सारे विश्व में दिनांक 21 फरवरी का दिन आंतर राष्ट्रीय मातृ भाषा सुरक्षा दिन के रूपमें मनाया जाता है। भारत तथा असम में भी सर्वत्र यह दिन बड़े उत्साह से पालन करते है। इस साल बराक उपत्यका में सभा , शोभायात्रा, कुछ जगह रक्त दान शिबिर, अस्पताल में मरीजोंको फल आदि वितरण,गरीब वस्ती में वस्त्र दान जैसे विविध कार्यक्रम संपन्न हुए। कार्यक्रमों में वक्ताओंने मातृभाषा का इतिहास, महत्व, मातृभाषा में शिक्षा,और तत्संबंधी विषयों पर अपने सारगर्भ विचार प्रकट किए। ये सभी कार्यक्रम स्वागतार्ह है।
प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मातृभाषा के प्रति सन्मान, श्रद्धातथा गर्वबोध रहना स्वाभविक है।अपनी भाषा पर दूसरा कोई व्यंग या कटु उक्ति करता है तो भाषा प्रेमी लोगों को क्रोध आना तथा प्रतिक्रया होना भी स्वाभाविक है। भारत यह वहु भाषी राष्ट्र है। हर एक भाषा का अपना एक इतिहास तथा परंपरा है। कभी कभी सामान्य बात को लेकर आपस में संघर्ष भी होते है। असम में भी ऐसे संघर्ष समय समय पर हुए है। अर्थात् इसके पीछे दूसरी भाषा के प्रति द्वेष या वैरभाव की भावना नहीं रहती अपितु स्वयं की भाषा के प्रति प्रेम ही रहता है।स्वभाषा को मान्यता तथा प्रतिष्ठा मिले इसके लिए अनेक संस्थाएं निरंतर प्रयास करती रहती है।
परंतु केवल मातृभाषा सुरक्षा दिन मनाकर उस दिन भाषा प्रेम व्यक्त करने से मात्रभाषा को सुरक्षित रखना संभव नहीं होगा। इसके लिए बडे पैमाने पर जन जागरण करना होगा। आज सर्वत्र अंग्रेजी का बोलबाला है। भाषा सुरक्षा के लिए प्रयास करने वाले अनेक लोगों के घर के बालक अंग्रेजी माध्मम के विद्यालयों में पढ़तेहैं।अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने में कोई आपत्ति नहीं।हम जितनी अधिक भाषाएं सीखे ,वह स्वागतार्ह है। किंतु अपनी मातृभाषा के प्रति दुर्लक्ष करना क्या उचित है?यह चिंता का विषय है। इस पर कौन ध्यान देगा? मेरे संपर्क में अनेक छात्र है।पहली बार मिलने पर परिचय करते समय श्रेणी या कक्षा पूछने पर सहज रीतिसे Class Eight या Nine ऐसा उत्तर मिलता है। मातृ भाषा में बोलो कहने पर हम अंग्रेजी माध्यम में पढ़ते हैं ऐसा कहते है। बार बार मैंने आग्रह परने पर आज अनेक छात्र बांग्ला या हिंदी शब्द बोलने लगे है। उसी प्रकार अंग्रेजी माध्यम के छात्र मातृ भाषा में बोलते हैं किंतु लिख वा पढ़ सकते नहीं, यह भी पता चला। गत सरस्वती पूजा के दिन मेरे एक मित्रने बताया कि उसदिन अपने पुत्र को ॐ सरस्वत्यै नमः यह वाक्य सौ बार लिखने को कहा तो उसने अंग्रेजी में लिख कर दिखाया। कारण बांग्ला में लिखना आता नहीं। कुछ छात्रों को मैंने रोज किताब देख कर दस वाक्य मातृ भाषा मे लिखने और कहानी के किताब से एक छोटी कहानी पढ़ने का आग्रह किया। आज वे भी मातृ भाषा में पढ़ , लिख सकते हैं।
सरस्वती पूजा के दिन देखा कि अधिकांश विद्यालय या महा विद्यालय के पूजा के निमंत्रण पत्र अंग्रेजी में है।यही स्थिति दुर्गा पूजा, विश्वकर्मा पूजा, काली पूजा जैसे धार्मिक उत्सवों में दीखती है।परिवारों में विवाह अन्नप्राशन, जन्म दिन आदि के निमंत्रण तथा सभा, समिति के भी निमंत्रण अंग्रेजी में ही छापने की प्रवृति दिन प्रति दिन बढ़ रही है। क्या बराक घाटी के लोग बांग्ला या हिंदी नहीं पढ़ सकते? विश्व विद्यालय जैसे प्रतिष्ठानों में मातृ भाषा के साथ अंग्रेजी में छाप सकते है।
भाषा के पंडितों से भी मेरा अनुरोध है कि Happy Birth Day, Happy Marirage Day , Happy Diwali जैसे वाक्यों को मातृभाषा में योग्य अनुवाद कर जनता में प्रसार करें। अन्यथा मम्मी,डॅडी, पापा, आंटी अंकल मिस, मेम आदि शब्द कुछ काल के पश्चात् मातृ भाषा के शब्दकोषों मे स्थान पायेंगे।
मातृ भाषा सुरक्षा के क्षेत्र में कार्य रत व्यक्ति तथा संघटनों को भाषा दिन पालन और सरकार पर दबाब डालने के साथ इस कार्य को सामाजिक जागरण तथा आंदोलन के रूप में सतत चलाने के लिए निरंतर प्रयास करना जरूरी है।