राहु ग्रह ही है सब दोषो की जड़ है, सबसे बड़ा कारण होता है पित्र दोष राहु की दशा जब भी आती है, तो राहु अपने नकारात्मक प्रभाव देना शुरू कर देता है सबसे पहले तो दिमागी संतुलन ठीक नहीं रहता है. अगर किसी की कुंडली में राहु की दशा शुरू है तो मानसिक तनाव, आर्थिक नुकसान, गलतफहमी, आपसी तालमेल में कमी, गुस्सा आना, वाणी का कठोर होना और अपशब्द बोलना शुरु हो जाता है. बहुत से लोगों को यह गलतफहमी भी होती है कि हमारे ऊपर जादू टोना कर दिया गया है.हां अगर हमारे ग्रह पावरफुल नहीं है, और राहु महादशा में चल रही है तो जातक के ऊपर बहुत जल्दी उपरी बाधाओं प्रभाव पड़ता है, यह सत्य है. ऊपरी प्रभाव हमारे पित्र दोष से भी संबंधित होते है. अगर उपरोक्त प्रकार के भाव मिलते है, तो समझना चाहिये कि किसी न किसी प्रकार से राहु का प्रकोप शरीर पर है, या तो गोचर से राहु अपनी शक्ति देकर मनुष्य जीवन को जानवर की गति प्रदान कर रहा है, अथवा राहु की दशा चल रही है, और पुराने पूर्वजों की गल्तियों के कारण जातक को इस प्रकार से उनके पाप भुगतने के लिये राहु प्रयोग कर रहा है. राहु से प्रभावित (ग्रस्त) मनुष्य के लक्षण के कारण हम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देतीं किंतु बहुधा हम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं.जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं.
*इन अदृश्य शक्तियों को ही आम जन ऊपरी बाधाओं की संज्ञा देते हैं.*
जिनके घटित होने की स्थिति में ये शक्तियां शक्रिय हो उठती हैं और उन योगों के जातकों के जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डाल देती हैं. प्रेत योनि के समकक्ष एक और योनि है जो एक प्रकार से प्रेत योनि ही है, लेकिन प्रेत योनि से थोड़ा विशिष्ट होने के कारण उसे प्रेत न कहकर पितृ योनि कहते हैं.प्रेत लोक के प्रथम दो स्तरों की मृतात्माएं पितृ योनि की आत्माएं कहलाती है. इसीलिए प्रेत लोक के प्रथम दो स्तरों को पितृ लोक की संज्ञा दी गयी है. सूर्य को पिता का कारक व मंगल को रक्त का कारक माना गया है.
अतः जब जन्मकुंडली में सूर्य या राहु पाप प्रभाव में होते हैं तो पितृदोष का निर्माण होता है. पितृ दोष वाली कुंडली में समझा जाता है कि जातक अपने पूर्व जन्म में भी पितृदोष से युक्त था. प्रारब्ध वश वर्तमान समय में भी जातक पितृदोष से युक्त है. जन्म के समय व्यक्ति अपनी कुण्डली में बहुत से योगों को लेकर पैदा होता है, यह योग बहुत अच्छे हो सकते हैं, बहुत खराब हो सकते हैं, मिश्रित फल प्रदान करने वाले हो सकते हैं या व्यक्ति के पास सभी कुछ होते हुए भी वह परेशान रहता है, सब कुछ होते भी व्यक्ति दुखी होता है! इसका क्या कारण हो सकता है? कई बार व्यक्ति को अपनी परेशानियों का कारण नहीं समझ आता तब वह ज्योतिषीय सलाह लेता है, तब उसे पता चलता है कि उसकी कुण्डली में पितृ-दोष बन रहा है और इसी कारण वह परेशान है.प्रेत दोष आदि को प्रमुख माना गया है, पित्रदोषों के कारण व्यक्ति को स्वास्थ्य हानि, आर्थिक संकट, व्यवसाय में रुकावट, संतान संबंधी समस्या आदि का सामना करना पड़ सकता है. पितृ दोष के बहुत से कारण हो सकते हैं.
जन्म कुण्डली में सूर्य-राहु एक साथ स्थित हों तब यह पितृ दोष माना जाता है, कुंडली के जिस भाव में यह योग बनेगा उसी भाव से संबंधित फलों में व्यक्ति को कष्ट या संबंधित सुख में कमी हो सकती है. यदि समय रहते इस दोष का निवारण कर लिया जाये तो पितृदोष से मुक्ति मिल सकती है. पितृदोष वाले जातक के जीवन में सामान्यतः निम्न प्रकार की घटनाएं या लक्षण दिखायी दे सकते हैं. मानसिक व्यथा का सामना करना पड़ता है. पिता से अच्छा तालमेल नहीं बैठ पाता,जीवन में किसी आकस्मिक नुकसान या दुर्घटना के शिकार होते हैं.जीवन के अंतिम समय में जातक का पिता बीमार रहता है या स्वयं को ऐसी बीमारी होती है जिसका पता नहीं चल पाता.
विवाह व शिक्षा में बाधाओं के साथ वैवाहिक जीवन अस्थिर सा बना रहता है वंश वृद्धि में अवरोध दिखायी पड़ते हैं. काफी प्रयास के बाद भी संतान का सुख नहीं मिलता है, गर्भपात की स्थिति पैदा होती है. अत्मबल में कमी रहती है, स्वयं निर्णय लेने में परेशानी होती है. वस्तुतः लोगों से अधिक सलाह लेनी पड़ती है. परीक्षा एवं साक्षात्मार में असफलता मिलती है. अगर कुंडली में या घर पर राहु का प्रभाव है या पितृ दोष का प्रभाव है तो पितृ पक्ष में जरूर उपाय करें आपको भरपूर लाभ मिलेगा. क्योंकि फिर कुलदेवी की पूजाएं शुरू हो जाएगी देवी शक्ति की पूजा शुरू हो जाएगी . हर किसी के पितृ होते हैं, और सबके पितृ इन 15 दिनों में बहुत बड़ी आशा लेकर के इस धरती पर आते हैं और हर किसी व्यक्ति को अपने पितरों के निवृति दान धर्म जरूर करना चाहिए क्योंकि इन्हीं पितरों से हमें आस औलाद हमारा सुख-दुख सब कुछ हमें इन्हीं से मिला है.
इसलिए पितृपक्ष में अपने पितरों को संतुष्ट जरूर करें.