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प्रे.सं शिलचर 14 अक्टूबर: बराक वैली हो या ब्रह्मपुत्र वैली चाय उद्योग गंभीर वित्तीय संकट से गूजर रहा है। भारतीय चाय बागान मालिकों के संगठन इण्डियन टी एसोसियेशन (आईटीए) ने गुरुवार को एक विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा है कि चाय उद्योग गंभीर वित्तीय संकट में है, क्योंकि कीमतें उत्पादन की बढ़ती लागत के साथ तालमेल नहीं बिठा रही है। आईटीए ने अपने स्टेटस पेपर ‘टी’ में कहा है कि पिछले दशक में जहां चाय की कीमतें लगभग 4% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ी हैं, वहीं गैस और कोयले जैसे इनपुट की लागत 9-15% सीएजीआर से बढ़ी है। स्टेटस पेपर के अनुसार, 2022 की तुलना में 2023 में कीमतों के रुझान में चिंताजनक रूप से गिरावट आई है। बिक्री संख्या 14-39 को कवर करने वाली सीटीसी और डस्ट टी की नीलामी कीमतें असम चाय के लिए 12.49 रुपये प्रति किलोग्राम और पश्चिम बंगाल चाय के लिए 11.30 रुपये प्रति किलोग्राम कम हो गई है । समान बिक्री संख्या को कवर करते हुए पारंपरिक किस्म की नीलामी कीमतें भी 95 रुपये प्रति किलोग्राम कम हो गई है। जबकि 2022 में चाय निर्यात में सुधार के कुछ संकेत दिखे और यह 231 मिलियन किलोग्राम तक पहुंच गया, 2023 में जनवरी-जुलाई के दौरान इसमें 2.61 मिलियन किलोग्राम की गिरावट आई। निर्यात परिदृश्य गंभीर बना हुआ है क्योंकि भुगतान के मुद्दों के कारण ईरान को निर्यात अनिश्चित बना हुआ है। भारत से कुल चाय निर्यात में ईरान बाज़ार की हिस्सेदारी लगभग 20% है। उच्च निर्यात लागत को कम करने और निर्यातकों को प्रतिस्पर्धी बने रहने में सक्षम बनाने के लिए, उद्योग ने सरकार से उच्च गुणवत्ता वाली सीटीसी, ऑर्थोडॉक्स और दार्जिलिंग चाय के लिए (निर्यात उत्पादों पर कर्तव्यों या करों में छूट) प्रोत्साहन सीमा बढ़ाने पर विचार करने का आग्रह किया है। पेपर में कहा गया है कि छोटे चाय उत्पादकों और उत्पादन में वृद्धि, घरेलू खपत और निर्यात के अनुपात में नहीं थी, और इस प्रकार अधिशेष उत्पादन था । इससे पहले, क्रिसिल रेटिंग्स ने कहा था कि चालू वित्त वर्ष में चाय कंपनियों के राजस्व में 8% की गिरावट देखने को मिल सकती है । रिपोर्ट में कहा गया है कि मजदूरी कुल उत्पादन लागत का 20% है और पिछले वित्तीय वर्ष में इसमें लगभग 15% की बढ़ोतरी की गई थी, हालांकि, चाय कंपनियों का कम उत्तोलन और कम पूंजीगत व्यय उनके क्रेडिट प्रोफाइल को स्थिर रखेगा । मुलत: बराकघाटी के चाय बागानों की हालत दिनों पर दिन और नाजुक होता जा रहा है, कभी मौसम का मार, कभी बारिस ज्यादा होना, कम उत्पादन होना, पिछले पांच वर्षो में चाय बागान श्रमिकों की मजदूरी में उल्लेखनीय बढ़ना, कोयला, गैस, सल्फर जैसे अन्य महत्वपूर्ण इनपूट की लागत 9 प्रतिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत होना एक गंभीर स्थिति पैदा कर दिया है, सभी चाय बागान मालिक चाय बागानो को चलाने में कठिनाईया झेल रहे हैं, लेकिन फिलहाल कोई हल निकलता नजर नही आ रहा है, इस सन्दर्भ में प्रसिद्ध रोजकांदी चाय बागान के महाप्रबंधक ईश्वर भाई उभाडिया ने कहा, चाय उद्योगों का संकट गहराया हुआ है, राज्य हो केन्द्र सरकार इस विषय को गंभीरता से नही लेती है तो धीरे धीरे चाय उद्योग बंद होंगे और बेरोजगारी और बढ़ेगी, पश्चिम बंगाल में सरकार बागानों राशन मुहैया कराती है, वहां पर बागान मालिकों पर राशन का बोझ नही बढ़ता है, असम के क्षेत्र में मालिक संस्था ने सरकार से राशन देने के लिए आग्रह किया था, तो सहमति बनी थी, मगर किसी ने इस विषय को लेकर न्यायालय में मामला कर दिया जिसके चलते सरकार बागान को राशन नही दे पा रही है, जबतक मामला न्यायालय में रहेगा तबतक इसका समाधान नही हो पा रहा है, उन्होंने कहा कि दो तीन इसु है जो सरकार को समझने पड़ेंगे, अभी जो प्रबंधन बैठा हुआ है चाहे प्रबंधक हो या मालिक हो वह एक्चुवल में मालिक नही है, आज मेकलोड एण्ड मेकलोड, असम कम्पनी, रसल्स सभी ने बढ़ते समस्या के चलते बड़ी बड़ी कम्पनियां फेल हो गयी और उनके बागान अलग अलग करके बिक रहे हैं, अभी स्माल ग्रोवर आ गये हैं, उनके तो मालिक भी वही हैं, टिल्हाबाबु वही है, उनका जो माडल है और हमलोगों का जो माडल है वह जमीन आसमान का अन्तर है, अगर स्थापित चाय बागान बंद हो जाती है तो लोगो को अच्छी चाय नही मिलेगी, क्योंकि स्माल ग्रोवर के पाश क्वालिटी कन्ट्रोल रहेगा नही, उन्होंने कहा कि जो रेगुलर चाय कम्पनी है वह प्लान्टेशन लेबर एक्ट के तहत चलती है, श्रमिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, ग्रेच्युयेटी, भविष्यनिधि यानी प्लान्टेशन लेबर एक्ट में जो प्रावधान है, उसे हम फालो करते हैं । लेकिन जल्द ही बागानों की समस्या पर सरकार को ठोस उठाने की आवश्यकता है, नही तो बेरोजगारी सरकार का ही बोझ बनेगी।