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नारी ने तुझको जन्मा है, नारी की गोद में तू पलता है।

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प्रत्येक वर्ष 11 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस( इंटरनेशनल डे आफ द गर्ल चाइल्ड) के रूप में मनाया जाता है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि बालिकाएं किसी भी समाज के कल्याण, विकास में अहम भूमिका निभाती हैं। मिशेल ओबामा ने कहा है कि ‘जब लड़कियाँ शिक्षित होती हैं, तो उनका देश अधिक मजबूत और समृद्ध होता है।’ वास्तव में यह लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनके अधिकारों और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि कनाडा सरकार ने एक आम सभा में अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। साल 2011 में 19 दिसंबर के दिन संयुक्त राष्ट्र ने इस प्रस्ताव को पारित कर दिया। आज के इस समय में महिलाओं के, लड़कियों के सशक्तिकरण के बावजूद उनसे जुड़े बहुत से मुद्दे हैं,जिन पर ध्यान केंद्रित किए जाने की जरूरत है। आज भी हमें यौन अपराध, महिलाओं, बच्चियों के खिलाफ हिंसा, अत्याचार, कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह जैसी अनेक समस्याएं देखने को मिलती हैं, यह दिन इन सभी मुद्दों पर ध्यान देने का दिन है, क्यों कि महिलाओं के विकास बिना कोई भी समाज कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता है। जानकारी देना चाहूंगा कि एनसीआरबी यानी कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार सिक्किम में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की दर सबसे अधिक है, इसके बाद केरल, मेघालय, हरियाणा और मिज़ोरम का स्थान है।पश्चिम बंगाल और ओडिशा शीर्ष पाँच राज्यों (महाराष्ट्र, एमपी और यूपी के साथ) में शामिल हैं, जो देश भर में बच्चों के खिलाफ किये गए कुल अपराधों का 47.1% है।वर्ष 2021 में अकेले पश्चिम बंगाल में बच्चों के खिलाफ अपराध के 9,523 मामले दर्ज किये गए। यह बहुत ही महत्वपूर्ण, गंभीर व संवेदनशील है कि भारत में कन्या भ्रूण हत्या की दर विश्व भर में कन्या भ्रूण हत्या की उच्चतम दरों में से एक है। वर्ष 2011 की जनगणना में 0-6 वर्ष की आयु वर्ग में सबसे कम लिंगानुपात (914) दर्ज किया गया है, जिसमें 3 मिलियन लापता लड़कियाँ शामिल थीं। इनकी संख्या वर्ष 2001 के 78.8 मिलियन की तुलना में वर्ष 2011 में 75.8 मिलियन हो गई।एक अन्य आंकड़े के अनुसार प्रत्येक वर्ष भारत में कम-से-कम 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हो जाती है, जिसके चलते भारत में बाल वधुओं की संख्या विश्वभर में सबसे अधिक (वैश्विक रूप से कुल संख्या का एक-तिहाई) है। आज भी हमारे समाज में महिलाओं और लड़कियों को उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं करने दी जाती है, पुरूष मानसिकता के कारण भेदभाव की शिकार होती हैं। लड़कों की तुलना में लड़कियों के लिए असमान अवसर हैं। यह बहुत ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील है कि आज के इस आधुनिक युग में भी कहीं न कहीं भारत में लड़कियों को अपने घरों के अंदर और बाहर अपने समाज में कहीं न कहीं किसी न किसी रूप और स्तर पर अनेक प्रकार से भेदभाव का सामना करना पड़ता है।  यह भी गंभीर है कि भारत में पाँच साल से कम उम्र की लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में 8.3 फीसदी अधिक है। विश्व स्तर पर यह लड़कों के लिये 14% अधिक है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि सरकार द्वारा इस दिशा में कोई काम नहीं किए जा रहे हैं। सरकार महिलाओं, लड़कियों को आगे बढ़ाने के लिए सदैव प्रतिबद्ध और कृतसंकल्पित है। आज हमारे देश में ‘बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ के साथ ही अनेक प्रकार के अभियान चलाए जा रहे हैं। आज बालिकाओं के कल्याण के लिए ‘सुकन्या समृद्धि योजना’, ‘सीबीएसई उड़ान योजना ‘, माध्यमिक शिक्षा के लिए लड़कियों को प्रोत्साहन देने हेतु राष्ट्रीय योजना चलाई जा रही है। यहां तक कि आज बालिकाओं के लिए मुफ्त या अनुदानित शिक्षा और कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में सीटों का आरक्षण तक दिया जा रहा हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने महिला आरक्षण विधेयक 2023 (128वाँ संवैधानिक संशोधन विधेयक) अथवा नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित कर दिया। यह विधेयक लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित करता है। यह महिला सशक्तिकरण की ओर एक नायाब कदम कहा जा सकता है। हमारे देश में आज बाल संरक्षण प्रणाली का सुदृढ़ीकरण किया गया है। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है। कानून को कड़ा व सख्त बनाया गया है। महिलाओं के प्रति हिंसा, अत्याचार रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं। लड़कियों की शिक्षा पर लगातार बल दिया जा रहा है। सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए अनेकानेक प्रयास किए जा रहे हैं। आज समाज में बालिकाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है। उनके सेहतमंद जीवन, अच्छी शिक्षा और कैरियर के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनेकानेक प्रयास किए जा रहे हैं, ताकि महिलाएं भी देश और समाज के विकास में योगदान दे सकें। बहरहाल, यदि इस दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की हम यहां बात करें तो जानकारी देना चाहूंगा कि सबसे पहली बार वर्ष 1995 में बीजिंग डिक्लेरेशन एंड प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन ने लड़कियों के अधिकारों को आगे बढ़ाने के लिये एक कार्ययोजना का प्रस्ताव रखा था और वर्ष 2011 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 11 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में घोषित करने हेतु संकल्प 66/170 को अपनाया गया था। जानकारी देना चाहूंगा कि 11 अक्तूबर 2012 को पहली बार अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया गया था। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि अन्य दिवसों की भांति ही इस दिवस को मनाने के लिए एक थीम रखी जाती है और पिछले वर्ष यानी कि वर्ष 2022 में इस दिवस की थीम ‘अवर टाइम इज नाऊ, अवर राइट्स,अवर फ्यूचर ‘ यानी कि ‘हमारा समय अभी है, हमारे अधिकार,हमारा भविष्य ‘रखी गई थी। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि हर साल 24 जनवरी का दिन राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है जिसका उद्देश्य भी लोगों में बालिकाओं/लड़कियों को असमानताओं और अपने अधिकारों के बारे में जागरूक करना है।इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य भी लड़कियों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाना है। जिसकी शुरुआत भारत सरकार द्वारा साल 2008 में की गई थी। बहरहाल, आज महिलाएं हरेक क्षेत्र में आगे आ रहीं हैं, महिला सशक्तिकरण की बातें हो रही हैं। लैंगिंक समानता पर लगातार बल दिया जा रहा है। महिला और पुरुष आज कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। दोनों सृष्टि के खूबसूरत पहलू हैं और आज के इस युग में दोनों का एक साथ आगे चलना,आगे बढ़ना बहुत ही जरूरी है, क्यों कि विकास के लक्ष्यों को तभी प्राप्त किया जा सकता है। इसमें कोई संदेह या दोराय नहीं है कि महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को सुनिश्चित करके ही न्याय, समावेश, आर्थिक विकास एवं एक स्थायी वातावरण प्राप्त किया जा सकता है। वास्तव में यह दिवस लड़कियों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने और लड़कियों के सशक्तीकरण एवं उनके मानवाधिकारों की पूर्ति को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करता है। अंत में किसी के शब्दों में बस यही कहूंगा कि ‘नारी से हम-तुम बने, इस सृष्टि में जीवन खिले,इस दुःख भरे संसार में, फिर प्यार की कलियाँ खिले। इतिहास को भी रच दिया, कुछ इस तरह के काम कर,जिसके कदम धरती ही न, आकाश में भी तुझको मिले।।अपमान मत कर तू नारियों का, जिनके वजह से तू चलता है,नारी ने तुझको जन्मा है, नारी की गोद में तू पलता है।।’
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार ,उत्तराखंड।

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