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हिंदी हमारी मातृभाषा है, मतलब हम अपने बोलचाल में इसका प्रयोग किया करते हैं। हम सब भारत माता के संतान हैं, और हिंदी हमारी भारत की राष्ट्रभाषा है। हमे इसका दर्जा नीचे गिरने देना पाप होगा। हम जब जन्म लेते है, बोलना सिखते हैं तो अपनी मां के बोली से ही बोलना, चलना, लिखना, पढ़ना सब कुछ सीखते हैं और उसी से हम आगे भी बढ़ते हैं फिर हम उससे दूर कैसे रह सकते हैं। जब हमारे देश को आजादी मिली तो इसके सारे कामकाज हिंदी में ही हुआ करता था ।कार्यपालिका, विधायिका,न्यायपालिका सब में हिंदी के माध्यम से ही लिखा और बोला जाता था। कोई अन्य भाषाएं वहां काम नहीं आती थी । प्रशासन का सारा कार्य भार हिंदी के माध्यम से ही हुआ करता था, तब से हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया। हमें खुद ही सोचना चाहिए कि जब विश्व की सब देश की अपनी भाषा है जैसे अमेरिका में अमेरिकन, इंग्लैंड में अंग्रेजी रसिया में रसियन तो हिंदुस्तान में भी हिंदी होना चाहिए था। मानते हैं कि अनेकों कारणों से यह सम्भव नहीं हुआ था, परंतु राष्ट्रभाषा तो हिंदी ही है । हम सबको यह पता है कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है और बाकी के भाषाएं अपने आपमें सहोदर हैं। हमारे सभी प्रमुख पुराणों एवं ग्रन्थों का भाषा संस्कृत है, पंरतु सभी को संस्कृत का ज्ञान नहीं होता है, इसलिए लगभग सभी पुराणों एवं ग्रन्थों को महाकवियों, साहित्यकारों द्वारा हिंदी में अनुवाद किया गया। जाहिर सी बात है कि हिंदी पौराणिक युगों से ही अधिकतर लोगों की भाषा है। तुलसीदास जी जैसे विद्वानों ने इनको हिंदी में लिखा और आम लोग इसे पढ़ने लिखने लगे | धीरे-धीरे यह इतनी आसान लगने लगी कि यह स्कूल और कॉलेज में भी छा गई।
परंतु आज उसी महान भाषा की असम में दर्जा क्यों गिरने लगा है, ,,,,,,
असम सरकार की योजना राष्ट्रभाषा की शिक्षा को समाप्त करना, हिंदी शिक्षकों की नियुक्ति पर रोक लगाना, राष्ट्रीय एकता अखंडता के क्षेत्र में एक असहनीय कार्रवाई को अंजाम दिया जा रहा है। हिंदी भाषा की स्वतंत्रता, राष्ट्रीय गरिमा से जुडी हुई है। हर समुदाय के लोगों द्वारा हिंदी में बातचीत, आपसी भावनाओं का आदान-प्रदान चल रहा है। अपना विचार व्यक्त करना तथा गैर भाषाभाषी लोगों के बीच रष्ट्रभाषा हिंदी के जरिए संपर्क किया जाता है। असम सरकार के गैर जिम्मेदाराना सिद्धांत के चलते आज राज्य का आपसी मेलजोल का माहौल समाप्त होने की कगार पर जा रहा है। राष्ट्रभाषा हिंदी को संसद में दर्जा दिए जाने के बाद भी असम सरकार की इन गतिविधियों के चलते उत्तर पूर्वांचल क्षेत्र में रह रहे हिंदीभाषी लोगों के साथ- साथ तमाम दूसरे क्षेत्रीय भाषा गोष्ठी के लोग जैसे की खासी, गारो, मिजो, डिमासा, नागा, कुकी, मणिपुरी, बंगाली व दूसरे भाषागोष्ठी के के बीच आपसी मेल-जोल ओर भाईचारा का माहोल बिगड़ सकता है। अपने मनमानी सिद्धांत के चलते राज्य सरकार हिंदीभाषियों के साथ साथ दूसरे भाषागोष्ठी व राष्ट्रीय एकता से खिलवाड़ कर रही है जो की आनेवाले दिनों में देश के लिया एक बहुत बड़ा खतरा बन सकता है। राज्य सरकार की ऐसी हिंदी को समाप्त किए जाने की चाल के खिलाफ सभी स्तर के लोगों को एकजुटता दर्शाते हुए और कड़ी कार्रवाई करते हुए शिक्षक पदों की नियुक्ति पर रोक लगाने व हिंदी शिक्षा बंद करने के खिलाफ बुलंद आवाज को आंदोलन के जरिए मजबूत करना होगा। हम हिंदीभाषी आज अगर एकजुट होकर लड़ाई नहीं लड़ी तो हमारे उन महापुरुषों, महाकवियो हमें कभी क्षमा नहीं करेंगे। अतः हमारे सभी हिंदी भाषी भाइयों एवं बहनों से निवेदन है की आप लोग इस पर गौर कीजिए और इसे बचाने का प्रयत्न कीजिए ।
चंद्र शेखर ग्वाला ,( मासिमपुर,), संबाद दाता,, प्रेरणा भारती दैनिक, शिलचर असम।