भारत के किसी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व द्वारा रचित उपरोक्त्त पञ्क्तियाँ आज भारत के भविष्य का पथ प्रदर्शक बननी दिखतीं हैं ! मित्रों ! गार्गी,विशाखा,शची,मधुरिमा,का देश,नवदुर्गा,राधिका सीता,सुलोचना,अहिल्या,शबरी की जन्मभूमि भारत ! सरस्वती, माधवी, शाकम्भरी,वैष्णवी,तारा,धूमावती की यह पावन वसुंधरा, द्रौपदी,कुन्ती,मन्दोदरी,जान्
“घोषा,गोधा,विश्ववारा,अपालोपनि
ब्रह्मजाया,जुहूर्नाम,अगस्त्यस्
इन्द्राणी चेन्द्रमाता च शर्मा रोमशोर्वशी,
लोपामुद्रा च नद्यश्च यमी नारी च शश्वत।।
श्रीर्लाक्षा शार्पराज्ञी वाक् श्रद्धा मेघा च दक्षिणा।
रात्री सूर्या च सावित्री ब्रम्हवादिन्य इरीताः ।।”
मित्रों ! फिर भी वेद पढ्ने का अधिकार स्त्री को नही है ? ऐसा कहने वाले अपने आपको वेदज्ञ कहते हैं ?सुन्दरी,ललना,लावण्या,प्रिया,
मित्रों ! आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमारी बच्चियों ने लडकों को ! पुरूष को बहुत पीछे छोड़ दिया है ! और अपनी प्रतिभा से पीछे छोडा है ! आज पुरुषों की अपेक्षा आईएएस,पीसीएस, मेडिकल,सीओ,आइटी,इंजीनियरिंग,
हमारी बहनों,माताओं,बेटियों को दोनों सदन और सभी विधानसभाओं में पूरे पचास प्रतिशत आरक्षण मिलना ही हमें उन्नति के सर्वोच्य शिखर का सोपान बन सकता है। मित्रों ! हमारी संस्कृति की विशेषता रही है कि-“सीताराम,राधेश्याम” हमारे पूर्वजों ने स्त्री शक्ति को सदैव आगे रखा है ये तो दुर्भाग्य से बौद्ध एवं जैन संस्कृति के अर्थ का अनर्थ कर कुछेक स्वार्थी लोगों ने पुरूषप्रधानता की नींव रखी परिणाम स्वरूप उन मुगलों को हमपर आक्रमण करने का अवसर मिला जिनके लिये- “औरत”एक ऐसी चीज है जो छुपाकर रखी जाती है ! जो बिस्तर की एक चादर के अलावा कुछ नहीं है।
किन्तु अपनी कुशाग्रता एवं एकाग्रता से आज समूचे भारत में हमारी बेटियों ने जिस शिखर को अपने बल पर छुवा है ! बिना किसी आरक्षण की बैशाखी से छुवा है उनकी कार्यप्रणाली और क्षमता ने आज पुरूषप्रधान समाज को दर्पण थमा दिया ! शक्ति का प्रदर्शन नहीं करते ! प्रदर्शन करने से शक्ति तांडव करती है ! भयभीत करती है अथवा कि समाज को दूषित कर देती है ! शक्ति संविधान और शाषन के लिये होती है ! पुरूषों की अपेक्षा हमारी बच्चियाँ शाषन कईयों गुना अधिक समरसता,श्रमशीलता, न्याय,निर्भीकता एवं कुशलता से संचालित करेंगी ये हम पुरुषों को ह्रदय से स्वीकार करना चाहिए ! बस शर्त इतनी सी है कि उनके नाम पर-“पंचायत प्रमुख पति” का शाषन न हो।
मित्रों ! मात्र उनके स्त्री होने के कारण हमने जीवन के सभी क्षेत्रों में उनके साथ अन्याय इसलिए किया क्यों कि उन्होंने विरोध करना उचित नहीं समझा ! मैं ऐसी सैकडों बच्चियों को जानता हूँ जिनका कोई भाई नहीं है ! और हम समाज के ठेकेदारों ने ये प्रचारित कर रखा है कि स्त्रियों को अपने माता-पिता,पति,बच्चे अथवा कि भाई इत्यादि की मृत्यु हो जाने पर उनका अंतिम संस्कार तक करने का अधिकार नहीं है ! ये कैसी मानसिकता है ? ये कैसा धर्म के नाम पर अत्याचार है ? वे चाचा,काका,देवर, अथवा बिल्कुल ही बूढे हो चुके माँ बाबा अंतिम संस्कार करेंगे ? ऐसे नियम,विधान और परम्परायें बूढी हो चुकीं ! जीवन के हर क्षेत्र में नारी को समान अधिकार है ! नारी अर्थात-“ना अरि” वो शत्रु नहीं है हमारी ! आज समूचे भारत को समवेत स्वर में स्त्री शक्ति को समान अधिकार अर्थात पचास प्रतिशत आरक्षण मिले इसके मार्ग को प्रशस्त करना चाहिए—“आनंद शास्त्री सिलचर, सचल दूरभाष यंत्र सम्पर्कांक 6901375971″
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भारत माता के चरणों में कुछ फूल चढाने लाया हूँ।
माँ बराक के पावन जल से तेरे चरण पखारन आया हूँ॥
हिन्दी ही भारत माता हैं,भारत माता ही हिन्दी हैं।
सब भाषाओं की माला रच मैं उन्हें चढाने लाया हूँ ॥
हिन्दु माता के वरद पुत्र ! बाकी सब भी तो हिन्दू हैं ।
मेरे तेरे इनके उनके सबके पुरखे भी हिन्दू हैं॥
“आनंद” आ रहा आज मुझे,नतमस्तक हो कर चरणों में।
तेरे चरणों की लाली में स्वरक्त मिलाने आया हूँ ॥
हिन्दी सुगंध हैं माटी की,हिन्दी चोटी है हिमाला की।
है आज तिरंगे को लेकर इन्दू पर लहराती हिन्दी ॥
आद्रता समुद्र की हिन्दी है,पावनता गंगा की हिन्दी है ।
है प्यास बुझाती हिन्दी ही,ये ध्वनि झरनों की हिन्दी है॥
सूरज हिन्दी से तपता है,इन्दू हिन्दी से दमकता है।
उष्मा अग्नि की हिन्दी है, यज्ञों की अग्नि हिन्दी है॥
सुदूर ऋषिदेश से लेकर के श्रीनाम देश तक हिन्दी है।
मंदरांचल देश की मंदारी भाषा भी हमारी हिन्दी है॥
है चित्रो की भाषा हिन्दी जो वो वेद मंत्र से निकली है।
अंग्रेजी लैटिन या फ्रेन्च लीपि इनकी गोमुखी भी हिन्दी है॥
जीवन प्रवाह में रची बसी केवल हिन्दू और हिन्दी है॥
वेदों की भाषा हिन्दी है,उर्दू गुरूमुखी भी हिन्दी है।
बांग्ला,मलयाली,उडिया कन्नड़ मराठी भाषा भी हिन्दी है॥
असमी,प्राकृत,संथाल,बिहारी भोजपुरी भी हिन्दी है।
मेवाड सिंध गुर्जर गोवान गांधार की भाषा हिन्दी है॥
सूरज से ध्वनि निकलती है,है ॐ शब्द जिसे कहते हैं ।
नासा,इसरो सब मुक्त कण्ठ गुणगान ओम का करते हैं॥
आओ मिलकर भारत माता के गीत सभी अब गाते हैं ।
है हिन्दू का उद्घोष यही हम हिन्दी को अपनाते हैं ॥
सौगन्ध राष्ट्र की खाते हैं,बस धर्म हमारा हिन्दी है ।
आनंद आ रहा आज मुझे,भाषा जो मेरी हिन्दी है॥
अब वोट हमारा हिन्दू को और कर्म हमारा हिन्दी है।
तेजस् उदारता शौर्य धैर्य वीरों की भाषा हिन्दी है॥
–“आनंद शास्त्री सिलचर, सचल दूरभाष यंत्र सम्पर्कांक 6901375971″