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हिंदी को दबाने का प्रयास घातक सिद्ध हो सकता है
शिक्षा मंत्री का रवैया तानाशाही पूर्ण है
असम के वर्तमान शिक्षा मंत्री ,,,,देश के लिए अमर्यादित भाषा का प्रयोग करते हैं। शिक्षा विभाग में जो मन करे वही नियम लागू करते हैं। शिक्षकों के प्रति उनका व्यवहार भी तानाशाहीपूर्ण है। जिन शिक्षक वर्ग को हमारे समाज में उच्च स्थान प्राप्त है। शिक्षक हमारे समाज के आदरणीय पात्र हैं, उन्हीं शिक्षकों के अच्छे सुझावों को मंत्री जी पाखंड मानते हैं। यह निंदनीय है, दुखद है। मेरा किसी व्यक्ति पर विरोध नहीं है, परन्तु जिस समाज व्यवस्था से सरकारें बनती हैं,,, उन्हीं समाज व्यवस्था या शिक्षा व्यवस्था को सुधार के नाम पर मनमानी करना सरकार के गरिमा में धुल झोंकना प्रतीत होता है और जनता के साथ धोखा भी प्रतीत होता है।
हमें सचेत रहने की आवश्यकता है,,, असमिया, बांग्ला आदि भाषाएं हमारे मातृभाषा के समान आदरणीय है, हिंदी भाषा हमारी बोली होने के कारण हम हिन्दीभाषी सभी भारतीय भाषाओं का आदर करते हैं। परन्तु इसका यह कदापि तात्पर्य यह नहीं है कि हम अपने स्वभाषा पर कोई समझौता करेंगे। हिंदी को दबाने का प्रयास हमारे और पुरे देशवासियों ( राज्य निवासियों) के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। हिंदी से उपर अंग्रेजी को हम कदापि बर्दाश्त नहीं कर सकते।
हमें जनजागरण की आवश्यकता है, हिन्दी शिक्षा के सही सम्मान के लिए बराक घाटी के सभी हिन्दी शिक्षकों को एक मंच पर लाकर सलाह करने की आवश्यकता है, सभी के मतों से एक ठोस निर्णय लिया जा सकता है। सभी हिन्दी भाषी संगठनों को एक मंच पर लाकर सभा कर निर्णय लिया जाना चाहिए। मामले की गंभीरता को समझने की अत्यन्त आवश्यकता है।
आनंद दि्वेदी
सह सचिव
बराक हिंदी भाषी ब्राह्मण समाज, शिलचर असम