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आइए सभी एक साथ बैठ कर विचार विमर्श करे, कुछ निर्णय लें 

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आदरणीय संपादक जी,
सादर नमस्कार।
मै हिन्दी भाषा को लेकर राज्य सरकार के रवैए पर मेरा विचार रखना चाहता हूं। मुझे किसीको ज्ञान देना या किसीके भावनाओ को आहत करने का कोई इरादा नही है। फिर भी क्षमाप्रार्थी। और मै स्वयं को इस सुप्त समाज का एक सुप्त सदस्य मानते हुए आत्म- निन्दा करते हुए ही लिख रहा हूं।
हिन्दी हमारे इस घाटी के एक बड़ी आबादी का मातृभाषा है और साथ ही राष्ट्रभाषा भी। फिर भी असम के राष्ट्रवादी (?) सरकार के ऐसे सिध्दांत से एक समाज का सिर्फ मौलिक अधिकार का ही हनन नही बल्कि उस समाज का कला-साहित्य-संस्कृति को भी समाप्त करने का साजिश है! पर हम इतने लालची, खुदगर्ज, मुर्ख, गुंगा-बेहरा, आत्मविश्वासहीन, आत्मसम्मानहीन और कमजोर बने हुए है कि सबकुछ जानते हुए भी कुछ करने कि स्थिति मे नही है। कुछ ही दिन पहले का बात है। करम पूजा को लेकर सरकार और शासक दल को AATTSA  ने चेतावनी दे दी और सरकार को अपनी स्थिति से हटना पड़ा,जबकि वर्तमान शासक दल मे सांसद/विधायक और दो दो मंत्री AATTSA से ही निकल कर आए है।  वे कर सकते है क्योंकि संगठन मे ताकत है, हमारे जैसे अलग अलग नेता केन्द्रीक अलग अलग 25/30 संघठनो मे बंटे हुए नही है। हमारे यहां तो ऐसा करने से सरकार तो दूर की बात, पहले तो आपस मे ही दुश्मनी को बुलाना है! कौन, किसको, कहां, कैसे कुचलकर आगे निकल जाए, इसका खेल शुरु हो जाता है। हमे तो चापलूसी करनी है। दुसरे को नीचा दिखा कर अपना गाना बजा कर खुश रहना है।
मै बहुत ही विनम्रतापूर्वक सभी संगठनों के सभी पदाधिकारी और कार्यकर्ता तथा समाज के विशिष्ट जनों निवेदन करना चाहता हूं, आइए सभी इस विषय पर एक साथ बैठ कर विचार विमर्श करे, कुछ निर्णय ले और आगे का लड़ाई लड़े।
किसीके भावनाओ को चोट लगे तो मै पुनः क्षमाप्रार्थी हूं। 🙏
गोलक ग्वाला अरुणाबन चाय बागान, काछाड़

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