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“जीवन दर्पण” पुस्तक समीक्षा- अशोक वर्मा

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“जीवन दर्पण” पुस्तक समीक्षा- अशोक वर्मा
ज्ञानार्जन एक साधना है । निष्ठा, आत्मप्रत्यय निरन्तर अध्ययन-मनन आदि से व्यक्ति ऋद्ध होता है । वह स्वयं ही खुद को अनुप्रेरित करता है । उसकी दृष्टिभंगी, अनुभूति प्रबल होती है । उसकी समझदारी प्रशंसा करने लायक होती है । किसी विषय पर, समस्या पर उसकी अभिव्यक्ति चकित करती है । उसके हृदय में ममता और सहानुभूति की जलती दीप दूसरों के हृदय को उद्भाषित करता है । बौद्धिकबल के कारण विषय पर, घटना पर विश्लेषण कर कर्तव्य कर्म का सटीक निर्धारण करने में समर्थ होता है । जनगण उसके प्रति सम्मोहित होते हैं, आकृष्ट होते हैं । ऐसे लोग समाज और जाति के मर्यादा को बढ़ाते हैं । वह पुरूष है या महिला इस पर चर्चा ईर्षालु करते हैं, उदारचित्तवाले कभी नहीं ।

बराक घाटी में चन्द साल पहले भी हिन्दी साहित्य सर्जन का बहुत प्रशंसनीय माहौल नहीं था । स्थिति बदल रही है । उन्मोचित हो रहे हैं नये-नये साहित्यिक । उनकी प्रतिभा से साहित्य प्रेमी आनन्द रस उठा रहे हैं । साहित्य के प्रति स्थानीय लोगों का आग्रह बढ़ रहा है । यद्यपि विकास गति धीमी है । सर्जन क्षमता बहुत उत्साह व्यंजक नहीं है । माध्यम का अभाव एक प्रधान कारण है । शिल्प कला और साहित्य सूक्ष्म भावनाओं की अभिव्यक्ति है । हर किसी से यह सम्भव नहीं । सार्थक सृष्टि बहुत ही पीड़ादायक है । उसके लिए कठोर मनन-चिन्तन का प्रयोजन जरूरी है । एकान्त अनुशीलन का अभ्यास चाहिए, एकाग्रता चाहिए ।

डॉ. चम्पा प्रिया नुनिया बराक घाटी के साहित्य आंगन में अपनी पहली पुस्तक “जीवन दर्पण” द्वारा सभी की दृष्टि अपनी ओर खींचने में समर्थ हुई है । उसमें सम्भावना है, प्रतिभा है , विषय उपस्थापन की कला है । भले ही कोई उसके विचारों से, तर्कों से सहमत न हो । धड़ेल से वह अपना वक्तव्य अपने लेखों में उड़ेल देती है । अपनी पहली पुस्तक के लेखों में जिस तरह वह विषय संकलित की है ऐसा लगता है जैसे एक अभिज्ञ व्यक्ति प्रवचन दे रहा है । पहले ही उल्लेख किया गया है जो अपने हृदय का दीप जलाने में सक्षम हुआ है उसके पास सब कुछ दिवालोक की भाँति दिखता है।व्यक्ति ज्ञान की दीप से हर समस्या का समाधान कर सकता है ।

जो जिस परिस्थिति में जिस परिवेश में जनमता है, पला-बढ़ा है उसका प्रभाव उस पर पड़ता है । जिस तरह के लोग जिस तरह की समस्या उसकी राह मिलती और जैसे-जैसे अध्ययन मनन आदि से व्यक्ति अपनी प्रतिभा को विकसित करता है वैसे-वैसे हर चीज को गहराई से विचार-विश्लेषण कर अच्छा-बुरा, ग्रहण योग्य, अग्राह्य, प्रशंसनीय उपेक्षनीय समक्षता और दूसरों को भी समझाने का प्रयास करता है । अगर वह व्यक्ति रूढ़िवादी, कट्टर नहीं होता, उदार एवं सहृदय होता है तो वह वन्दनीय प्रशंसनीय माननीय होता है । डॉ. चम्पा प्रिया में इस तरह का गुण अंकुरित हो रहे हैं । अगर वह उन्हें ठीक से लालन-पालन करे तो बराक वासी ही नहीं हिन्दी भाषी अवाम भी उस पर नाज करेंगे ।

प्रो. एस.पी. गर्ग जी जो अहमदाबाद IIM का अध्यापक थे, उन्हीं से डॉ. चम्पा प्रिया को मार्गदर्शन मिला है । “जीवन दर्पण” एम. के. पब्लिकेशन, जयपुर (राजस्थान) से प्रकाशित हुआ है । लेखिका अपने पिता स्व. रामजतर नुनिया को यह पुस्तक उत्सर्ग की है ।

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