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हां, मैं दूर आसमा, के सफीनों पे ,
तुझे बस तुझे लिखना चाहता हूं
हां , मैं तेरी बस तेरी आंखों की,
स्याह गहरी पुतलियों के,
दिखना चाहता हूं
हां, में दूर आसमा, के सफीनों पे ,
तुझे बस तुझे लिखना चाहता हूं
हां, मैं इन बादलों के तले,
आदमों की कतारों से परे
बेझिझक, बेशबब तेरी बस तेरी,
हथेली की छुअन से पिघलना चाहता हूं
हां, में दूर आसमा, के सफीनों पे ,
तुझे बस तुझे लिखना चाहता हूं
हां, मैं अपनी सारी बेचैनियों की
कतरानों की गठरी को
तेरी बस तेरी, चढ़ती सुब्हों,
ढलती शामों के नाम करना चाहता हूं
हां, में दूर आसमा, के सफीनों पे ,
तुझे बस तुझे लिखना चाहता हूं
हां, मैं इन सारे अक्लमंदों की सोगतों के दिए हुए सारे फूल मुरझाकर
किसी बेवकूफ की मानिंद,
तेरे बस तेरे इर्द गिर्द,
खुशबू बन बिखरना चाहता हूं
हां, में दूर आसमा, के सफीनों पे ,
तुझे बस तुझे लिखना चाहता हूं
हां मैं इस चमकीली शानो शौकत वाली
दुनिया के सारे रंग ठुकराकर
तुझसे बस तूझसे लिपट, तुझमें सिमट,
एक खुदरंग बनना चाहता हूं
हां, में दूर आसमा, के सफीनों पे,
तुझे बस तुझे लिखना चाहता हूं,
बस तुझे लिखना चाहता हूं…
विश्वास राणा “GYPSY”