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कब तक मुझे रुकोगे।

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मैं दरिया हूं।
मैं बहता हुआ स्रुत हूं।
कब तक मुझे रुकोगे।
मैं उगता हुआ पौधा हूं।
मैं विस्तृत गगन हूं।
मुझमें प्राण है।
मेरी पण है।
मैं कदम बढ़ाते रहूंगी।
हर कदम का किस्सा तुझे सुनाऊंगी।
काट लोगी मेरी टांग ,
तो भी मुझे क़फ़स में नहीं रख सकते।
मैं अर्श पे चढ़ के दिखाऊंगी।
मैं कोहकन हुं।
मैं उड़ने वाली छोटी तितली हूं।
कब तक मुझे रुकोगे।
इतनी औकात नहीं तुझमें।
जो मुझे रोक के राखोगे ।
हाजिरा बेगम चौधरी।
ग्यारहवीं कला
जवाहर नवोदय विद्यालय, कछार।

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