प्रसाद बागडोदिया , सुरेश अगरवाल , राहुल दास सहित अन्यों ने भी अपने विचार रखें | उक्त व्याख्यानमाला का सफल संचालन सुरेश अगरवाल तथा प्रदीप मारोदिया ने किया | यह जानकारी लुईतपोरिया स्वर्ण शाखा साहित्य सभा के कार्यकारिणी सदस्य संदीप अग्रवाल द्वारा दी गई है |

Share this post:

Leave a Comment

खबरें और भी हैं...

लाइव क्रिकट स्कोर

कोरोना अपडेट

Weather Data Source: Wetter Indien 7 tage

राशिफल